प्रश्न- सिन्धुघाटी के लोगों की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक तथा राजनीतिक दशा का वर्णन कीजिए।
हड़प्पा सभ्यता का प्राचीन भारत के इतिहास में एक विशिष्ट स्थान है। यह कई बातों में विश्व की अन्य सभ्यताओं से श्रेष्ठ तथा उन्नत थी। यह विश्व की अत्यंत प्राचीन और मानवोपयोगी सभ्यता मानी जाती है।
1. हड़प्पा सभ्यता की जानकारी : 1921-22 ई. से पूर्व हड़प्पा सभ्यता के विषय में किसी को जानकारी नहीं थी, परन्तु पुरातत्ववेताओं के प्रयासों से हमें सिंधु सभ्यता की जानकारी प्राप्त हुई। सन् 1920 ई. में दयाराम साहनी एवं श्री माधोस्वरूप वत्स के नेतृत्व में हड़प्पा नगर में खुदाई का कार्य शुरू किया गया। 1922 ई. में श्री राखलदास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो में खुदाई का कार्य आरंभ किया गया। 1923 ई. में भारतीय पुरातत्व विभाग की ओर से सर जान मार्शल के नेतृत्व में खुदाई का कार्य बड़े पैमाने पर किया गया जिससे हमें हड़प्पा सभ्यता के बारे में जानकारी प्राप्त हुई।
2. हड़प्पा सभ्यता का नामकरण : चूंकि इस सभ्यता के अवशेष अधिकतर सिंधु नदी के दोनों किनारों में मिले हैं, इस कारण इसे ‘सिंधु घाटी की सभ्यता’ कहा जाता है। इस सभ्यता को ‘हड़प्पा संस्कृति’ के नाम से भी पुकारा जाता है क्योंकि इस सभ्यता के सबसे पहले स्थल हड़प्पा से प्राप्त हुए थे।
3. हड़प्पा सभ्यता का विस्तार क्षेत्र : हड़प्पा सभ्यता के अवशेष केवल मोहनजोदड़ो और हड़प्पा से ही नहीं, अपितु अन्य स्थानों से भी प्राप्त हुए हैं।
हड़प्पा सभ्यता का विस्तार अफगानिस्तान, ब्लूचिस्तान, सिंथ, पंजाब (पाकिस्तान), पंजाब (भारत), हरियाणा, राजस्थान, गुजरात एवं उत्तर भारत में गंगाघाटी तक व्याप्त था। प्रो. आर. एन. राव के अनुसार, “हड़प्पा सभ्यता का विस्तार पूर्व से पश्चिम में 1600 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण में 1100 किलोमीटर के क्षेत्र में था । ”
4. हड़प्पा सभ्यता का काल : धर्मपाल अग्रवाल ने कार्बन-14 पद्धति द्वारा सिन्धु सभ्यता का समय 2300 ई. पूर्व से 1750 ई पूर्व माना है। कुछ विद्वानों के अनुसार हड़प्पा सभ्यता का उदगम 4000 ई पूर्व से 3000 ई पूर्व के बीच माना जाता है। यद्यपि हड़प्पा सभ्यता के काल के विषय में विद्वानों में मतभेद है, परन्तु इसमें कोई संदेह नहीं कि हड़प्पा सभ्यता की गिनती विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में की जाती है।
5. हड़प्पा सभ्यता के निर्माता : कर्नल स्यूल, डॉ गुहा आदि विद्वानों का मत है कि हड़प्पा सभ्यता के निर्माता मिश्रित जाति के लोग थे। इन जातियों में आदि-आस्ट्रेलियाई, भूमध्यसागरीय, मंगोल तथा अल्पाइन जातियां उल्लेखनीय थीं। डॉ विमल चन्द्र पाण्डेय ने लिखा है कि “भूमध्यसागरीय जाति सिन्धु प्रदेश में सबसे अधिक बहुसख्या में थी । यही समाज में सबसे अधिक सम्मानीय तथा अभिजात समझी जाती थी। हड़प्पा सभ्यता के विकास में कदाचित इसी जाति ने सबसे अधिक योग दिया था।” अस्थिपंजरों तथा मूर्तियों के सिरों के भग्नावशेषों से भी ज्ञात होता है कि सैन्धव- लोग मिश्रित जाति के थे।
