प्रश्न – समानता के विभिन्न आयामों की संक्षिप्त विवेचना करें।
समानता की अवधारणा समय की प्रगति के साथ परिवर्तित होती रही है। इसके अनुसार राजनीतिक चिंतक भी इसके परिवर्तित आयामों का विश्लेषण करते रहे हैं। ब्राइस ने इसके नागरिक, राजनीतिक, सामाजिक तथा प्राकृतिक आयामों पर जोर दिया है, तो वार्कर ने सामाजिक तथा कानूनी आयामों पर । लास्की ने इसके राजनीतिक एवं आर्थिक आयामों पर जोर दिया है। वर्तमान समय में समानता के निम्नलिखित आयामों पर मुख्य रूप से जोर दिया जा रहा है—
1. समानता का राजनीतिक आयाम
(Political dimension).
राजनीतिक समानता की माँग औद्योगिक क्रांति की देन है और इसमें अनिवार्य रूप से मताधिकार को विस्तृत करने की माँग समाहित है। इसमें सभी नागरिकों के लिए समान राजनीतिक अधिकारों, सरकार में समान प्रतिनिधित्व तथा सत्ता के पदों में समान सुलभता, बशर्तें उनमें अनिवार्य योग्यताएँ हों, का भाव निहित है। अर्थात् सभी नागरिक जाति, रंग, लिंग, धर्म, भाषा आदि के भेद किये बिना समाज राजनीतिक अधिकारों मत देने, चुनाव लड़ने, सार्वजनिक पद पाने, सरकार की आलोचना करने आदि का उपयोग करते हों । कुशमैन के शब्दों में “व्यवहार में राजनीतिक समानता का आदर्श सार्वभौमिक मताधिकार और प्रतिनिधि सरकार है।” राजनीतिक समानता के अंतर्गत निम्नलिखित अधिकार आते हैं-
(i) मतदान का अधिकार राजनीतिक समानता की सबसे बड़ी शर्त है। सभी नागरिकों को, चाहे वे स्त्री हो या पुरुष, बिना किसी भेद-भाव के मत देने का अधिकार होना चाहिए तथा धर्म, जाति, लिंग, वंश, जन्म-स्थान आदि के आधार पर उनके इस अधिकार पर किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं किया जाना चाहिए। परन्तु नाबालिकों, पागलों तथा विदेशियों को इस अधिकार से वंचित किया जा सकता है।
(ii) सभी नागरिकों को चुनाव में उम्मीदवार होने का समान अधिकार मिलना भी राजनीतिक समानता है। कुछ समय पूर्व तक इंगलैंड में स्त्रियों को संसद का उम्मीदवार होने का अधिकार नहीं था। परन्तु अब वहाँ यह प्रतिबंध नहीं है। परन्तु फ्रांस में अभी भी राजघराने के लोग राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार नहीं हो सकते हैं।
(iii) राज्य के सभी पदों पर नियुक्त होने का अधिकार राज्य के प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से मिलना चाहिए, यदि वह इस हेतु निर्धारित योग्यताएँ रखता हो। इसी प्रकार राजकीय सम्मान प्राप्त करने का अधिकार भी सभी लोगों को मिलना चाहिए। लेकिन राज्य शिक्षा, सेवा अनुभव या किसी विशेष योग्यता के आधार पर विभेद कर सकता है।
(iv) सभी नागरिकों को प्रार्थनापत्र भेजने और उसके माध्यम से अपनी शिकायतों को
सरकार तक पहुँचाने का अधिकार मिलना चाहिए।
राजनीतिक समानता के उपर्युक्त तत्वों को उदारवादी व्यवस्था में बहुत अधिक महत्व दिया जाता है । परन्तु यह केवल सैद्धांतिक है । राजनीतिक समानता तब तक वास्तविक नहीं होती जबतक उसके साथ आर्थिक समानता न हो।
2. समानता का सामाजिक आयाम
(Social dimension)
समानता के सामाजिक आयाम का अर्थ है समाज या राज्य में सामाजिक समता। इसका तात्पर्य यह है कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति के साथ एक जैसा व्यवहार होना चाहिए। इसके अंतर्गत धर्म, जाति, नस्ल, वर्ग या ऊँच-नीच के आधार पर किसी को हेय नहीं समझा जाता इन आधारों पर मनुष्यों के बीच किसी प्रकार का भेद-भाव भी नहीं किया जाता । प्रत्येक व्यक्ति को समाज के एक सामाजिक इकाई के रूप में मान्यता मिलती है। तात्पर्य यह कि दास-प्रथा, बेगार, ऊंच-नीच के भाव, जाति प्रथा आदि पर आधारित सामाजिक विषमता का अंत होना चाहिए। सामाजिक समानता गुलाम प्रथा, कुलीन तंत्रीय सुविधाओं, छूआछूत और रंग-भेद का विरोध करती है । जहाँ पर इन आधारों पर भेद-भाव होंगे या विषमता रहेगी वहाँ सामाजिक समानता नहीं होती।
