समानता के अर्थ की ब्याख्या कीजिए तथा इसके प्रकारों की विवेचना कीजिए।

 साधारण रूप से समानता का अर्थ समस्त व्यक्तियों का समान दर्जा माना जाता है। यह कहा जाता है कि सभी का जन्म-मरण होता है, सभी की एक-सी इन्द्रियाँ होती हैं, अतः ऊँच-नीच, धनी – निर्धन, रंग आदि में भेद नहीं होना चाहिए । परन्तु समानता का यह अर्थ भ्रमपूर्ण है। प्रकृति ने सभी को समान नहीं बनाया है। वे बुद्धि, क्षमता तथा स्वभाव आदि में असमान होते हैं। इस प्रकार प्रकृति ने सभी को समान नहीं बनाया है। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि प्रकृति में समानता – असमानता के गुण विद्यमान हैं। अतः समानता का अर्थ सबकी बराबरी लगाना उचित नहीं है। अब प्रश्न यह है कि समानता का क्या अर्थ होना चाहिए ? प्रो. लास्की ने समानता का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा कि “समानता का यह मतलब नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाये या प्रत्येक व्यक्ति को समान वेतन दिया जाये। यदि ईंट ढोने वाले व्यक्ति का वेतन एक जिलाधीश के बराबर कर दिया जाये तो इससे समाज का उद्देश्य नष्ट हो जायेगा। इसलिए समानता का अर्थ यह है कि कोई विशेष अधिकार वाला वर्ग न रहे और सभी को उन्नति के समान अवसर प्राप्त हों । ” 

इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रो. लास्की ने समानता के अर्थ बताये हैं- (i) किसी को विशिष्ट अधिकार न दिये जायें। प्रत्येक नागरिक उन अधिकारों के योग्य हैं वे अधिकार उसे भी उस सीमा तक और उसी दृढ़ता के साथ प्राप्त होने चाहिए। इस प्रकार समानता से युक्त समाज में राज्य और समाज की ओर से सभी को समान अधिकार दिये जाते हैं। (ii) सभी नागरिकों को अपनी उन्नति के लिए समान अवसर प्रदान होते हैं। 

समानता के प्रकार 

(Kinds of Equality) 

स्वतंत्रता की तरह समानता के भी विभिन्न रूप हैं, यथा नागरिक समानता, सामाजिक समानता, राजनीतिक समानता, आर्थिक समानता, सांस्कृतिक समानता और प्राकृतिक समानता आदि । 

(1) नागरिक समानता (Civil Equality) : नागरिक समानता का अर्थ यह है कि सभी नागरिक राज्य के कानून के समक्ष समान हों तथा बिना किसी भेद-भाव के सभी नागरिकों को नागरिक अधिकारों के उपभोग करने का अधिकार हो । अमीर-गरीब, ऊँच-नीच, जाति, लिंग, धर्म, जन्म आदि के आधार पर नागरिकों में किसी प्रकार का भेद-भाव न हो। अर्थात् जब राज्य प्रत्येक नागरिक को बिना किसी भेद-भाव के समान रूप से नागरिक अधिकार प्रदान करे तथा सबों को कानून का समान संरक्षण प्राप्त हो तो उसे नागरिक समानता कहते हैं। 

(2) सामाजिक समानता (Social Equality) : सामाजिक समानता का अर्थ हैं— समाज से विशेषाधिकारों का अंत होना समाज में सभी व्यक्तियों को व्यक्ति होने के नाते महत्व दिया जाना, धर्म, संपत्ति, वर्ग, वर्ण, रंग, लिंग आदि के आधार पर भेद-भाव की समाप्ति तथा समाज में ऊंच-नीच, गरीब-अमीर, छोटे-बड़े आदि के भेद-भाव का अभाव। सामाजिक समानता मात्र कानून से नहीं, बल्कि शिक्षा-व्यवस्था, नैतिकता के पोषण तथा समुचित एवं सुदृढ़ आर्थिक व्यवस्था से संभव है। सामाजिक समानता की स्थापना के लिए भारत से छुआछूत को समाप्त किया गया है तथा अमेरिका में भी काले-गोरे के भेद-भाव को समाप्त करने के लिए कानून पास किया हुआ है। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने भी मानव अधिकारों की घोषणा में सामाजिक समता पर विशेष बल दिया है। 

(3) राजनीतिक समानता (Political Equality) : राजनीतिक समानता का अर्थ है— राज्य के प्रत्येक व्यक्ति को धर्म, जाति, नस्ल, संपत्ति, लिंग आदि आधार पर भेद- किये बिना राज्य-शासन के संचालन में समान अधिकार की प्राप्ति । अर्थात् सभी नागरिकों को मतदान करने, व्यवस्थापिका का सदस्य चुने जाने तथा कोई भी राजनीतिक पद पाने का समान अधिकार हो। वर्तमान समय रूस, अमेरिका, भारत, इंगलैंड, फ्रांस आदि देशों में राजनीतिक समानता उपलब्ध है। लेकिन महान प्रजातांत्रिक देश स्विटजरलैंड में नारियों को मताधिकार नहीं दिया गया है। एशिया एवं अफ्रीका में अभी भी ऐसे अनेक देश हैं जहाँ राजनीतिक समानता स्थापिता नहीं हुई है। 

