प्रश्न – वैश्विक न्याय (Global Justice) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
आधुनिक युग के आरंभ से लेकर 21वीं शताब्दी की संपूर्ण अवधि में न्याय की अवधारणा में रुचि रखने वाले राजनीतिक चिंतकों ने प्रमुखतः केवल राष्ट्र के अंदर राष्ट्रीय मुद्दों एवं समस्याओं पर ही विचार किया अर्थात् राज्य को अपने नागरिकों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए तथा नागरिकों के परस्पर संबंध क्या एवं कैसे होने चाहिए। परस्पर प्रभुसत्ताधारी राज्यों के मध्य अथवा सीमाओं के पार व्यक्तियों के बीच न्याय एक गौण विषय था, जिसे उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांतकारों हेतु छोड़ रखा था। 1980 के पश्चात् वैश्विक न्याय समकालीन राजनीतिक दर्शन का एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बना । वैश्विक न्याय की धारणा मुख्यतः तीन संबंधित मुद्दों वितरणात्मक न्याय, नैतिक सार्वभौमिकता एवं प्रमुख वित्तीय संस्थानों के इर्द-गिर्द घूमती है । वितरणात्मक न्याय का मुद्दा धन, संपदा तथा संसाधनों के वर्तमान वितरण पर न्यायोचित प्रक्रिया से संबंधित है। हमारे देश में गरीबी है तो ऐसे में क्या गरीबों की सहायता करना पूँजीपतियों का कर्त्तव्य है या सहायता की भावना परोपकार एवं दान तक आकर रुक जाती है या नैतिक दृष्टि से ऐसा जरूरी है। इसके अलावा क्या वैश्विक राजनीति एवं आर्थिक संस्थाएँ जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ, विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व व्यापार संगठन, अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों, बहुराष्ट्रीय निगम एवं अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय वैश्विक न्याय के आदर्श को प्राप्त करने में उत्तम सिद्ध होंगी। अब तक स्वतंत्रता, समानता, न्याय एवं अधिकार जैसे मुद्दे निश्चित भू-सीमा के अंदर राष्ट्र-राज्यों के अधिकार क्षेत्र में थे। लेकिन वैश्वीकरण की धारणा ने इस परंपरागत धारणाओं को खुली चुनौती प्रदान की है। आज सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि क्या पश्चिम के समृद्ध देशों को विकासशील एवं अविकसित देशों के उपेक्षित वर्गों, संस्कृतियों, कुप्रथाओं पर ध्यान देना चाहिए या सिर्फ प्राकृतिक तथा मानवीय संसाधनों के दोहन तक स्वयं को सीमित रखना चाहिए ।
दूसरे शब्दों में, वैश्विक न्याय की अवधारणा हमारे समय की सबसे महत्वपूर्ण और जटिल अवधारणाओं में से एक है। यह विचार करता है कि दुनिया के सभी लोगों को समान अधिकार, अवसर और संसाधन मिलने चाहिए, चाहे वे किसी भी देश, जाति, धर्म या आर्थिक स्थिति से हों। यह एक ऐसी स्थिति का परिकल्पना करता है जहाँ हर व्यक्ति का जीवन मूल्यवान माना जाए और उसे गरिमा, सम्मान और सुरक्षा के साथ जीने का अधिकार मिले। वर्तमान वैश्वीकरण के दौर में, जहाँ दुनिया एक दूसरे से अधिक जुड़ी हुई है, अवधारणा और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
वैश्विक न्याय की आवश्यकता : आज की दुनिया में असमानता और अन्याय की कई समस्याएँ हैं जो वैश्विक न्याय की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं। विकसित देशों और विकासशील देशों के बीच भारी आर्थिक असमानता है। विकसित देशों के पास अत्यधिक संसाधन और धन है, जबकि विकासशील और अविकसित देशों में लोग बुनियादी जरूरतों से वंचित हैं। इस असमानता का परिणाम यह होता है कि गरीब देशों के लोग शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों से वंचित रहते हैं।
पर्यावरणीय समस्याएँ भी वैश्विक न्याय की आवश्यकता को बढ़ाती हैं। जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों की कमी जैसी समस्याएँ अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग की मांग करती हैं। यदि इन समस्याओं का समाधान नहीं किया गया, तो इसका प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ेगा, खासकर उन देशों पर जो पहले से ही आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर हैं।
वैश्विक न्याय के सिद्धांत : वैश्विक न्याय के कई सिद्धांत हैं जो यह निर्धारित करते हैं कि इसे कैसे लागू किया जाना चाहिए। इनमें से कुछ प्रमुख सिद्धांत हैं :
1. समानता का सिद्धांत : यह सिद्धांत कहता है कि सभी मनुष्यों को समान अधिकार और अवसर मिलना चाहिए। किसी भी प्रकार का भेदभाव अस्वीकार्य है। इसका मतलब है कि जाति, धर्म, लिंग या आर्थिक स्थिति के आधार पर किसी के साथ भी भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।