हड़प्पा सभ्यता की सामाजिक विशेषताएँ : अमरी, झुकरदारों, चन्दहदड़ों, और मोजनजोदड़ों की खुदाई से प्राप्त वस्तुओं के अध्ययन के फलस्वरूप सिन्धु घाटी की सामाजिक दशा के बारे में निम्नलिखित ज्ञान प्राप्त होते हैं :
1. समाज का संगठन : इस सभ्यता के लोगों का समाज चार भागों में बँटा था । पहला वर्ग था विद्वानों का – जैसे पुजारी, वैद्य और ज्योतिषी । दूसरे वर्ग में योद्धा थे जिनका काम था समाज की रक्षा करना । तीसरा वर्ग था व्यापारियों का और चौथे वर्ग में मजदूर तथा घरेलू नौकर थे।
2. भोजन : सिन्धु सभ्यता के लोगों के मुख्य भोजन थे गेहूँ, जौ, खजूर और चावल क्योंकि मोजनजोदड़ों की खुदाई में ये चीजें प्रचुर मात्रा में मिली हैं। खुदाई में मछलियों की हड्डियाँ भी मिली हैं जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि वे लोग मछली, मांस और अण्डे भी खाते थे। फल-फूल, दूध, घी दही और अन्य तरह की तरकारियाँ भी खूब खाते थे तथा जलाशयों से लोग पानी पीते थे।
3. वेश-भूषा : यहाँ के लोग सूती और ऊनी दोनों तरह के वस्त्र पहनते थे। रंगीन सादे और बेल-बूटा किये हुए भी कपड़े पहनते थे। खुदाई में शाल ओढ़े एक पुरुष की मूर्ति मिली है। शाल उसके बाये कंधे के ऊपर के लिए और दूसरा कमर से नीचे के लिए। वहाँ की औरतें एक खास तरह का वस्त्र पहनती थी जो कि सिर के पीछे की ओर पंखे की तरह उठा रहता था। स्त्री और पुरुष के वस्त्रों में कोई विशेष फर्क नहीं था ।
औरत और मर्द दोनों आभूषण पहनते थे। अंगूठी तो औरत और मर्द दोनों ही पहनते थे। आभूषणों में हार, भुजबन्द, कर-कंगन, करधनी, नथुनी, पाजेब, बाली और अंगूठी आदि प्रमुख थे। आभूषण सोने-चाँदी, हीरे जवाहरात, तांबे, हड्डियाँ और पकी हुई मिट्टी के होते थे। लोग सामर्थ्य के अनुसार आभूषण पहनते थे । औरतें अपने होंठ भी रंगती थी जो आज की लिपिस्टीक की याद दिलाती है। पीतल तथा हाथी के दाँतों के ऐनक से औरतें मुँह देखती थी। औरत-मर्द दोनों ही बाल रखते थे और कंधी का प्रयोग करते थे। आज की तरह ही उस युग की औरतें भी दो चोटी बाँधती थी तथा चोटी में फूल लगाती थी। वे नाखून भी रंगती थी। मर्दों में मूँछें तथा दाढ़ी रखने की प्रथा थी। कुछ लोगों के बाल लम्बे और कुछ के छोटे होते थे। जिन लोगों के बाल लम्बे होते थे वे चोटी बाँधकर उसे पीछे की ओर फेर लेते थे।
