वैदिक साहित्य पर प्रकाश डालें | PDF Notes Download

उत्तर : भारतीय संस्कृति और सभ्यता के विकास में वैदिक साहित्य का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वैदिक साहित्य भारतीय ज्ञान-परंपरा का प्राचीनतम और विश्वसनीय स्रोत माना जाता है। इसका निर्माण वेदों और उनसे संबंधित ग्रंथों के माध्यम से हुआ, जिनमें धार्मिक, दार्शनिक, सामाजिक, राजनीतिक और वैज्ञानिक ज्ञान का विस्तृत भंडार मिलता है। ‘वेद’ शब्द का अर्थ है—ज्ञान, और यह साहित्य आर्यों के वैदिक कालीन जीवन, उनकी मान्यताओं, परंपराओं और चिंतन को समझने का मुख्य आधार है।

वैदिक साहित्य को मुख्यतः दो भागों में विभाजित किया जाता है— (1) श्रुति साहित्य, और (2) स्मृति साहित्य। श्रुति को ‘अपौरुषेय’ माना गया है, अर्थात जिसे किसी मनुष्य ने नहीं बनाया; यह ईश्वरप्रदत्त माना जाता है। श्रुति साहित्य में चार वेद—ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद—सहित उनके ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद ग्रंथ सम्मिलित हैं।

ऋग्वेद वैदिक साहित्य में सर्वप्रथम और सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसमें 10 मंडल, 1028 सूक्त और लगभग 10,600 मंत्र हैं। ऋग्वेद में देवताओं की स्तुतियाँ, प्राकृतिक शक्तियों का वर्णन और प्रारंभिक आर्य समाज के धार्मिक जीवन की झलक मिलती है।
सामवेद को संगीत का मूल माना जाता है। इसके अधिकांश मंत्र ऋग्वेद से लिए गए हैं, जिन्हें गाने योग्य रूप में व्यवस्थित किया गया है। यजुर्वेद में यज्ञ-विधियों और अनुष्ठानों का विस्तृत वर्णन है। यह दो रूपों—कृष्ण यजुर्वेद और शुक्ल यजुर्वेद—में उपलब्ध है।
अथर्ववेद में जादू-टोना, औषधि, रोग-निवारण, लोक-आस्था और दैनिक जीवन से जुड़े विषयों का वर्णन मिलता है। इसे वैदिक कालीन जनता का वेद भी कहा जाता है।



वेदों से जुड़े ग्रंथों में ब्राह्मण ग्रंथ प्रमुख हैं, जिनमें यज्ञों की विस्तृत व्याख्या मिलती है। इसके बाद आरण्यक ग्रंथ आते हैं, जिन्हें वन में रहने वाले ऋषियों ने लिखा। इनमें दार्शनिक विचारों की प्रमुखता है। इसके अतिरिक्त उपनिषद वैदिक साहित्य की दार्शनिक परंपरा का शिखर माने जाते हैं। इनमें आत्मा, ब्रह्म, जीव, सृष्टि, मोक्ष और कर्म जैसे गहन दार्शनिक विषयों पर विचार किया गया है। उपनिषदों को ‘वेदांत’ भी कहा जाता है, क्योंकि ये वेदों का अंतिम और सारगर्भित ज्ञान प्रस्तुत करते हैं।

स्मृति साहित्य में पौराणिक, ऐतिहासिक, धार्मिक और सामाजिक नियमों से जुड़े ग्रंथ शामिल हैं जैसे—मनुस्मृति, धर्मसूत्र, महाभारत, रामायण, पुराण आदि। यद्यपि ये श्रुति जितने प्रामाणिक नहीं माने जाते, फिर भी भारतीय समाज के नैतिक और सामाजिक ढांचे को समझने में इनकी विशेष भूमिका है।

इस प्रकार, वैदिक साहित्य न केवल भारत की धार्मिक परंपरा का आधार है, बल्कि यह दार्शनिक चिंतन, सामाजिक व्यवस्था, संस्कृति, कला, भाषा और शिक्षा आदि सभी क्षेत्रों का मूल स्रोत भी है। मानव सभ्यता की प्राचीनतम धरोहर के रूप में वैदिक साहित्य आज भी अध्ययन, शोध और प्रेरणा का महत्वपूर्ण केंद्र बना हुआ है।


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