प्रश्न- राग का गायन किन-किन सिद्धांतों पर आधारित होता है? समझाइए |
उत्तर- भारतीय शास्त्रीय संगीत में राग संगीत का मूल ढाँचा है। राग केवल स्वरों का समूह नहीं, बल्कि भाव, नियम और प्रस्तुति की एक जीवंत पद्धति है। किसी राग का सही गायन कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर आधारित होता है। ये सिद्धांत गायक को दिशा देते हैं कि राग को किस प्रकार विकसित और प्रस्तुत किया जाए ताकि उसका भाव, रंग और स्वरूप पूर्ण रूप से उभर सके।
1. आरोह–अवरोह- हर राग का एक निश्चित आरोह (चढ़ती स्वर–पंक्ति) और अवरोह (उतरती स्वर–पंक्ति) होता है। इन्हीं के अनुसार राग के स्वर निर्धारित होते हैं। आरोह–अवरोह राग की पहचान और उसकी गहराई को समझने का पहला आधार है। उदाहरण: कुछ रागों में विकृत स्वर उपयोग होते हैं, जो केवल आरोह या अवरोह में ही गाए जाते हैं।
2. वादी और संवादी स्वर- प्रत्येक राग में एक मुख्य स्वर (वादी) और एक उप–मुख्य स्वर (संवादी) होता है। वादी स्वर राग की आत्मा माना जाता है। आलाप, तान और बंदिश में वादी–स्वर पर विशेष ठहराव दिया जाता है। संवादी स्वर वादी का सहायक होता है और दोनों के मेल से राग की मधुरता बढ़ती है।
3. पकड़- राग की पकड़ वह विशिष्ट स्वर–चलन है जिससे राग तुरंत पहचाना जा सके। यह राग की परंपरा, भाव और स्वरूप को स्पष्ट करती है। गायन करते समय पकड़ का उपयोग अनिवार्य है, अन्यथा राग का स्वरूप भटक सकता है।
4. स्वरों की जाति- राग पंचस्वरी (5 स्वर), षाडव (6 स्वर) या संपूर्ण (7 स्वर) हो सकता है। स्वरों की यह संख्या भी राग–गायन का महत्वपूर्ण आधार है। गायक को यह जानना आवश्यक है कि कौन–से स्वर वर्जित, कौन–से अनिवार्य और कौन–से अल्प प्रयोग हैं।
5. अनुप्रास और स्वर–व्यवहार- राग का सौंदर्य स्वर–व्यवहार में निहित होता है। किस स्वर को कैसे गाना है—धीमा, तेज़, कंपित, मींड, गमक—यह सब सिद्धांतों के अनुसार तय होता है। राग की पहली प्रस्तुति में स्वर को शुद्ध और कोमलता के साथ प्रयोग करना आवश्यक है।
6. अलंकार और गायन–शैली- राग–गायन में आलाप, बोल–आलाप, तान, मींड, गमक, खटका आदि अलंकारों का उपयुक्त उपयोग होता है। यह अलंकरण राग की भावनाओं को सुंदर रूप देता है। किस राग में कौन–सा अलंकार अधिक प्रभावी है, यह गायन का महत्वपूर्ण नियम है।
7. राग–समय और भाव- कई राग विशेष समय पर गाए जाने चाहिए। समय अनुसार राग-भाव प्रबल रूप से उभरता है। राग का भाव- शांत, करुण, वीर, श्रंगार भी गायन में अवश्य झलकना चाहिए।
8. निषेधित स्वर और नियम- कुछ रागों में कुछ स्वर निषेधित होते हैं और कुछ केवल विशिष्ट चलन में ही आते हैं। गायक को इन नियमों का कड़ाई से पालन करना चाहिए।
निष्कर्ष:- राग–गायन स्वरों की साधारण प्रस्तुति नहीं, बल्कि नियम, परंपरा और भाव का जीवंत रूप है। आरोह–अवरोह, वादी–संवादी, पकड़, अलंकार, समय, स्वर–व्यवहार और निषेध इन सभी सिद्धांतों के पालन से ही राग अपनी पूर्णता में प्रस्तुत होता है। सही सिद्धांतों के अनुसार गाया गया राग ही श्रोता के मन को प्रभावित करता है और भारतीय संगीत की सुंदरता को उजागर करता है।