4. आमोद-प्रमोद के साधन : सिन्धु सभ्यता के लोग आमोद-प्रमोद के काफी प्रेमी थे। इनके आमोद-प्रमोद के निम्नलिखित साधन थे। वे लोग धनुष बाण से जंगली पशुओं, खासकर बकरी, हिरण और भैसों तथा चिड़ियों को पालने और उड़ाने के शौकीन थे। चिड़ियों को लड़ा लड़ा कर भी लोग मन बहलाया करते थे। बच्चे मिट्टी के खिलौने बना-बनाकर आमोद-प्रमोद किया करते थे। लोग शतरंज और जुआ भी खेलते थे। बच्चे गुड़ियाँ, खिलौने, सीटियाँ और छोटी-छोटी लकड़ी की गाड़ियाँ बना कर खेला करते थे । नाच गाकर भी ये लोग मन बहलाया करते थे।
5. खिलौने : हड़प्पा और मोहनजोदड़ों, दोनों जगहों में तरह-तरह के खिलौने पाये गये हैं। बच्चे छोटी-छोटी मिट्टी की गाड़ियों से बड़े चाव से खेलते थे। बच्चों के बजाने के लिए अनेक तरह के भोंपू भी बनाये जाते थे। बच्चों के खेलने के लिए मनुष्यों तथा पशुओं की आकृति के खिलौने बनाये जाते थे, झुनझुना भी खेलने का एक साधन था ।
6. आवागमन के साधन : सिन्धु सभ्यता में सड़कों तथा गलियों की भरमार थी, सड़कों पर हमेश गाड़ियाँ आया जाया करती थीं। गाड़ियों पर समान भी लादकर एक जगह से दूसरी जगह तक पहुँचाया जाता था। बैलगाड़ी ही इनकी मुख्य सवारी थी । गदहों पर भी लोग माल ढोते थे। हड़प्पा में ताँबे का एक वाहन मिला है, जो इक्के के आकार का है। नदियों में माल नाव के द्वारा ढोया जाता था। नाव काठ की होती थी जो बहुत ठोस होती थी
7. औषधि : सिन्धु सभ्यता के लोगों को कई तरह की औषधि का ज्ञान हो गया था । वे रोगों से मुक्ति पाने के लिए औषधि का प्रयोग करते थे, वैद्य लोग मछलियों की हड्डी, हिरण के सिंग, मूंगा और नीम की छाल तथा पत्ती से तरह-तरह के औषधि बना लेते थे। वे कई तरह के रोगों से परिचित थे। आँख, कान और नाक आदि के रोगों में वे लोग मछली की. हड्डियों का प्रयोग किया करते थे। पेट को साफ करने के लिए वे लोग मछलियों की हड्डी की बुकनी बनाकर खाते थे । तथा उसी बुकनी को तरल पदार्थ को तेल के समान होता था, मिलाकर आँखों के लिए सुरमा बनाकर आँखों में लगाया करते थे।
8. औरतों की दशा : सिन्धु सभ्यता में मातृ पूजा खूब होती थी। इसी से यह अनुमान लगाया जाता है कि वहाँ कि औरतों का स्थान ऊँचा था। समाज में उनका अत्यधिक आदर था। अतः माता के रूप में औरतों का बड़ा ऊँचा स्थान था। घर-गृहस्थी का प्रबंध और शिशुपालन ही उनका प्रधान कार्य था। औरतें घर की चहारदीवारी में रहती थी, लेकिन उस समय पर्दा की प्रथा नही थी। मेलों, उत्सवों और धार्मिक अनुष्ठानों तथा सार्वजनिक स्थानों में वे पुरुष के समान ही आ जा सकती थी तथा भाग ले सकती थीं। आज की तरह उस समय भी औरत पुरुष के मन बहलाव का साधन थीं।
9. शव-संस्कार : आज की तरह ही सिन्धु सभ्यता के लोग शवों के दाह-संस्कार करते थे। प्रसिद्ध सर जॉन मार्शल ने उन लोगों के शव संस्कार करने की तीन तरह विधि बतलाई है। पहली विधि के अनुसार शव को पूर्ण रूप से जमीन में गाड़ देते थे। दूसरी विधि में शव को ऊँचे स्थान पर कुछ समय के लिए छोड़ दिया जाता था । पशु-पक्षिये के खा जाने के बाद बचा हुआ हाड़-माँस के जमीन में गाड़ दिया जाता था। तीसरी विधि यह थी कि मृत्यु के बाद मृतक शरीर को आग में जला दिया जाता था। तीसरी विधि ही अधिक प्रचलित थी।