(4) आर्थिक समानता (Economic Equality) : आर्थिक समानता प्रजातंत्र का एक आवश्यक आधार स्तम्भ है। सामान्यतः लोग आर्थिक समानता का अर्थ आय की समानता से लगाते हैं। परन्तु यह अर्थ काल्पनिक और भ्रामक है। आर्थिक समानता का वास्तविक अर्थ यह है कि सबों को आर्थिक- न्यूनतम आय का अवसर प्राप्त हो, सबों को अपनी मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति का अवसर मिले, उत्पादन एवं वितरण के साधन कुछ ही व्यक्तियों के हाथों में केन्द्रित न हों, सबों को उत्पादन का उचित हिस्सा पारिश्रमिक मिले, समाज में मनुष्य का मनुष्य से शोषण न हो, अर्थव्यवस्था का आधार समाजवाद या लोककल्याणकारी व्यवस्था हो, प्रत्येक व्यक्ति को जीविकोपार्जन का अधिकार प्राप्त हो तथा सरकार बेकारों, अपाहिजों, अक्षम या वृद्ध लोगों की आर्थिक सहायता करें। इसीलिए आर्थिक समानता को प्रजातंत्र की रीढ़ कहा गया है। लास्की ने कहा है कि “आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक समानता वास्तविक नहीं हो सकती।” (Political equality is never real unless it is accompanied by virtual economic equality”-Laski) 

(5) सांस्कृतिक समानता ( Cultural Equality) : सामाजिक समानता के लिए सांस्कृतिक समानता भी आवश्यक है। प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा, साहित्य, आमोद-प्रमोद आदि बातों में समानता को सांस्कृतिक समानता कहते हैं। यह नागरिकों के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिए एक प्रमुख तत्व है। 

(6) प्राकृतिक समानता : प्राकृतिक समानता का आधार यह है कि प्रकृति ने सवा को समान बनाया है तथा सभी मनुष्य मौलिक रूप से बराबर हैं। अनुबंध-सिद्धांत के प्रतिपादकों ने प्राकृतिक अवस्था के विवरण में मनुष्यों की समानता का विशेष रूप में उल्लेख किया है। फ्रांस की राष्ट्रीय सभा ने मनुष्य के अधिकारों की घोषणा में तथा अमेरिका की स्वातंत्र्य संबंधी घोषणा-पत्र में इसी सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। परन्तु यह विचार भ्रामक है। प्रकृति ने न तो सबों को समान बनाया है और न प्राकृतिक नियम के अनुसार सभी समान हो सकते हैं। कोल के शब्दों में, “मनुष्य शारीरिक बल, पराक्रम, मानसिक योग्यता, सृजनात्मक शक्ति, समाज-सेवा की भावना और संभवतः सबसे अधिक कल्पना – शक्ति में एक-दूसरे से मूलत: भिन्न है।” तात्पर्य यह कि प्राकृतिक समानता की धारणा कोरी कल्पना है। 

क्या आर्थिक समानता के अभाव में, राजनीतिक 

स्वतंत्रता ढकोसला है ? 

अधिकांश विद्वानों का मानना है कि जब तक प्रत्येक नागरिक को आर्थिक क्षेत्र में समान अवसर प्रदान नहीं किये जाते तब तक राजनीतिक स्वतंत्रता की अवधारणा केवल मात्र एक छल है। यदि समाज में आर्थिक विषमता बनी रहती है और धनवान वर्ग विशेषाधिकारों का प्रयोग कर अन्य वर्गों का शोषण करता है तो कैसी स्वतंत्रता। इस परिस्थिति में राजनीतिक सत्ता केवल पूँजीपति वर्ग के हाथों में रहेगी और स्वतंत्रता तथा समानता भ्रमजाल बन जायेगी तथा उनका कोई मूल्य नहीं होगा। 

इस विचारधारा के समर्थकों ने निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किये हैं- 

(1) पूँजीपति वर्ग का जन्म आर्थिक विषमता का ही परिणाम है। आर्थिक समानता न होने पर पूँजीपति वर्ग राजनीतिक क्षेत्र में भी प्रभाव रखेगा और इस कारण राजनीतिक स्वतंत्रता का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा । 

(2) आर्थिक समानता की स्थिति में निर्धन वर्ग पूँजीपतियों से धन लेकर उनके पक्षों में ही अपने मतों का सौदा करेगाँ तथा परिणाम यह होगा कि राजनीतिक स्वतंत्रता मात्र ढकोसला बन जायेगी। 

(3) पूँजीपति वर्ग धन की शक्ति से सरकारी पदों को प्राप्त कर लेंगे और योग्य निर्धन व्यक्ति अपने अधिकारों का उपयोग करने से वंचित रह जायेंगे। 

अतः उपर्युक्त विवेचना से ज्ञात होता है कि इस प्रकार की स्थिति में राजनीतिक स्वतंत्रता का हनन होगा। लास्की के अनुसार, “राजनीतिक स्वतंत्रता उस समय तक वास्तविकता नहीं हो सकती, जब तक कि उसके साथ आर्थिक समानता सम्बद्ध न हो। ” 


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