वैधता (औचित्यपूर्णता) से आप क्या समझते हैं? वैधता प्राप्ति के स्त्रोतों का वर्णन कीजिए। 

औचित्यपूर्णता राजनीतिक विश्लेषण की एक प्रमुख अवधारणा है। इसका स्वयं में अपना कोई मूल्य नहीं है, बल्कि यह संरचनाओं, कार्यो, निर्णयों, नीतियों आदि की औचित्यता सिद्ध करती है तथा उन्हें न्यायसंगत और नैतिक बनाती है। इसके अभाव में शक्ति केवल बल मात्र रह जाती है और शासक शासन करने का आधार खो बैठते हैं तथा विरोध, अशान्ति तथा विद्रोह आदि उत्पन्न होने लगते हैं। 

औचित्यपूर्णता शब्द का अंग्रेजी रूपान्तर लेजिटिमैसी (Legitimacy) है जिसकी उत्पत्ति लैटिन शब्द लेजिटिमम्स (Legitimums) से हुई है। इसका तात्पर्य ‘वैधानिक’ कानूनी (Lawful) से लगाया गया है। 

सामान्य विज्ञान की अवधारणा के रूप में औचित्यपूर्णता (Legitimacy) का सम्बन्ध मात्र कानून से नहीं है, अपितु शासन एवं शासित के ऐसे मूल्यों एवं विश्वास से भी है जो . शासन को न्यायसंगत बनाते हैं। 

इस प्रकार स्पष्ट है कि राजनीति विज्ञान में औचित्यता का अभिप्राय है, स्वीकृत नियमों एवं क्रियाविधियों पर आधारित सत्ता का उपयोग या शक्ति का प्रयोग। 

डोल्फ स्टर्न बर्जर के अनुसार, “औचित्यपूर्णता शासन की शक्ति का ऐसा आधार है जिसका प्रयोग सरकार इस जानकारी के आधार पर करती है कि उसे शासन करने का अधिकार है और उसके इस अधिकार को शासितों की स्वीकृति प्राप्त है। 

कार्ल जे. फ्रेडरिक के अनुसार, “औचित्यपूर्णता कानूनों और शासकों के न्यायसंगत होने का ऐसा प्रतीक है जो उनकी सत्ता में वृद्धि करता है । 

रॉवर्ट ए. डहल के शब्दों में, “औचित्यपूर्णता का अर्थ ही यह विश्वास है कि संरचना, प्रक्रियाएँ, कार्य, निर्णयों, नीतियाँ, पदाधिकारी या शासन के नेताओं में न्यायसंगतत्ता, औचित्य और नैतिक अच्छाई के गुण हैं। ” 

एस.एम. लिपसैट के अनुसार, “औचित्यपूर्णता का अभिप्राय व्यवस्था की उस योग्यता और क्षमता से है जिसके द्वारा यह विश्वास उत्पन्न किया जाता है और इसे स्थिर रखा जाता है कि वर्तमान राजनीतिक संस्थाएँ समाज हेतु सर्वाधिक उचित हैं। ‘ 

जीन ब्लोन्डेल के अनुसार, “औचित्यपूर्णता से अभिप्राय वह सीमा है जिस सीमा तक लोग उस संगठन को, जिससे वह सम्बन्धित है, बिना पूछताछ के तथा स्वाभाविक रूप में ही स्वीकार करते हैं-सहमति या स्वीकृति का क्षेत्र जितना विशाल होगा, वह संगठन उतना ही अधिक औचित्यपूर्ण होगा । ” 

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि औचित्यपूर्णता वह शक्ति है जो सत्ताधारियों और जनता में स्थायी सम्बन्ध जोड़ती है। 

वैधता की प्रकृति अथवा वैधता के लक्षण / विशेषताएँ 

वैधता की प्रकृति अथवा लक्षणों एवं विशेषताओं का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है- 

(1) वैधता कोई व्यक्तिनिष्ठ तत्व नहीं, विश्वासनिष्ठ होती है : वैधता प्रचलित विश्वासों या सदाचार का पर्यायवाची नहीं हैं। यह सहभाग से उत्पन्न होती है जो व्यवस्था और सत्ता को न्यायसंगत बनाती है। यह शासकों और शासितों के मध्य सम्बन्ध स्थापित करती है। यह वह विश्वास, मनोभाव या दृष्टिकोण है जो शासितों को आज्ञाओं का पालन करने के लिए कहता है। यह वह विश्वास है कि शासक न्यायसंगत है, शासक की आज्ञाएँ सामान्य हित में हैं । वैधता का विश्वास की अनुयायियों में भक्ति, वफादारी, सहमति तथा सहयोग उत्पन्न करता है। 