ऐतिहासिक दृष्टि से सामाजिक समानता किसी भी समय विद्यमान नहीं रही तथा आज भी सामाजिक विषमताएँ विश्व में विद्यमान हैं। उदाहरणस्वरूप, भारत में छूआछूत एवं जाति प्रथा की भावना विद्यमान रही है। यद्यपि संविधान द्वारा इस असमानता को अपराध एवं दंडनीय घोषित किया गया है, लेकिन यह अबतक पूर्णतः समाप्त नहीं हो सका है। अतः आज के समाज में उनका उन्मूलन राज्यों का उद्घोषित उद्देश्य हो गया है। सामाजिक समानता लाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रयास किये जा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्रसंघ की मानव अधिकारों की घोषणा में सामाजिक समता पर अधिक जोर दिया गया है। शिक्षा के व्यापक प्रसार द्वारा मनुष्य के दृष्टिकोण को व्यापक बनाकर समाज में सामाजिक असमानता को दूर कर सामाजिक समता की स्थापना की जा सकती है।
3. समानता का आर्थिक आयाम
(Economic dimension)
आर्थिक समानता की माँग समानता-सिद्धांत का एक महत्वपूर्ण पक्ष है। मार्क्सवादी एवं समाजवादी विचारधारा के प्रसार से वर्तमान सदी में इस पहलू को अधिक बल मिला है। आर्थिक समानता क्या है? इसके निर्धारण में विचारकों में मतभेद है। ब्राइस के अनुसार आर्थिक समानता का अर्थ यह है कि “धनवान और निर्धन के अंतर को समाप्त किया जाय तथा स्त्री-पुरुष को सभी भौतिक पदार्थ समान रूप से प्राप्त हो ।” कुछ लोगों ने आमदनी के समान वितरण को आर्थिक समानता के लिए आवश्यक माना है। प्रारम्भिक उदास्वादियों के अनुसार आर्थिक समानता का अर्थ है – राज्य द्वारा व्यक्ति की आर्थिक गतिविधियों पर हस्तक्षेप न होना । परन्तु यह आर्थिक समानता का अमान्य एवं गलत अर्थ है। आर्थिक समानता का वास्तविक अर्थ है सबों को भौतिक पदार्थों के उपभोग का समान अवसर प्राप्त होना, सभी व्यक्तियों को जीवन की न्यूनतम आवश्यकताएँ उपलब्ध होना, तथा अपने परिश्रम का समुचित पुरस्कार मिलना । संपत्ति का कुछ ही व्यक्तियों के हाथों में केन्द्रित नहीं होना, संपत्ति की दृष्टि से व्यक्तियों में भारी अंतर नहीं होना, संपत्ति एवं मुनाफे पर राज्य का नियंत्रण होना आदि आर्थिक समानता के सहायक तत्व हैं। लास्की के अनुसार सबों को अपने व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिए समान आर्थिक सुविधाएँ एवं अवसर प्राप्त होना आर्थिक समानता है।
आर्थिक समानता राजनीतिक समानता का आधार स्तम्भ है। लास्की के शब्दों में “राजनीतिक समानता कभी भी सार्थक नहीं हो सकती जबतक कि आर्थिक समानता से आबद्ध न हो।” आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक शक्ति समाज के एक वर्ग के हाथों में केन्द्रित हो जाती है और वह वर्ग आर्थिक एवं राजनीतिक दृष्टि से शक्तिशाली बन जाता है। मार्क्स ने कहा भी है कि जो वर्ग अर्थतंत्र पर अधिकार जमा लेता है, वह अंततः राजनीतिक तंत्र को भी अपने नियंत्रण में कर लेता है, जिसका परिणाम शोषण एवं गृहयुद्ध होता है।
परन्तु आर्थिक समानता कैसे लायी जायू, इस प्रश्न पर विचारकों में मतभिन्नता है मार्क्सवादियों के अनुसार आर्थिक समानता खाने के लिए निजी संपति को समाप्त कर देना चाहिए तथा उत्पादन एवं वितरण के साधनों का समाजीकरण कर देना चाहिए। मावर्स के अनुसार, “आर्थिक समानता केवल साम्यवादी व्यवस्था में ही संभव है।” उदारवादी विचारको ने आर्थिक समानता लाने हेतु ‘लोक कल्याणकारी राज्य’ के आदर्श पर जोर दिया है। इसमें उत्पादन के केवल बड़े-बड़े साधनों पर राज्य का नियंत्रण होता है। इस व्यवस्था में भी फैक्ट्री अधिनयिम, कर प्रणाली में सुधार, भूमि के समुचित वितरण तथा जनकल्याणकारी योजनाओं द्वारा जन साधारण को आर्थिक समानता प्रदान करने का प्रयास किया गया है।