प्रश्न – शक्ति की परिभाषा दें। इसके विभिन्न प्रकारों एवं स्रोत का वर्णन करें।
कॉपलान के अनुसार, “शक्ति संगठित क्रिया द्वारा किसी आयोजन को पूरा करने की एक योग्यता है।
मैकाइवर के अनुसार, “शक्ति से हमारा तात्पर्य व्यक्तियों या व्यवहार को नियमित और विनियमित करने या निदेशित करने की क्षमता से है । ”
रॉबर्ट डॉल के शब्दों में, “शक्ति उन क्रियाओं का नाम है, जिनको राजनीति की संज्ञा दी गई है । ”
बर्टेण्ड रसेल के अनुसार, “शक्ति वांछित प्रभाव उत्पन्न करने की क्षमता I मारगंथू के अनुसार, “राजनीतिक शक्ति से राजकीय सत्ता धारण करनेवाले व्यक्तियों के पारस्परिक संबंध तथा जनता के साथ उनके संबंध का बोध होता है।’
एम. जी0 स्मिथ (M. G. Smith) के अनुसार, “शक्ति व्यक्तियों, समूहों, नियमों का, भौतिक साधनों में प्रतिशोध के होते हुए भी, स्वतंत्रतापूर्वक कदम उठाने की क्षमता का नाम है।’
आर० एच० टावनी ( R. H. Tawney) ने शक्ति की परिभाषा करते हुए बताया है, “व्यक्तियों अथवा समूहों के आचरण में मनचाहा परिवर्तन कराने की किसी व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह के सामर्थ्य या क्षमता को शक्ति कहते हैं । ”
सत्ता और शक्ति में अन्तर
(Difference between Authority & Power)
प्रायः सत्ता और शक्ति को एक-दूसरे का ही पर्याय माना जाता है, परन्तु बात यह नहीं है। दोनों एक-दूसरे से संबद्ध होते हुए भी एक-दूसरे से भिन्न हैं। दोनों में निम्नांकित रूप में अंतर है-
1. सत्ता उत्तरदायी होती है परन्तु शक्ति अनुत्तरदायी भी हो सकती है (Authority is accountable but power can be unaccountable) : सत्ताधारी अपने कार्यों के लिये जनता अथवा किसी प्रतिनिध्यिात्मक संस्था के प्रति उत्तरदायी होता है। शक्तिशाली व्यक्ति अपने कार्यों के लिये किसी अन्य व्यक्ति या संस्था के प्रति उत्तरदायी नहीं होता।
2. सत्ता विवेकयुक्त होती है जबकि शक्ति विवेकहीन भी हो सकती है. (Authority is rational while power can be Irrational) : सत्ता विवेकपूर्ण होती है और इसका युक्तिपूर्ण ढंग से प्रयोग किया जाता है । शक्ति के लिये विवेकपूर्ण होना आवश्यक नहीं है, यह विवेकहीन भी हो सकती है।
3. शक्ति दूसरों को प्रभावित करने की क्षमता है जबकि सत्ता अधीनस्थों को आदेश देने का कानूनी अधिकार है (Power is capacity to influence others where as Authority is legal right to command subordinates ) : शक्ति एक व्यक्ति या समूह द्वारा दूसरे व्यक्तियों या समूहों के व्यवहार को नियंत्रित या प्रभावित करने की क्षमता है। इनमें एक व्यक्ति या समूह दूसरों पर अपनी इच्छा लादने की क्षमता रखता है। सत्तां श्रेष्ठ अधिकारियों द्वारा अधीनस्थ व्यक्तियों को आदेश देने का कानूनी अधिकार है। सत्ता के आदेशों को बाध्यकारी निर्णयों के रूप में स्वीकार किया जाता है।
4. शक्ति औचित्यपूर्ण भी हो सकती है और अनौचित्यपूर्ण भी, परन्तु सत्ता सदा औचित्यपूर्ण होती है (Power can be legitmate or illegitimate but authority is always legitimate) : शक्ति औचित्यपूर्ण भी हो सकती है और अनौचित्यपूर्ण भी परन्तु सत्ता सदा औचित्यपूर्ण होती है। चोरों और डाकुओं की शक्ति अनौचित्यपूर्ण होती परन्तु राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की शक्ति औचित्यपूर्ण होती है । औचित्यपूर्ण शक्ति को ही सत्ता कहते हैं ।
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5. शक्ति बल प्रयोग पर आधारित होती है, परन्तु सत्ता सहमति पर आधारित होती है (Power is based on force but authority is based on consent ) : शक्ति बल प्रयोग, दमन, डर या छल योजना पर आधारित होती है। इसके विपरीत सत्ता जन- सहमति अथवा जनता के समर्थन पर आधारित होती है।
