प्रश्न – राजनीतिक बाध्यकारिता ( दायित्व) से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं और सिद्धान्तों पर प्रकाश डालिए ।
किसी भी राज्य के लिए नागरिकों द्वारा कानूनों का पालन करने की समस्या एक महत्त्वपूर्ण समस्या होती है। इस दृष्टि से राजनीतिक बाध्यकारिता के विषय में जानकारी तथा विवेचन अनिवार्य हो जाता है। राजनीतिक बाध्यकारिता से अभिप्राय है कि राज्य के नागरिक क़ानूनों व उसकी आज्ञाओं का पालन करने के लिए क्यों बाध्य होते हैं? राज्य का प्रमुख कार्य प्रशासन करना है जो वह अपने महत्त्वपूर्ण अंग सरकार द्वारा करता है। प्रशासन करने के क्रम में सरकार द्वारा कानून बनाये जाते हैं। इस सन्दर्भ में नागरिकों को अपने राज्य के
कानून का पालन उनके लिए दायित्व बन जाता है।
राजनीतिक बाध्यकारिता के सिद्धान्त
राजनीतिक बाध्यकारिता के निम्नलिखित सिद्धान्त हैं :
1. देवी सिद्धान्त : देवी सिद्धान्त के समर्थकों की मान्यता है कि राज्य एक दैवी संस्था है जिसे ईश्वर ने स्वयं अथवा अपने प्रतिनिधियों द्वारा बनाया है। सम्राट या शासक ईश्वर का प्रतिनिधि बनकर लोगों पर शासन करता है, उसके द्वारा जारी आदेश और ईश्वर की शक्ति से ओत-प्रोत होते हैं और उनका पालन करना ईश्वर की आज्ञा का पालन है । इस दृष्टि से राजनीतिक बाध्यकारिता के पीछे – दैवी शक्ति की शक्ति बतायी जाती है। अतः राजनीतिक बाध्यकारिता न केवल कानूनी रूप से सही है बल्कि ऐसा करना ईश्वर की साधना भी हैं। बाध्यकारिता के दैवी तर्कों का कोई ऐतिहासिक तर्क नहीं और न ही इसका कोई कानूनी प्रमाण है।
2. शक्ति सिद्धान्त : शक्ति सिद्धान्त के समर्थकों की मान्यता है कि राज्य न केवल शक्ति व बल के आधार पर बना है, वह शक्ति व बल के आधार पर टिका हुआ भी है। इस सिद्धान्त के समर्थकों का मत है कि व्यक्ति कानून का पालन इसलिए करते हैं कि वे जानते हैं कि यदि वे कानूनों की अवहेलना करेंगे तो उन्हें दण्ड भोगना पड़ेगा। इस कारण शक्ति सिद्धान्त के समर्थक राजनीतिक बाध्यकारिता के पीछे भय तथा दण्ड बताते हैं। इसमें सन्देह नहीं कि राज्य के संचालन में शक्ति तथा बल की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि सभी व्यक्ति अपराधी प्रवृत्ति के होते हैं। अपराध करना एक मानसिक रोग है तथा अपराध करने वाले व्यक्ति को राज्य दण्डित करता है।
3. सामाजिक समझौते का सिद्धान्त : सामाजिक समझौते के सिद्धान्त के समर्थकों में रूसो, हॉब्स तथा लॉक यह तर्क देते हैं कि लोगों ने स्वयं अपनी सहमति से राज्य की स्थापना की है और इस कारण राजनीतिक बाध्यकारिता का आधार लोगों की सहमति है। सहमति राज्य का आधार भी है और राज्य द्वारा बनाये गये कानूनों का पालन कराना आधार भी है। हॉब्स ने राजनीतिक बाध्यकारिता से सम्बन्धित निम्नलिखित तर्क दिए हैं
(i) प्राकृतिक अवस्था में लोगों के बीच हुआ समझौता एक कानूनी तथ्य है और इस कारण राजनीतिक बाध्यकारिता का कानूनी आधार भी है। व्यक्ति कानूनवश कानूनों का पालन करने के लिए बाध्य है।
(ii) यदि व्यक्ति कानूनों की अवहेलना का निर्णय ले लेते हैं तो यह स्पष्ट है कि वह शासक के अस्तित्त्व को स्वीकार नहीं करते हैं । ऐसी स्थिति में आमन्त्रित शासक लुप्त हो जायेगा और व्यक्ति पुनः असुरक्षित प्राकृतिक अवस्था में चले जायेंगे।
3. आदर्शवादी सिद्धान्त : राजनीतिक बाध्यकारिता के समर्थकों का विचार है कि कानूनों के पालन का भाव व्यक्ति के मन-मस्तिष्क में ही पाया जाता है। मनुष्य एक सामाजिक और नैतिक प्राणी है और वह अपनी आन्तरिक शक्तियों व क्षमताओं का पूर्ण विकास करके विकास की चरम सीमाओं को छूना चाहता है। मनुष्य सदैव अनुकूल वातावरण की स्थापना को ही आवश्यक समझता है। जहाँ वह अपने अधिकारों व स्वतन्त्रताओं का पूरा विकास कर सके। अतः व्यक्ति का विकास एक सुसंगठित व सुव्यवस्थित समाज में ही हो सकता है।
राजनीतिक वाध्यकारिता की विशेषताएँ
राजनीतिक बाध्यकारिता की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
1. सुरक्षा : राजनीतिक बाध्यकारिता की मुख्य विशेषता यह है कि राज्य द्वारा निर्मित कानून का पालन व्यक्तियों से कराने की क्षमता रखती है, क्योंकि मनुष्य के व्यवहारों पर नियन्त्रण विधियों द्वारा किया जाता है और इस सम्बन्ध में प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य है कि कानून का पालन करें।
2. कानून की पूरक अवधारणा : राजनीतिक बाध्यकारिता कानून की पूरक अवधारणा है । जहाँ कानून होते हैं, वहाँ राजनीतिक अवधारणा अनिवार्य होती है। कानून हो और उनका पालन न हो तो अराजकता है। कानून व्यवस्था के लिए जहाँ कानून होते हैं, वहाँ उनके नागरिकों द्वारा मान्यता भी अनिवार्य होती हैं।
3. सुरक्षा : राजनीतिक बाध्यकारिता द्वारा नागरिकों के लिए कुछ सेवाओं का संकेत है । इसका अर्थ यह है कि राज्य अपने व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करता है तथा सामान्य जीवन की अनुकूल परिस्थितियाँ उपलब्ध कराता है।
4. नकारात्मक भाव का वोध नहीं : राजनीतिक बाध्यकारिता नकारात्मक भाव का बोध नहीं कराता बल्कि इसे लोगों के दायित्व के साथ जोड़ा तथा समझा जा सकता है।
उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट होता है कि राजनीतिक बाध्यकारिता की अपनी विशेष पृष्ठ भूमि होती हैं। जहाँ लोग रहते हैं, वहाँ समाज होता है। समाज लोगों के लिए ताना- बाना है। सामाजिक सम्बन्ध बनने तथा बनाये रखने के लिए नियमों, कानूनों, प्रक्रियाओं, परम्पराओं, रीति-रिवाजों आदि व्यवस्थाओं का होना अनिवार्य होता है। अतः कहा जा सकता है कि राजनीतिक बाध्यकारिता प्रगति व विकास के लिए आवश्यक है।