प्रश्न : वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारण का वर्णन करें | अथवा वसुधैव कुटुम्बकम से आप क्या समझते है ? इसके स्वरूप एवं सिद्धांत का वर्णन करे ?
उत्तर : भारतीय संस्कृति की सबसे महान और सुंदर सोचों में से एक है — “वसुधैव कुटुम्बकम”। यह एक संस्कृत वाक्य है, जो दो शब्दों से बना है — “वसु” जिसका अर्थ है “पृथ्वी”, और “कुटुम्बकम” जिसका अर्थ है “परिवार”। इसका सीधा मतलब होता है — “पूरी पृथ्वी एक परिवार है।”
यह विचार महा उपनिषद नामक प्राचीन ग्रंथ से लिया गया है, जिसमें कहा गया है —
“अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥”
अर्थात् — “यह मेरा है और वह पराया है, ऐसा विचार छोटे मन वाले लोग करते हैं। लेकिन जिनका मन बड़ा और उदार होता है, वे पूरी पृथ्वी को ही अपना परिवार मानते हैं।”
इस श्लोक में मानवता का सबसे बड़ा संदेश छिपा है। यह हमें सिखाता है कि दुनिया के सभी लोग हमारे अपने हैं। कोई भी पराया नहीं है, चाहे वह किसी भी देश, धर्म, जाति या भाषा से क्यों न हो। सभी एक ही मानव परिवार के सदस्य हैं।
भारत की संस्कृति में यह विचार सिर्फ कहा नहीं गया, बल्कि जीवन में अपनाया भी गया। यहाँ हमेशा से अतिथि का स्वागत “अतिथि देवो भव” कहकर किया गया है, जिसका अर्थ है — “अतिथि भगवान के समान होता है।” यह भावना तभी आती है जब हम सबको अपना मानते हैं। भारतीय परंपरा में पेड़-पौधे, नदियाँ, पशु-पक्षी और धरती तक को परिवार का हिस्सा माना गया है। यही कारण है कि यहाँ प्रकृति की पूजा की जाती है।
“वसुधैव कुटुम्बकम” की भावना आज के समय में और भी महत्वपूर्ण है। आज पूरी दुनिया में युद्ध, आतंक, नफरत और स्वार्थ बढ़ते जा रहे हैं। लोग धर्म, रंग, भाषा और सीमाओं के नाम पर एक-दूसरे से लड़ रहे हैं। अगर हर व्यक्ति इस सिद्धांत को समझे कि पूरी पृथ्वी एक परिवार है, तो दुनिया में शांति, प्रेम और भाईचारा स्थापित हो सकता है।
यह विचार हमें सिखाता है कि हमें सिर्फ अपने देश या समाज की नहीं, बल्कि पूरी मानवता की भलाई के लिए काम करना चाहिए। जब हम दूसरों के दुख को अपना समझेंगे और सबकी मदद करेंगे, तभी सच्चा मानव धर्म पूरा होगा। यही भावना सभी महान धर्मों में भी है — प्रेम, करुणा और सेवा का संदेश देना।
भारत ने हमेशा इस सिद्धांत का पालन किया है। यहाँ हर धर्म, जाति और संस्कृति के लोगों को समान सम्मान मिला है। यही कारण है कि भारत को “विविधता में एकता” वाला देश कहा जाता है।
निष्कर्षतः, “वसुधैव कुटुम्बकम” केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि जीवन जीने का तरीका है। यह हमें सिखाता है कि पूरी पृथ्वी हमारा घर है और सभी जीव हमारे अपने हैं। अगर यह भावना हर व्यक्ति के मन में बस जाए, तो विश्व में सच्ची शांति और मानवता कायम हो सकती है।