शक्ति के विभिन्न रूप / प्रकार
(Different forms of Power)
शक्ति का वर्गीकरण भी विभिन्न आधारों पर किया जाता है। बर्टेड रसेल ने अपनी पुस्तक ‘पावर : ए न्यू सोशल एनालिसिस’ में शक्ति के तीन रूपों की चर्चा की है— परंपरागत शक्ति (Traditional power), क्रांतिकारी शक्ति (Revolutionary power) तथा नंगी शक्ति (Naked power) । नंगी शक्ति को उन्होंने निरंकुश शक्ति के रूप में परिभाषित किया। इसी परंपरागत तरह औचित्य के आधार पर भी शक्ति के तीन रूप हैं-कानूनी या वैधानिक, तथा करिश्मावादी (Charismatic)। एक अन्य विद्वान बीयर्सटेड (Bierstedt) ने भी शक्ति के विभिन्न रूपों की चर्चा की है। इन्होंने शक्ति के अनेक रूपों की चर्चा की है-
(क) दृढ़ता के आधार पर – (i) प्रच्छन्न शक्ति, (ii) अभिव्यक्त शक्ति,
(ख) बल-प्रयोग के आधार पर – (i) दमनात्मक शक्ति, (ii) अदमनात्मक शक्ति,
(ग) औपचारिकता के आधार पर – (i) औपचारिक तथा (ii) अप्रत्यक्ष,
(घ) प्रवाह तथा दिशा – दृष्टि के आधार पर – (i) एकपक्षीय, (ii) द्विपक्षीय तथा (iii) बहुपक्षीय,
(ड)केन्द्रीकरण के आधार पर – (i) संकेंद्रित, (ii) विकेंद्रित तथा (iii) विस्तृत,
(च) क्षेत्रीयता के आधार पर – (i) अंतरर्राष्ट्रीय शक्ति, (ii) राष्ट्रीय शक्ति तथा
(iii) भूखंड विशेष से संबद्ध शक्ति।
शक्ति के इन विभिन्न रूपों के आधार पर हम सामान्य रूप से समाज में निम्नांकित रूप से तीन तरह की शक्ति का रूप पाते हैं-
(i) राजनीतिक शक्ति (Political Power) : एक राजनीतिक समाज में कानून, पुलिस, सेना, अफसरशाही, न्यायालय, राजनीतिक दल, दबाव समूह (pressure group), जनमत इत्यादि में राजनीतिक शक्ति पाई जाती है। प्रो० इलियट (Elliot) के अनुसार, अपनी इच्छा को बलपूर्वक मनवा सकने की क्षमता को ही राजनीतिक शक्ति कहा जाता है, बशर्ते उसका उपयोग राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किया जाए। वास्तव में, राजनीतिक शक्ति नीतियाँ बनाने, नीतियों को प्रभावित करने, नीतियों को लागू करने तथा नीतियों के उल्लंघन पर दंड देने की शक्ति को कहते हैं।
(ii) आर्थिक शक्ति (Economic Power ) : आर्थिक संसाधनों के मालिक आर्थिक शक्ति रखते हैं, जो राजनीतिक शक्ति को भी अपने हित में प्रभावित करती है। रॉबर्ट डॉल ने स्वीकार किया है कि आर्थिक शक्ति का राजनीतिक शक्ति के प्रयोग पर बड़ा असर होता है। कार्ल मार्क्स का विचार भी था कि आर्थिक शक्ति ही मानव में राजनीतिक शक्ति की दिशा-निर्देशक होती है।
(iii) वैचारिक शक्ति (Ideological Power) : वर्तमान राजनीति में वैचारिक शक्ति का महत्वपूर्ण स्थान है। जनता का राजनीति में हिस्सा लेने से राजनीतिक विचारधारा का एक महत्वपूर्ण स्थान हो गया है और वह अपने आप में एक बड़ी शक्ति बन गई है। चार्ल्स मैरियम ने ठीक ही कहा है, “बंदूकों, जहाजों, किलों और टैंकों की कतारों में शक्ति का निवास नहीं है। इन सबका अपना महत्व है, किन्तु वास्तविक राजनीतिक शक्ति लोगों की भावना में निवास करती है ।” वैचारिक शक्ति का निवास केवल विचारों, परंपराओं तथा नैतिकता में ही नहीं है, वरन् चर्च (धार्मिक संस्थाएँ), राजनीतिक दल, ट्रेड यूनियनों, शैक्षणिक संस्थाओं, जन संपर्क के साधन इत्यादि में भी है। पोलजे ने इन सब वैचारिक शक्तियों को राज्य की प्रणाली का अंग माना तथा राज्य की शक्ति स्वीकार की है।
शक्ति का स्रोत
(Sources of Power)