हड़प्पा सभ्यता की आर्थिक दशा : सिन्धु सभ्यता के लोगों की आर्थिक दशा अत्यंत ही खुशहाल थी। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ों जैसे विशाल तथा वैभव- पूर्ण नगर निश्चित ही बड़े सम्पन्न रहे होंगे । यहाँ की जमीन अत्यंत ही उपजाऊ थी। खेती करने के साधन उत्तम थे। सिंचाई का उचित प्रबंध था। लोग अत्यधिक कर्मठ थे, व्यवसाय तथा उद्योग धंधे उन्नत अवस्था में थे। अब हम वहाँ के आर्थिक जीवन के हर – एक पहलुओं पर अलग-अलग विचार करते हैं।
1. कृषि : सिन्धु सभ्यता के लोगों के आर्थिक जीवन का आधार कृषि ही था । ये लोग खेती करके कई तरह के अन्न उपजाते थे जिसमें गेहूँ तथा जौ प्रधान था। अन्न के अलावा ये लोग फल-फूल, साग-सब्जी और कपास की भी खेती करते थे। खुदाई में खजूर और खरबूज के बीच मिले हैं जिससे यह पता चलता है कि वे लोग खजूर की भी खेती करते थे उस युग में वहाँ वर्षा भी खूब होती थी । अतः सिंचाई की कोई विशेष आवश्यकता नहीं पड़ती थी। हड़प्पा में कई विशाल गोदामों के होने का प्रमाण मिला है जिनमें निश्चय ही अन्न जमा किया जाता होगा। खुदाई में अन्न पीसने की समुचित व्यवस्था का भी पता चलता है।
2. भोजन : इस सभ्यता के लोगों का प्रमुख भोजन गेहूँ तथा जौ था। खुदाई में धान कूटने का ओखला भी मिलता है जिससे यह पता चलता है कि वे लोग धान भी उपजाते थे और चावल भी खाते थे। फल में लोग खजूर अधिक खाते थे । अन्न के अलावा माँस, मछली और अण्डे भी खाते थे। दूध, घी और दही भी लोग खूब खाते थे। यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि लोग शराब पीते थे अथवा नहीं।
3. शिकार : सिन्धु घाटी के लोग केवल शाकाहारी नहीं थे बल्कि वे लोग माँस मछली और अण्डा भी खाते थे। माँस प्राप्त करने के लिए वे लोग शिकार किया करते थे। नदी तथा तालाब से मछलियाँ भी मारकर खाया करते थे। पशुओं के बाल खाल तथा हड्डियों से लोग तरह-तरह के समान बनाया करते थे। खेती के अलावा शिकार करना भी उनका प्रधान पेशा था।
4. पशुपालन : वे लोग अपनी जीविका चलाने के लिए पशुपालन भी किया करते थे। खुदाई में बहुत सी मोहरे मिली हैं। जिसपर पशुओं के चित्र बने हैं। जिनसे यह सहज ही पता चलता है कि वे लोग गाय, बैल, सॉढ़, भेड़, बकरी, हाथी, सूअर, कुत्ते, गदहे, तथा मुर्गी आदि पालते थे। खुदाई में घोड़े तथा ऊँट की हड्डियाँ नहीं मिली है। जिससे यह ज्ञात होता है कि सिन्धु घाटी की जलवायु ऊँट तथा घोड़े पालने के योग्य न थी ।
