प्रश्न- श्रुति से क्या समझते है? टिप्पणी करें |
उत्तर- भारतीय शास्त्रीय संगीत में श्रुति एक अत्यंत महत्वपूर्ण और मूलभूत अवधारणा है। श्रुति को संगीत की सबसे छोटी ध्वनि–इकाई माना गया है, जो स्वर से भी अधिक सूक्ष्म होती है। सरल भाषा में कहा जाए तो स्वर के भीतर जो अत्यंत हल्का, सूक्ष्म अंतर या कंपन सुनाई देता है, वही श्रुति कहलाती है। यह वह ध्वनि–स्तर है जिसे एक प्रशिक्षित कान पहचान सकता है और जो संगीत की शुद्धता और माधुर्य को निर्धारित करता है।
भारतीय संगीत–शास्त्र के अनुसार एक सप्तक में 22 श्रुतियाँ होती हैं। इसका मतलब है कि सा से लेकर उच्च सा तक के पूरे सप्तक में 22 सूक्ष्म ध्वनि–स्तर होते हैं। सात शुद्ध स्वरों – सा, रे, ग, म, प, ध, नि – के बीच श्रुतियों का वितरण समान नहीं है; कुछ स्वरों में अधिक और कुछ में कम श्रुतियाँ पाई जाती हैं। उदाहरण के लिए, ‘सा’ और ‘प’ स्थिर स्वर माने जाते हैं, इसलिए इनमें कम श्रुतियाँ होती हैं, जबकि ‘रे’, ‘ग’, ‘ध’ और ‘नि’ में अधिक परिवर्तनशील श्रुतियाँ होती हैं।
श्रुति का महत्व
श्रुति का संगीत में अत्यंत बड़ा महत्व है। किसी भी राग की पहचान, उसकी शुद्धता और उसकी भाव–अभिव्यक्ति श्रुतियों पर निर्भर करती है। दो कलाकार यदि एक ही स्वर गाते हैं, तो भी उनकी गायकी में अंतर दिख सकता है, क्योंकि वे स्वर को अलग–अलग श्रुति–स्थान पर स्थापित कर सकते हैं। सही श्रुति पकड़ना ही एक कुशल गायक की पहचान होती है।
संगीत के प्राचीन ग्रंथों—जैसे नाट्यशास्त्र और संगीत रत्नाकर—में श्रुतियों का विस्तृत विवेचन मिलता है। प्राचीन काल में पूरे संगीत–तंत्र का आधार ही श्रुति–पद्धति थी। वहीं आधुनिक संगीत में श्रुतियों का प्रयोग व्यावहारिक रूप से कम दिखाई देता है, क्योंकि आजकल वाद्य–यंत्रों में स्वर निश्चित स्थान पर निर्धारित होते हैं। फिर भी, गायन और राग–विकास में श्रुति की सूक्ष्मता आज भी अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
निष्कर्ष:- संक्षेप में, श्रुति भारतीय संगीत की आत्मा है। यह ध्वनि की वह सूक्ष्म इकाई है जो संगीत को मिठास, भावनात्मकता और शुद्धता प्रदान करती है। श्रुतियों के कारण स्वरों में गहराई आती है, रागों में जीवन आता है और संगीत सुनने वाले को मनोवैज्ञानिक व आध्यात्मिक अनुभव मिलता है। इसलिए श्रुति का अध्ययन संगीत–विद्यार्थियों के लिए अत्यंत आवश्यक है।
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