प्रश्न- सिंधु-सरस्वती सभ्यता के महत्व और उसकी प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए | इसके निरन्तर अस्तित्व में रहने एवं पतन के कारणों का वर्णन कीजिए।
सिंधु-सरस्वती सभ्यता, जिसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है, विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। यह सभ्यता लगभग 3300-1300 ईसा पूर्व के बीच विकसित हुई थी और इसका विस्तार वर्तमान पाकिस्तान के सिंधु घाटी और भारत के पश्चिमी हिस्सों में था। सरस्वती नदी का उल्लेख वैदिक साहित्य में मिलता है, और आधुनिक अनुसंधान के अनुसार, यह नदी अब सूख चुकी है। इस सभ्यता के प्रमुख नगरों में हड़प्पा, मोहनजोदड़ों, राखीगढ़ी, धोलावीरा और कालीबंगा शामिल हैं।
यह सभ्यता अपने सुव्यवस्थित शहरों, विशालकाय इमारतों, उन्नत जल निकासी प्रणाली और लिपिक प्रणाली के लिए प्रसिद्ध थी। इन शहरों में घरों की बुनियादी संरचना पकी हुई ईंटों से बनी होती थी और उनमें कुएँ, स्नानागार, और जल निकासी प्रणाली की सुविधा जो होती थी। सिंधु-सरस्वती सभ्यता की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता उनका व्यापारिक संबंध था, मेसोपोटामिया तक फैला हुआ था। इसके अतिरिक्त, यहाँ के लोग कृषि, पशुपालन हस्तशिल्प में भी निपुण थे।
इस सभ्यता के लिपि का अभी तक पूर्ण रूप से अनुवाद नहीं हो सका है, जिससे इसकी संस्कृति और सामाजिक संरचना के बारे में पूरी जानकारी नहीं मिल पाई है। पुरातात्विक खुदाई में प्राप्त मृदभांड, मोहर और मूर्तियाँ हमें इस सभ्यता के धार्मिक और सामाजिक जीवन के बारे में महत्वपूर्ण संकेत देते हैं।
सिंधु-सरस्वती सभ्यता ने भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह सभ्यता भारतीय संस्कृति और सभ्यता के विकास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुई है, जिसने आगे की सभ्यताओं के लिए आधारशिला रखी।
सिंधु-सरस्वती सभ्यता का महत्त्व
1. उन्नत शहरी योजना : सिंधु-सरस्वती सभ्यता की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसकी उन्नत शहरी योजना थी। मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, लोथल, और धोलावीरा जैसे नगरों में पाई जाने वाली सीधी सड़कों, जल निकासी व्यवस्था, और पक्की ईंटों से बने घरों ने इसे अन्य समकालीन सभ्यताओं से अलग पहचान दी।
2. सामाजिक और आर्थिक संरचना : इस सभ्यता की सामाजिक संरचना अत्यंत संगठित और व्यवस्थित थी । व्यापार और कृषि मुख्य आर्थिक गतिविधियाँ थीं। व्यापार के लिए सिंधु नदी और समुद्री मार्गों का उपयोग किया जाता था, जिससे यह सभ्यता मेसोपोटामिया और मिस्त्र जैसे दूरस्थ क्षेत्रों के सम्पर्क में थी ।
3. लिपि और लेखन : सिंधु-सरस्वती सभ्यता की लिपि, जिसे हड़प्पाई लिपि कहते हैं, अभी तक पूरी तरह पढ़ी नहीं जा सकी है, परंतु इसके अस्तित्व से यह प्रमाणित होता है कि यह सभ्यता साक्षर थी और इसके लोग लेखन कला से परिचित थे।
4. धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर : इस सभ्यता की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर अत्यंत समृद्ध थी। खुदाई में मिले पशुपति की मूर्तियों, मातृ देवी की प्रतिमाओं, और अन्य धार्मिक प्रतीकों से यह सिद्ध होता है कि इनका धार्मिक विश्वास और अनुष्ठान उन्नत अवस्था में थे।
5. टेक्नोलॉजी और विज्ञान : सिंधु-सरस्वती सभ्यता ने उन्नत टेक्नोलॉजी और विज्ञान के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया । नगरों में मिले स्नानागार, जल निकासी व्यवस्था, और अनाज भंडारण के तरीके उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण को दर्शाते हैं।