5. शिल्प तथा व्यवसाय : सिन्धु घाटी के लोगों की यह खास विशेषता है कि वे लोग अत्यधिक शिल्पी तथा व्यवसायी थे। मिट्टी के बर्तन बनाने में वे लोग माहिर तो थे ही, साथ ही साथ हड्डी, हाथी के दाँत, सूती तथा रेशमी और ऊनी कपड़े आदि बनाने में भी दक्षता प्राप्त कर ली थी। बर्तन पर सुन्दर सुन्दर चित्रकारी तथा पालिश भी किया करते थे। पत्थर, सोना, चाँदी, हीरा-जवाहरात और तांबा आदि के आभूषण बनाने में भी वे लोग कुशल थे। वहाँ से सूती कपड़े तो पश्चिम के देशों में भेजे जाते थे। शीशा से भी लोग खूब परिचित थे। रांगा तथा तांबा मिलाकर वे कांसा तैयार कर लेते थे। उस समय में तांबा ने पत्थर का स्थान से लिया था। तांबा के ही भाला, बर्धी, धनुष, बाण, कुल्हाड़ी, और चाकू आदि हथियार बनाये जाते थे। तांबे की एक आरी खुदाई में प्राप्त हुई है। तांबे से कानों की बाली भी बनाई जाती थी।
6. नाप और तौल : हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ों की खुदाई में बाट भी बहुत बड़ी संख्या में मिले हैं जो पत्थर के बने है और चौकोर हैं। कुछ बाट तो इतने बड़े हैं कि उन्हें रस्सी से उठाया जाता होगा और कुछ इतने छोटे हैं कि उनका प्रयोग केवल बहुमूल्य धातुओं के तौलने के लिए जौहरी ही प्रयोग करते होंगे। सारे देश के लिए एक ही तरह का बाट प्रचलित था। इससे यह साफ-साफ जाहिर होता है कि उनकी आर्थिक और राजनैतिक एकता बहुत ही दृढ़ थी। तौलने के लिए धातु का तराजू प्रयुक्त होता था ।
लंबाई तथा चौड़ाई के लिए फुट होता था क्योंकि मोजनजोदड़ों की खुदाई से सीप का बना हुआ एक टुकड़ा मिला है। हड़प्पा में काँसा की बनी एक शलाका मिली है जिस पर छोटे-छोटे भाग अंकित है। यह भी फुट ही है । इन दोनों को देखकर यह परिणाम मिलता है कि उस युग का फुट 13.2 इंच लंबा है।
हड़प्पा सभ्यता की धार्मिक दशा : सिन्धु घाटी के लोग धार्मिक भी थे। उस युग के धर्म की दशा भी अच्छी थी। खुदाई में जो मुहरें पत्थर, ताम्रपत्र एवं धातु की मूर्तियाँ मिली हैं उसे यहाँ के निवासियों के धार्मिक जीवन पर काफी प्रकाश पड़ता है। इन मूर्तियों को निरीक्षण करने से उनके धार्मिक जीवन के विषय में अग्रलिखित तथ्यों का पता चलता है :
1. द्विदेववाद : सिन्धु घाटी के निवासी दो परम शक्तियों में विश्वास करते थे। एक शक्ति पुरम-पुरुष की और दूसरी परम- नारी की थी। लोगों को विश्वास था कि यही दोनों शक्तियाँ सृष्टि की रचना तथा उनका पालन करती है। इस तरह से शिव-पार्वती का दर्शन हमें सिन्धु घाटी की सभ्यता में भी होता है। अतः शिव-पार्वती की उपासना की जाती थी।
2. शिव की उपासना : हड़प्पा में एक ऐसी मुहर मिली है जिसके अध्ययन करने से यह पता चलता है कि सिन्धु घाटी के लोग देवता के भी उपासक थे। उसी मुहर में एक ऐसे देवता की मूर्ति अंकित है जिसके तीन मुँह और तीन नेत्र हैं और उसके सिर पर सींग भी है। यह मूर्ति एक सिंहासन पर स्थित है और योग मुद्रा में दिखाई देती है। इस मूर्ति के दोनों ओर कई पशुओं जैसे हिरण, हाथी, भैंसा, गैण्डा, शेर की मूर्तियाँ बनी हुई है। प्रसिद्ध विद्वान सर जॉन मार्शल के मतानुसार यह मूर्ति पशुपति शिव की है। यदि यह बात ठीक है तो शैव धर्म सबसे अधिक पुराना है। अतः वहाँ लोग शिव के पक्के उपासक थे।