(2) वैधता एक मानकीय आवश्यकता है : वैधता किसी राजनीतिक व्यवस्था की एक मानकीय आवश्यकता है। यह एक साधन है जो यह प्रमाणित करती है कि राजनीतिक व्यवस्था उन्हीं मूल्यों पर आधारित है जिन्हें जनता उचित मानती है। वैधता दूसरी आवश्यकताओं – शक्ति, प्रभाव, सत्ता आदि को पुष्ट करती है। यही कारण है कि सभी शासकीय संस्थाएँ या राजनीतिक संस्थाएँ अपने निर्णयों के लिए व्यापक स्वीकृति प्राप्त करने की कोशिश करती हैं। 

यह मानकीय आवश्यकता समय, समाज और संस्कृति के अनुसार भिन्न-भिन्न हो सकती है, परन्तु इसका महत्व सभी राजनीतिक व्यवस्थाओं के लिए है, चाहे वह व्यवस्थां प्रजातन्त्रवादी हो, चाहे अधिनायकवादी या साम्यवादी । प्रजातान्त्रिक राजनीतिक व्यवस्थाओं में इसकी अपेक्षाकृत अधिक आवश्यकता होती है क्योंकि प्रजातन्त्र में कोई भी बहुमत अधिक देर तक अल्पमत की उपेक्षा नहीं कर सकता। 

(3) वैधता मात्र वैधानिकता नहीं है : वैधता वैधानिकता से कहीं अधिक गहन, व्यापक और उच्च-स्तरीय होती है। अनेक कानून अनुचित भी होते हैं। जब भी वैधानिक आधारों पर बनाये गये कानून जनता के मूल्यों के अनुरूप नहीं होते हैं, तो जनता उन्हें वैधता नहीं देती है और उनका विरोध करती है। 

(4) वैधता सत्ता नहीं है बल्कि यह सत्ता को स्थायित्व देती है : औचित्यपूर्ण शक्ति बिना सत्ता के विद्यमान हो सकती है परन्तु सत्ता औचित्यपूर्णता के अभाव में बहुत देर तक स्थिर नहीं रह सकती । फिर भी दोनों एक-दूसरे के लिए अति आवश्यक हैं। जहाँ सत्ता वैधता को पुष्ट करती है वहीं वैधता सत्ता में वृद्धि करती है। 

(5) वैधता द्वारा शक्ति को सत्ता में परिवर्तित किया जाता है : शक्ति को सत्ता की स्थिति तभी प्राप्त होती है जब उसने जन-सामान्य की दृष्टि से वैधता प्राप्त कर ली हो। वैधता से शक्ति के प्रभाव में वृद्धि होती है और उसे जन-सहमति प्राप्त होती है, जो उसके स्थायित्व में सहायक होती है। 

(6) वैधता का आधार विस्तृत सामाजिक स्वीकृति है : किसी भी राजनीतिक व्यवस्था की वैधता के लिए सम्पूर्ण समाज की सामान्य सहमति व स्वीकृति की आवश्यकता होती है। यह स्वीकृति किसी शक्ति या बाह्य दबाव के अधीन नहीं दी जानी चाहिए, अपितु यह समाज की विवेकपूर्ण, ऐच्छिक एवं विश्वासपूर्ण स्वीकृति होती है। 

(7) औचित्यपूर्णता गतिशील अवधारणा : औचित्यपूर्णता समय, परिस्थितियों तथा राजनीतिक वातावरण के अनुरूप अपने आपको परिवर्तित करती रहती है। मध्यकाल में औचित्यपूर्णता को अनाधिकार ग्रहण के विरूद्ध भावना के रूप में स्वीकार किया गया था, परन्तु वर्तमान समय में इन अवधारणा में परिवर्तन आ गया है। वर्तमान समय में राज्य विप्लवों अथवा क्रान्तियों को भी आवश्यक रूप से औचित्यपूर्णता नहीं माना जाता है। यदि राज्य विप्लव सफल हो जाते हैं तब समय व्यतीत होने के साथ-साथ औचित्यपूर्णता के ‘नवीन विचार-नियम उन्हें औचित्यपूर्ण स्वीकार करा देता है। 

( 8 ) औचित्यपूर्णता का मापन सम्भव : राजनीतिक वैज्ञानिकों का यह विचार है कि औचित्यपूर्णता का मापन भी सम्भव है यद्यपि यह एक कठिन कार्य है। तब भी इसके मापन के लिए कुछ अनुभवात्मक संकेतकों का प्रयोग किया है। ये संकेतक विश्वसनीयता की मात्रा पर आधारित हैं। 

वैधता या औचित्यपूर्णता के स्त्रोत 

मैक्स वेबर ने औचित्यपूर्णता के तीन स्त्रोत – (1) परम्परा, (2) संविधान या बुद्धिसंगत कानून तथा (3) चमत्कार (करिश्मा) बताये हैं। 

आधुनिक युग में औचित्यपूर्णता के प्रमुख स्त्रोत निम्नलिखित हैं- 

(1) परम्परा : राजनीतिक व्यवस्था की औचित्यता उस समय प्राप्त हो सकती है। जब सत्ता का प्रयोग करने वालों का पद और उनकी सत्ता स्थापित परम्परा पर आधारित हो । यदि स्थापित परम्पराओं की अवहेलना करके कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह शक्ति को अपने हाथों में लेता है तो ऐसे शासकों की वैधता को स्वीकार नहीं किया जा सकता। 

