राग यमन का संक्षिप्त परिचय दें | BA Notes Pdf

उत्तर- राग यमन भारतीय शास्त्रीय संगीत का अत्यंत लोकप्रिय, मधुर और सुगम राग है। इसे कल्याण थाट का प्रमुख राग माना जाता है। राग यमन को “सर्वप्रथम सीखने योग्य राग” भी कहा जाता है, क्योंकि इसकी प्रकृति सरल, आकर्षक और मन को शांत करने वाली होती है। यह राग मुख्य रूप से रात्रि के प्रथम प्रहर, अर्थात सूर्यास्त के बाद गाया-बजाया जाता है। इसकी धुन में एक दिव्य, शांत और प्रसन्न भाव-स्थिति उत्पन्न होती है।

राग यमन की सबसे विशेष पहचान है—इसमें तीव्र मध्यम (M#) का प्रयोग। यह स्वर राग को अत्यंत कोमल और प्रकाशमय बनाता है। इस तीव्र मध्यम के प्रयोग के कारण राग में एक पवित्रता और माधुर्य का अद्भुत संयोग मिलता है।

राग यमन का उपयोग खयाल, ठुमरी, भजन, ध्रुपद, वादन और यहां तक कि आधुनिक संगीत में भी बड़ी मात्रा में किया जाता है। कई प्रसिद्ध फिल्मी और शास्त्रीय धुनों की मूल संरचना राग यमन पर आधारित है। यह राग सुरों का इतना संतुलित मेल प्रस्तुत करता है कि शुरुआती और उस्ताद दोनों के लिए समान रूप से प्रिय है।

1. राग यमन का स्वभाव- राग यमन को कोमल, शांत, मधुर और दिव्य प्रकृति का राग कहा जाता है। यह मन में प्रसन्नता, भक्ति और आध्यात्मिकता का भाव उत्पन्न करता है। इसकी तानें बहुत खुलकर चलती हैं और राग में मींड तथा आलाप को विशेष महत्व दिया जाता है।

2. आरोह और अवरोह- राग यमन के स्वरों का क्रम इस प्रकार है—

आरोह: नि रे ग म(तीव्र) ध नि सां

अवरोह: सां नि ध प म(तीव्र) ग रे सा

इसमें पंचम (प) को आरोह में छोड़ दिया जाता है, जबकि अवरोह में प का प्रयोग होता है।

3. वादी–संवादी- वादी स्वर: ग, संवादी स्वर: नि है  

ये दोनों स्वर राग की मुख्य पहचान हैं और इन पर दिया गया जोर राग का रूप स्पष्ट करता है।

4. जाति- राग यमन की जाति संपूर्ण–संपूर्ण है, अर्थात आरोह और अवरोह दोनों में सात-सात स्वरों का प्रयोग होता है हालाँकि प आरोह में वर्जित माना जाता है|

5. पकड़- यमन की सामान्य पकड़ इस प्रकार है— नि रे ग म(तीव्र) ध नि सां – नि ध प म(तीव्र) ग रे सा यह पकड़ सुनते ही राग पहचान में आ जाता है।

6. प्रदर्शन शैली- राग यमन में मींड, आलाप, बोल-तान और सरगम की तानों का विशेष महत्व है। इसकी तानें बहती हुई, सुगम और विस्तृत होती हैं।

निष्कर्ष:- राग यमन भारतीय संगीत का आधारभूत और अत्यंत सुन्दर राग है। इसकी मधुरता, सरलता और भावपूर्ण प्रकृति इसे शास्त्रीय संगीत में एक महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करती है। इसे सुनने और गाने दोनों में एक दिव्य आनंद का अनुभव होता है।


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