3. महादेवी की उपासना : खुदाई में ऐसे मुहर तथा मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं जिनमें खड़ी नारी का चित्र अंकित है। सर जॉन मार्शल के अनुसार यह चित्र महादेवी का है जिसके उपासक सिन्धु घाटी के लोग थे । यही महादेवी आगे चलकर शक्ति की देवी हो गई जिसकी पूजा आजकल भी हिन्दू लोग किया करते हैं।
4. लिंग और योनी की उपासना : बहुत से पत्थर के टुकड़े ऐसे मिले हैं जो एकदम शिव-लिंग की तरह जान पड़ते हैं। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि वहाँ के लोग लिंग तथा योनी के भी उपासक थे। कुछ पत्थरों के टुकड़ें योनि की आकृति के भी हैं। अतः यहाँ के लोग प्रजनन शक्ति की भी पूजा किया करते थे। लोग मूर्ति पूजा में विश्वास करते थे।
5. प्रकृति पूजा : सिन्धु घाटी के लोग विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक पदार्थों की भी पूजा किया करते थे, जैसे, जल वायु, अग्नि, सूरज और चन्द्रमा। कुछ वृक्षों को ये लोग पवित्र मानते थे और पीपल तथा तुलसी की पूजा किया करते थे। यही परंपरा आज भी हिन्दुओं में वर्तमान है। एक मुहर पर स्वस्तिका तथा चक्र बना हुआ मिला है जिससे यह सिद्ध होता है कि इसके द्वारा सूर्य की उपासना की जाती थी। पशुओं में शेर, चीता, हाथी, गैण्डा, सर्प, साँढ़, और घड़ियाल की भी पूजा प्रचलित थी। लोग मृतकों और राक्षसों के भी उपासक थे। आजकल की भाँति ही उस युग में भी गाय की पूजा होती थी।
राजनैतिक दशा : उनकी राजनैतिक दशा भी अच्छी थी, लेकिन खुदाई में जो चीजें मिली हैं उनसे सिन्धु घाटी के लोगों के राजनैतिक जीवन पर बहुत कम प्रकाश पड़ता है। परन्तु यह ठीक है कि सिन्धु, पंजाब, पूर्वी ब्लूचिस्तान और काठियावाड़ तक फैली हुई सिन्ध सभ्यता के क्षेत्र में एक ही संगठन, एक ही व्यवस्था और एक ही तरह का शासन था। इसका ज्वलन्त उदाहरण यह है कि सारे देश में एक ही तरह का नाप तथा तौल प्रचलित था। एक तरह की मूर्तियाँ बनती थी, एक ही तरह के ढाँचे पर भवनों का निर्माण होता था तथा लिपि भी एक ही थी । यातायात की कमी थी इसलिए दो ही राजधानियाँ थीं- एक हड़प्पा और दूसरा मोहनजोदड़ो। हड़प्पा उत्तरी साम्राज्य की और मोहनजोदड़ो दक्षिणी साम्राज्य की राजधानी थी। सारे देश का इन्हीं दो केन्द्रों से शासन चलता था, लेकिन वहाँ के शासन का स्वरूप क्या था, इस संबंध में कुछ भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता क्योंकि अबतक कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं हो सका है।