2. पुनर्वितरण का सिद्धांत : इस सिद्धांत के अनुसार, दुनिया के संसाधनों और धन का पुनर्वितरण होना चाहिए ताकि गरीब और वंचित लोगों को भी उनके हिस्से का लाभ मिल सके। यह सिद्धांत विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह आर्थिक असमानता को कम करने में मदद करता है।
3. अंतरर्राष्ट्रीय सहयोग का सिद्धांत : यह सिद्धांत कहता है कि सभी देशों को एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करना चाहिए ताकि वैश्विक समस्याओं का समाधान हो सके। इसमें आर्थिक सहयोग, तकनीकी सहायता, और ज्ञान का साझा करना शामिल है।
4. मानवाधिकारों का सिद्धांत : यह सिद्धांत मानता है कि हर व्यक्ति को बुनियादी मानवाधिकार प्राप्त होना चाहिए, जैसे कि भोजन, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा। इन अधिकारों का सम्मान और सुरक्षा करना प्रत्येक सरकार और अंतरर्राष्ट्रीय संस्था का कर्तव्य है।
वैश्विक न्याय के लिए चुनौतियाँ : वैश्विक न्याय के लागू करना एक कठिन कार्य है क्योंकि इसके सामने कई चुनौतियाँ हैं :
1. आर्थिक असमानता : दुनिया के विभिन्न हिस्सों में आर्थिक असमानता बहुत अधिक है। विकसित देशों के पास अधिक संसाधन और धन है, जबकि विकासशील और अविकसित देशों में लोग गरीबी में जीवन बिता रहे हैं। यह असमानता वैश्विक न्याय की दिशा में एक बड़ी बाधा है।
2. राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी : वैश्विक न्याय को लागू करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है, जो अक्सर कम होती है। कई देश अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हैं और वैश्विक समस्याओं को नजर अंदाज करते हैं।
3. संस्कृति और धर्म का प्रभाव : विभिन्न देशों और समाजों की अपनी-अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताएँ होती हैं, जो वैश्विक न्याय के सिद्धांतों के साथ मेल नहीं खाती। इससे वैश्विक न्याय को लागू करने में कठिनाई होती है।
4. पर्यावरणीय चुनौतियाँ : पर्यावरणीय समस्याएँ जैसे कि जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और संसाधनों की कमी, वैश्विक न्याय की दिशा में बड़ी बाधाएँ हैं। इन समस्याओं का समाधान बिना अंतरर्राष्ट्रीय सहयोग के संभव नहीं है।
वैश्विक न्याय के लिए उपाय : वैश्विक न्याय को लागू करने के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं :
1. अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का सशक्तिकरण: संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्थाओं को अधिक सशक्त और प्रभावी बनाया जाना चाहिए ताकि वे वैश्विक न्याय के सिद्धांतों को लागू कर सकें। इन संस्थाओं के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नीतियों का निर्माण और निगरानी की जा सकती है।
2. वैश्विक कराधान प्रणाली : एक वैश्विक कराधान प्रणाली लागू की जा सकती है जिसमें अधिक आय वाले देशों और व्यक्तियों से अधिक कर वसूला जाए और इसे गरीब और विकासशील देशों में विकास कार्यों में उपयोग किया जाए। इससे आर्थिक असमानता को कम किया जा सकता है।
3. शिक्षा और जागरूकता : वैश्विक न्याय के महत्व के बारे में शिक्षा और जागरूकता फैलाने के लिए अभियान चलाए जाने चाहिए। इससे लोगों में संवेदनशीलता और सहानुभूति की भावना बढ़ेगी और वे वैश्विक न्याय के लिए समर्थन करेंगे।
4. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में सुधार : अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नीतियों में सुधार किया जाना चाहिए ताकि विकासशील देशों को भी लाभ मिल सके। इससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा और वे आत्मनिर्भर बन सकेंगे।
5. पर्यावरण संरक्षण : पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग और प्रयास किए जाने चाहिए। इससे प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण होगा और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और स्वस्थ पर्यावरण सुनिश्चित हो सकेगा।
निष्कर्ष : वैश्विक न्याय एक महत्वपूर्ण अवधारणां है जो यह मानती है कि दुनिया के सभी लोगों को समान अधिकार और अवसर मिलना चाहिए। यह केवल किसी विशेष देश या समाज तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक सिद्धांत है जो सभी मनुष्यों के लिए लागू होता है। हालांकि, इसे लागू करने में कई चुनौतियाँ हैं, लेकिन अंतरर्राष्ट्रीय सहयोग, शिक्षा, और राजनीतिक इच्छाशक्ति के माध्यम से इन चुनौतियों को पार किया जा सकता है। वैश्विक न्याय के सिद्धांतों को अपनाकर हम एक ऐसा विश्व बना सकते हैं जहाँ सभी लोग समानता, न्याय और गरिमा के साथ जीवन जी सकें।