प्रश्न- मौर्य साम्राज्य के पतन के कारणों की आलोचनात्मक विवेचना करें।
अशोक के शासनकाल में मौर्य साम्राज्य अपने उच्चतम शिखर पर था। सुदूर दक्षिण के राज्यों को छोड़कर सम्पूर्ण भारत और अफगानिस्तान तक यह साम्राज्य फैला हुआ था। 232 ई. पूर्व में अशोक की मृत्यु हुई और 50 वर्षों में ही मौर्य साम्राज्य समाप्त हो गया। अशोक का एक भी उत्तराधिकारी ऐसा योग्य नहीं निकला जो इसे नष्ट होने से बचाता ।
जिस मौर्य साम्राज्य की स्थापना चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने बाहुबल से, चाणक्य ने अपनी कूटनीतिज्ञता से की थी और जिसे अशोक ने प्रगति की पराकाष्ठा पर पहुँचा दिया था वही साम्राज्य अशोक की मौत के बाद 50 वर्षों के अन्दर ही मिट गया।
मौर्य साम्राज्य का पतन भी अन्य घटनाओं की तरह प्राचीन भारतीय इतिहास की कोई आकस्मिक घटना नहीं थी, बल्कि ऐसे बहुत-से कारण थे जिन्होंने मौर्य साम्राज्य के पतन को अवश्यम्भावी बना दिया। अत: मौर्य साम्राज्य के पतन के कारणों का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है-
अशोक के अयोग्य उत्तराधिकारी : मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए सबसे अधिक जिम्मेवार अशोक के अयोग्य उत्तराधिकारियों को माना जा सकता है। माना फिर क्यों नहीं जाय, कुषाण से लेकर वृहद्रथ तक कोई ऐसा योग्य शासक नहीं हुआ जो इतने विशाल साम्राज्य की अक्षुण्णता को कायम रख सके। उनमें दृढ़ इच्छा-शक्ति एवं प्रशासनिक योग्यता की कमी थी। सच्चाई भी यही है कि कोई भी साम्राज्य तभी तक कायम रह सकता है जबतक कि राजा स्वयं शक्तिशाली हो । कमजोर शासक के समय में विघटनकारी तत्व प्रबल हो जाते हैं। यही बात मौर्यों के साथ भी हुई। ये विघटनकारी तत्वों पर अंकुश रखने में असमर्थ हो गये । अतः साम्राज्य तेजी से पतन की ओर अग्रसर हुआ।
साम्राज्य की विघटनकारी प्रवृत्ति : मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए इसकी विघटनात्मक प्रवृत्ति भी उत्तरदायी थी। अशोक की मृत्यु के साथ ही साम्राज्य की विघटनकारी शक्तियाँ सशक्त हो गयीं, जिनपर मौर्य शासक नियन्त्रण नहीं रख सके। इतना ही नहीं, इसका प्रारम्भ भी राजतंत्र से ही हुआ । अशोक ने काश्मीर में अपने आपको स्वतन्त्र शासक के रूप में स्थापित कर लिया। उसकी देखा-देखी अन्य प्रान्त भी स्वतंत्र होने लगे। अशोक के एक अधिकारी बोरसेन ने गान्धार में स्वतन्त्र सत्ता कायम की। इसी प्रकार आन्ध्र और कलिंग भी साम्राज्य से अलग हो गए। स्वभावत: साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया। फलस्वरूप केन्द्रीय शक्ति कमजोर पड़ गयी, स्थानीय तत्व प्रबल होते गये और धीरे-धीरे इन स्थानीय शक्तियों मे स्वतन्त्रता प्राप्त कर मौर्य साम्राज्य को अत्यन्त संकुचित कर दिया।
आन्तरिक अव्यवस्था : मौर्य साम्राज्य की विशालता को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि इतने बड़े साम्राज्य पर नियन्त्रण रखने के लिए उचित साधनों का अभाव था। आवागमन की समस्याओं के चलते दूर के प्रान्तों पर सीधा अंकुश रखना कठिन था। अतः प्रशासनिक नियन्त्रण ढीला पड़ गया, जिसका लाभ उठाकर प्रान्तीय अधिकारी शक्तिशाली और स्वतन्त्र होने लगे । शासकों की अयोग्यता से राजदरबार में अलग पड्यन्त्रों का जाल तैयार होने लगा था, जिसका साम्राज्य के अस्तित्व पर खराब ही प्रभाव पड़ा। अतः आन्तरिक अव्यवस्था से भी मौर्य साम्राज्य के पतन को बल मिला।