शक्ति के विभिन्न स्रोत है। शक्ति के विभिन्न स्रोतों में बल, बल-प्रयोग, राजनीतिक सत्ता, प्रशासकीय पद, सम्मान, आर्थिक साधन, व्यक्तिगत आकर्षण, प्रेम का प्रभाव, नैतिक आचरण इत्यादि के नाम लिए जा सकते है। यह निश्चित करना मुश्किल है कि शक्ति किन गुणों पर आधृत होती है। हम कह सकते हैं कि नेपोलियन, हिटलर, मुसोलिनी, गाँधी और बुद्ध सभी शक्तिशाली थे, जबकि उनकी शक्ति के स्रोत आधार अलग-अलग थे। समय और परिस्थिति के अनुसार शक्ति के स्रोत बदलते रहते हैं। फिर भी, सामान्य विवेचन के लिए शक्ति के दो स्रोतों की चर्चा की जा सकती है- (i) आंतरिक स्रोत तथा (ii) बाह्य स्रोत |
(i) आंतरिक स्रोत : ज्ञान, व्यक्तिगत सम्मान, आत्मनियंत्रण, नैतिकता, प्रेम आदि ऐसे तत्व हैं, जो हमें शक्ति प्राप्ति में सहायता देते हैं। इन आंतरिक स्रोतों के द्वारा मनुष्य अपने लक्ष्यों की प्राप्ति की क्षमता रखता है, तत्पश्चात् शक्ति से पूर्ण होता है। ज्ञान के द्वारा न केवल मनुष्य भौतिक चीजों पर नियंत्रण स्थापित करता है, वरन् नए लक्ष्यों एवं अवसरों को भी प्राप्त करता है । किसी-किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व और नैतिक बल ही शक्ति का आधार बन जाता है, जैसे- सुभाषचंद्र बोस तथा महात्मा गाँधी ।
(ii) बाह्य स्रोत : शक्ति के बाह्य स्रोतों में आर्थिक साधन तथा परिस्थितियों का महत्वपूर्ण स्थान है। आज जिसके पास आर्थिक साधन है, वह महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति का उपयोग करता है। प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष शक्ति का एक महत्वपूर्ण बाह्य स्रोत संगठन है। शक्ति की दृष्टि से मनुष्य का सबसे बड़ा संगठन राज्य है, जो आवश्यकता पड़ने पर समाज के सारे साधनों को अपने हाथ में ले लेता है । बल-प्रयोग भी शक्ति का एक बाह्य स्रोत है।
शक्ति की सीमाएँ
(Limitations of Power)
राज्य के कार्यक्षेत्र में निरंतर विकास हो रहा है और फलस्वरूप उसकी शक्ति भी बढ़ रही है। राजनीतिक शक्ति आँज व्यापक बनती जा रही है और अब तो यह स्थिति आ गई है कि शक्ति की महत्ता ही राजनीतिक शक्ति के पीछे गौण पड़ गई है। नि:संदेह शक्ति की कुछ सीमाएँ हैं । इसे हम यों कह सकते हैं कि कुछ तत्व हैं, जो शक्ति को लाँघते हैं। शक्ति की अवधारणा को सीमित करनेवाले कुछ महत्वपूर्ण तत्व इस प्रकार हैं-
(i) राजनीतिक चेतना का विकास : आज नागरिकों में धीरे-धीरे राजनीतिक चेतना का विकास हो रहा है, जो कि राजनीतिक शक्ति पर एक प्रभावशाली नियंत्रण के रूप में काम करती है। प्रजातांत्रिक युग में निरंकुश राजनीतिक शक्ति को लोकचेतना के आगे झुकना पड़ता है।
(ii) इतिहास और परंपराएँ : राजनीतिक शक्ति के प्रयोग में परंपराएँ एक नियंत्रक का काम तो करती हैं, इतिहास के तथ्यों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
(iii) नैतिकता : शक्ति के प्रयोगकर्ता को उचित-अनुचित का ज्ञान कराकर शक्ति के दुरुपयोग को रोका जा सकता है।
(iv) धर्म : धर्म तो राजनीतिक शक्ति पर एक महत्वपूर्ण प्रतिबंध है। कोई भी राजनीतिक शक्ति धार्मिक भावनाओं के खिलाफ जाने का साहस नहीं करती।
(v) समूहों का दबाव : आज विभिन्न दबाव समूह (pressure groups ) राजनीतिक शक्ति को सीमित करते हैं। जैसे श्रम संगठन, प्रेस, शैक्षणिक संगठन इत्यादि ।
(vi) सार्वजनिक सहमति ।
(vii) बाह्य नियंत्रण ।
(viii) विरोधी दल : आज राजनीतिक शक्ति को सीमित करने में विरोधी दलों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।
निःसंदेह शक्ति की अवधारणा असीम नहीं है। यह लगातार सीमित रही है। सच तो यह है कि हिंसा के बल पर जिस समाज का निर्माण किया गया हो, उसी के द्वारा उसका विनाश भी हो गया। शक्ति की अभिव्यक्ति केवल दबाव और दमन नहीं है, बल्कि एक स्थायी प्रभाव है, जो तभी रह सकता है, जबकि लोकहित को ध्यान में रखा जाए।