(2) बुद्धिसंगत कानून या संविधान : वर्तमान प्रबुद्ध राजनीतिक समाजों में यह के औचित्य का आधार है। जब लोग चुनाव में मतों द्वारा किसी व्यक्ति का चयन करते हैं तो उसे शासन करने के अधिकार का औचित्य प्राप्त हो जाता है। व्यवस्था की वैधता बनाए रखने के लिए यह भी आवश्यक है कि विधि-विधान लोगों के मूल्यों और विश्वासों के अनुरूप हों। 

(3) करिश्मा या व्यक्तित्व : नेताओं का करिश्मा भी औचित्यपूर्णता का आधार हो सकता है। यदि राजनीतिक व्यवस्था का नेतृत्व करने वाले व्यक्ति या वर्ग में चमत्कारिक व्यक्तित्व का गुण है तो सामान्यजन नेतृत्व और व्यवस्था के प्रति सम्मोहन का अनुभव करते हैं और व्यवस्था के प्रत्येक आदेश का पालन करना अपना धर्म समझते हैं। मैक्स वेबर ने मूसा, बुद्ध और मुहम्मद की शक्ति को, जिन्होंने अपने धर्म की स्थापना की, करिश्मा की संज्ञा दी है। 

(4) विचारधारा : विचारधारा भी औचित्यपूर्णता का आधार हो सकती है। वर्तमान गैर-धार्मिक, गैर-परम्परा विश्व में विचारधारा सही और गलत मापदण्ड निर्धारित करती है। उदाहरण के लिए, साम्यवादियों के लिए साम्यवादी विचारधारा, मार्क्सवादियों के लिए मार्क्सवादी विचारधारा तथा राष्ट्रवादियों की राष्ट्रवादी विचारधारा आदि। 

(5) वैधानिक व्यवस्था : किसी भी राजनीतिक व्यवस्था का आधार वैज्ञानिक होने पर उस व्यवस्था की वैधता को प्रायः स्वीकार किया जाता है। वैधानिक आधारों का अभिप्राय यह है कि जिस विधि के द्वारा किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह ने राजनीतिक शक्ति ग्रहण की है, वह विधि वैधानिक रूप से अनुचित नहीं है, उसे वैधानिक व्यवस्थाओं की स्वीकृति प्राप्त है। 

(6) प्रभावकता : आधुनिक युग में किसी व्यवस्था के लिए वैधता प्राप्त करने का प्रमुख स्त्रोत उसका प्रभावी होना भी है। व्यवस्था द्वारा नागरिकों के जीवन, सम्पत्ति तथा हितों की रक्षा एवं वृद्धि की जानी चाहिए । जब सामान्य जन यह अनुभव करते हैं कि राजनीतिक व्यवस्था या सत्ता उनके हितों की रक्षा एवं वृद्धि करने की इच्छा रखती है, तो जन सामान्य उनके आदेशों को स्वीकार करने लगते हैं और उसकी वैधता बढ़ जाती है। 

(7) परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तनशीलता : किसी भी राजनीतिक व्यवस्था के लिए वैधता की स्थिति तभी बनी रह सकती जब राजनीतिक व्यवस्था सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक क्षेत्र की बदलती हुई परिस्थितियों के अनुरूप परिवर्तन नहीं किए जाते हैं तो उस व्यवस्था की वैधता खतरे में पड़ जाती है। 

(8) लोकतान्त्रिक ढाँचे में सैनिक सत्ता नागरिक सत्ता के अधीन हो : लोकतान्त्रिक ढाँचे के अन्तर्गत राजनीतिक व्यवस्था की वैधता को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि सैनिक सत्ता, नागरिक सत्ता के अधीन हो । यदि सशस्त्र नेताओं को राजनीतिक संस्थाओं से दूर नहीं रखा जाएगा तो राजनीतिक व्यवस्था की वैधता के लिए संकट बन सकता है और सैनिक शासन स्थापित होने की आशंका बनी रहती है। 

औचित्यपूर्णता की उपयोगिता : औचित्यपूर्णता की उपयोगिता यह है कि इससे शासितों को नैतिक सन्तोष मिलता है और शासकों को शासन करने का स्थायी आधार मिल जाता है। जहाँ औचित्यपूर्णता विद्यमान है वहाँ शक्ति और दमन की आवश्यकता बहुत कम होती है। यही तत्व प्रजातन्त्र में अल्पसंख्यक वर्ग को बहुसंख्यक वर्ग के साथ जोड़ता है। इस प्रकार प्रजातान्त्रिक राजनीतिक व्यवस्था में औचित्यपूर्णता की अत्यधिक उपयोगिता है। 


About The Author

Spread the love

Leave a Comment

error: Content is protected !!