अधिकारियों के अत्याचार : हालाँकि अशोक के समय में प्रशासनिक व्यवस्था को मानवीय आधार पर कायम करने का प्रयास किया गया, अधिकारियों को यह आदेश दिया गया कि वे जनता को अकारण नहीं सताएँ । किन्तु अशोक के बाद राज्य का कर्मचारियों पर से नियन्त्रण ढीला पड़ गया। फलत: वे अत्याचारी और प्रजा – उत्पीड़क बनते गए। स्वयं अशोक के समय में भी तक्षशिला में विद्रोह हुआ जिसका कारण आमात्यों की दुष्टता थी। ये अधिकारी मनमाना करते हुए जनता को सताया करते थे। अशोक ने इस पर किसी तरह अंकुश रखा, किन्तु उसके उत्तराधिकारी इस कार्य में सक्षम नहीं रहे। फलस्वरूप एक ओर तो अधिकारियों के अत्याचार बढ़े तो दूसरी ओर प्रजा कार्यों से विमुख होती गयी। इसलिए जब पुष्यमित्र ने वृहद्रथ की हत्या कर सत्ता हथिया ली तो जनता ने मौर्यों के लिए आँसू भी नहीं बहाया और नये राजवंश को उसी प्रकार स्वीकार कर लिया जिस प्रकार उसने नन्दों के पतन के बाद मौर्यों के शासन को खुशी से स्वीकार कर लिया था। अतः यह कहना अनुचित नहीं होगा कि अधिकारियों के अत्याचार ने भी बहुत हद तक मौर्य साम्राज्य के पतन का मार्ग प्रशस्त किया।
यवनों का आक्रमण : यवन या यूनानी आक्रमणकारियों ने लड़खड़ाते मौर्य साम्राज्य पर प्रहार कर इसे पंगु बना दिया तथा इसका पतन अवश्यम्भावी बना दिया। पोलिनियस के विवरण और गर्ग संहिता से यवनों के आक्रमण की पुष्टि होती है। एण्टियोकस ने साम्राज्य की प्रतिष्ठा धूल में मिला दी। उनकी अजेयता नष्ट हो चुकी थी। अब उनके साम्राज्य का एक बड़ा और महत्वपूर्ण भाग यूनानियों के हाथों में चला गया।
संकट अर्थव्यवस्था : ऐसी विषम परिस्थिति में मौर्य साम्राज्य की अर्थव्यवस्था भी पूर्णरूपेण संकट में घिर गयी। वैसे तो प्रारम्भ में राज्य ने आर्थिक हितों की सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाये जिनके चलते राज्य की आर्थिक व्यवस्था सुदृढ़ हो गयी, किन्तु अशोक के अभिलेखों से ऐसा पता नहीं लगता है कि उसे आर्थिक क्रिया-कलापों में कोई खास दिलचस्पी थी। इतना ही नहीं, दान और जन हित के कार्यों में उसने बहुत अधिक धन को खर्च किया, जिससे राज्य में आर्थिक संकट छा गया। फलस्वरूप मौर्यों को मिलावट वाले सिक्के जारी करने पड़े। यहाँ तक कि खर्च पूरा करने के लिए सोने की मूर्तियाँ भी गलानी पड़ी। सुदृढ़ आर्थिक व्यवस्था के अभाव में कोई भी साम्राज्य नहीं टिक सकता है। यही बात मौर्य के साथ भी हुई। यहाँ इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि जब भी प्रशासन कमजोर पड़ेगा तो राज्य की आर्थिक स्थिति कमजोर होगी ही। भले ही अर्थव्यवस्था विकसित रही हो, फिर भी राज्य का इस अर्थव्यवस्था पर अंकुश नहीं रहा और उसे पूरा धन प्राप्त नहीं हो सका। इसीलिए मौर्यों को मिलावट वाले सिक्के जारी करने पड़े। इस प्रकार संत ग्रस्त अर्थव्यवस्था भी मौर्य साम्राज्य के लिए कम महत्वपूर्ण कारण नहीं था ।