सिंधु-सरस्वती सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ
1. शहरीकरण : सिंधु-सरस्वती सभ्यता के नगरों में उन्नत शहरीकरण का स्पष्ट उदाहरण मिलता है। नगरों की योजना ग्रिड प्रणाली पर आधारित थी। सड़कें सीधी और चौड़ी थीं, और मकान एक जैसी ईंटों से बने होते थे। अधिकांश घरों में जल निकासी व्यवस्था और कुएं होते थे, जो उनकी स्वच्छता के प्रति जागरूकता को दर्शाते हैं।
थे।
2. कृषि और पशुपालन : इस सभ्यता के लोग कृषि और पशुपालन में कुशल गेहूँ, जौ, तिल और कपास जैसी फसलों की खेती की जाती थी। सिंचाई के लिए नहरों और कूएँ का प्रयोग होता था। पशुपालन में गाय, भैंस, भेड़ और बकरी का महत्व था।
3. व्यापार और वाणिज्य : सिंधु-सरस्वती सभ्यता का व्यापारिक नेवटर्क विस्तृत थे। और व्यापक था। इनके व्यापारिक संपर्क मेसोपोटामिया, फारस और मिस्त्र तक फैले हुए व्यापार के लिए समुद्री मार्गों और स्थलीय मार्गों का उपयोग किया जाता था। खुदाई में मिली मुहरें और बाट तराजू इनके वाणिज्यिक गतिविधियों का प्रमाण हैं।
4. लिपि और लेखन प्रणाली : हड़प्पाई लिपि, जो अभी तक पूर्णतः समझी नहीं जा सकी है, इस सभ्यता की लेखन प्रणाली का प्रमाण है। खुदाई में मिले मुहरों, मृदभांडों और अन्य वस्तुओं पर इस लिपि के अंकन मिले हैं, जो दर्शाते हैं कि यह सभ्यता साक्षर थी और लेखन का प्रयोग व्यापार, प्रशासन और धार्मिक उद्देश्यों के लिए किया जाता था ।
5. धार्मिक विश्वास : इस सभ्यता के धार्मिक विश्वास और अनुष्ठान अत्यंत उन्नत थे। खुदाई में मिले पशुपति की मूर्तियों, मातृ देवी की प्रतिमाओं, और अग्नि वेदियों से यह प्रमाणित होता है कि यह सभ्यता धार्मिक अनुष्ठानों और पूजा-पाठ में विश्वास रखती थी।
6. वास्तुकला : सिंधु-सरस्वती सभ्यता की वास्तुकला भी उल्लेखनीय थी। मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार, धोलावीरा का जल संचयन प्रणाली और लोथल का गोदीवाड़ा इस सभ्यता की उन्नत वास्तुकला के प्रमाण हैं।
7. हस्तशिल्प : इस सभ्यता के लोग हस्तशिल्प में भी निपुण थे। खुदाई में मिले मनके, मिट्टी के बर्तन, तांबे और कांसे की मूर्तियाँ, और सोने-चांदी के आभूषण इनके हस्तशिल्प कौशल को दर्शाते हैं।
सिंधु-सरस्वती सभ्यता की निरंतरता
सिंधु-सरस्वती सभ्यता, जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक थी। यह सभ्यता लगभग 300 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व तक फली फूली । इस सभ्यता की निरंतरता और उन्नति के पीछे कई कारण थे, जो इसे लंबे समय तक स्थिर और समृद्ध बनाए रखने में सहायक रहे। सिंधु-सरस्वती सभ्यता की एक प्रमुख विशेषता इसकी उन्नत शहरी योजना थी। मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगा और राखीगढ़ी जैसे प्रमुख नगरों में पाई जाने वाली सीधी सड़कों, पक्की ईंटों से बने घरों और उन्नत जल निकासी प्रणाली ने सभ्यता की उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह संकेत करता है कि इन नगरों में योजनाबद्ध ढंग से निर्माण कार्य किया गया था, जिससे सभ्यता की निरंतरता सुनिश्चित हो सकी।
व्यापार और वाणिज्य भी इस सभ्यता की निरंतरता के प्रमुख आधार थे। सिंधु- सरस्वती सभ्यता के लोग मेसोपोटामिया, फारस और अन्य समकालीन सभ्यताओं के साथ व्यापार करते थे। सिंधु नदी और सरस्वती नदी के किनारे बसे नगर व्यापारिक मार्गों पर स्थित थे, जिससे व्यापारिक गतिविधियाँ सुचारू रूप से चलती रहीं। इससे आर्थिक समृद्धि बनी रही और संसाधनों का आदान-प्रदान हुआ, जो सभ्यता की स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण था।
कृषि और पशुपालन भी सिंधु-सरस्वती सभ्यता की आर्थिक स्थिरता का आधार थे। सिंधु और सरस्वती नदियों के किनारे उपजाऊ भूमि होने के कारण यहाँ की कृषि अत्यंत उन्नत थी। गेहूँ, जौ और अन्य फसलों की खेती के साथ-साथ पशुपालन भी होता था, जिससे खाद्य सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता बनी रही। सिंचाई के लिए उन्नत तकनीकों का उपयोग किया जाता था, जिससे कृषि उत्पादन में निरंतरता बनी रही।
धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराएं भी सिंधु-सरस्वती सभ्यता की निरंतरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं। मातृ देवी और पशुपति की पूजा, और धार्मिक अनुष्ठानों की परंपरा ने समाज में एकता और स्थायित्व बनाए रखा । धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों ने समाज को एकजुट रखा और सामाजिक संरचना को मजबूत किया ।
सिंधु-सरस्वती सभ्यता का पतन
सिंधु-सरस्वती सभ्यता के पतन के कई कारण विद्वानों द्वारा प्रस्तुत किए गए हैं। इन कारणों में प्राकृतिक आपदाएँ, पर्यावरणीय परिवर्तन, भूगर्भीय गतिविधियाँ, आक्रमण और सामाजिक विघटन शामिल हैं।
पर्यावरणीय परिवर्तन सिंधु-सरस्वती सभ्यता के पतन का एक प्रमुख कारण माना जाता है। सरस्वती नदी, जो इस सभ्यता के कई नगरों के लिए जल आपूर्ति का मुख्य स्त्रोत थी, धीरे-धीरे सूखने लगी । इसका प्रमुख कारण भूगर्भीय गतिविधियाँ और जलवायु परिवर्तन था। सरस्वती नदी के सूखने के कारण जल संसाधनों की कमी हो गई, जिससे कृषि और जल आपूर्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। इसके परिणामस्वरूप, नगरों में पानी की कमी हो गई और लोग अन्य क्षेत्रों की ओर प्रवास करने लगे।
भूगर्भीय गतिविधियों जैसे भूकंप और धरती के धंसने के कारण भी इस सभ्यता के नगरों को नुकसान पहुंचा। ऐसे आपदाओं के कारण नगरों की संरचना क्षतिग्रस्त हो गईं और लोग सुरक्षित स्थानों की ओर प्रवास करने लगे। भूगर्भीय परिवर्तन के कारण नदियों के मार्ग में बदलाव आया, जिससे जल आपूर्ति प्रभावित हुई और कृषि उत्पादन में कमी आई।
आर्थिक संकट भी सिंधु-सरस्वती सभ्यता के पतन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पर्यावरणीय परिवर्तनों और भूगर्भीय गतिविधियों के कारण कृषि उत्पादन में कमी आई, जिससे आर्थिक संकट उत्पन्न हुआ। व्यापारिक नेवटर्क भी बाधित हुआ, जिससे आर्थिक स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। व्यापार के माध्यम से मिलने वाले संसाधनों की कमी और आर्थिक संकट ने सभ्यता को कमजोर कर दिया।
आक्रमण और संघर्ष भी सिंधु-सरस्वती सभ्यता के पतन में योगदान देते हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि आर्यों के आक्रमण के कारण सिंधु-सरस्वती सभ्यता का पतन हुआ। हालांकि इस सिद्धान्त पर विवाद है, लेकिन संघर्ष और आक्रमण के कारण स्थायी निवासियों को परेशानियों का सामना करना पड़ा और वे अपना नगर छोड़कर अन्यत्र जाने लगे। आक्रमण के कारण सभ्यता की सुरक्षा और संरचना कमजोर हो गई।
सामाजिक विघटन भी सिंधु-सरस्वती सभ्यता के पतन का एक प्रमुख कारण था । आर्थिक और पर्यावरणीय संकटों के कारण समाज में विघटन होने लगा। लोग स्थायी निवास छोड़कर सुरक्षित और संसाधन संपन्न क्षेत्रों की ओर जाने लगे। इससे नगरों का जनसंख्या घनत्व घटने लगा और सभ्यता का पतन तेजी से हुआ। सामाजिक संरचना में आई गिरावट ने सभ्यता को कमजोर कर दिया और उसके पतन में योगदान दिया।
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