अन्यान्य कारण : उपर्युक्त कारणों के अलावे भी कुछ और ऐसे अन्यान्य कागा थे, जिन्होंने मौर्य साम्राज्य को पतन की ओर अग्रसर करते हुए पतन की खाई में गिरा दिया। प्रो० रोमिला थापर ने इस संबंध में कहा है कि मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए केन्द्रीय नौकरशाही व्यवस्था और राज्य तथा राष्ट्र के विचार का अभाव था । वस्तुतः केन्द्रीकरण की व्यवस्था तभी सुचारू रूप से चल सकती है जब राजा योग्य और शक्तिशाली हो । प्रारम्भ में यह व्यवस्था सही रूप से चलती रही, किन्तु कमजोर शासकों के समय में गड़बड़ा गयी। अधिकारियों पर से नियन्त्रण समाप्त हो गया, वे स्वतंत्र बन बैठे और राजा को ही अपने शिकंजे में कस लिया । राष्ट्रीयता की भावना का अभाव भी पतन का कारण बना।
इस प्रकार मौर्य साम्राज्य के पतन की गहराई में जाने के बाद यह बात स्पष्ट हो जाती है कि मौर्य साम्राज्य का पतन प्राचीन भारतीय इतिहास की कोई अचानक घटना नहीं थी बल्कि ऐसे बहुत-से हालात थे जिन्होंने इस साम्राज्य को पतन के मार्ग में अग्रसर करते हुए पतन की खाई में गिरा दिया।
मौर्यों के पतन के लिए अशोक के उत्तरदायित्व के विषय में विभिन्न मत
मौर्यों के पतन के संबंध में विभिन्न विद्वानों के मत इस प्रकार हैं-
1. महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री के मतानुसार, “मौर्य वंश के पतन का मुख्य कारण अशोक के वे शिलालेख हैं, जिसमें पशुवध को वर्जित ठहराया गया था। ब्राह्मण एक शूद्र राजा द्वारा इस प्रकार के दिये गये आदेश को सहन नहीं कर सकते थे। ब्राह्मण मौर्य सम्राटों को शूद्र समझते थे। इसके अतिरिक्त एक शिलालेख में अशोक ने यह उत्कीर्ण करवाया था कि ब्राह्मणों को पहले जैसा देवता नहीं समझा जायेगा ।
2. डॉ. राय चौधरा का मत है कि महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री का विचार गलत है, क्योंकि अशोक के पहले भी पशुवध के विरुद्ध प्रचार होता रहा था। इसके अतिरिक्त अशोक को शूद्र कहना भी गलत है। अशोक ने ब्राह्मणों के प्रति कभी भी – असहिष्णुता की नीति नहीं अपनाई ।
3. डॉ. नीलकान्त शास्त्री ने भी इस विचार की आलोचना की है कि “अशोक की बौद्ध धर्मपक्षीय नीति मौर्य वंश के पतन का एक प्रमुख कारण थी। उनके अनुसार अशोक ने विश्व बन्धुत्व और विभिन्न धर्मों में पारस्परिक मित्रता को प्रोत्साहन दिया । वह ब्राह्मणों के तनिक भी विरुद्ध न था । ”
4. आर. डी. बनर्जी न लिखा है कि “मौर्यवंश के पतन के लिए अशोक स्वयं भी उत्तरदायी था। उसके आध्यात्मवाद और धार्मिक उत्साह ने सेना के अनुशासन को कड़ी चोट पहुँचाई।”
निष्कर्ष : डॉ. राधाकुमुद मुकर्जी ने अशोक को मौर्यवंश के पतन के लिए उत्तरदायी न ठहराते हुए लिखा है, “यह कारण सिद्धान्ततः तो ठीक और युक्तियुक्त लगता है, किन्तु मौर्य साम्राज्य के पतन का केवल यह कारण किस सीमा तक उत्तरदायी है, यह निश्चित करना कठिन है ।” डॉ. नीलकान्त शास्त्री ने भी लिखा है, “इसका कोई प्रमाण नहीं है कि अशोक ने सेना में कमी कर दी, या साम्राज्य के प्रतिरक्षा के साधनों को कम कर दिया। ” अतः अशोक को मौर्य वंश के पतन के लिए पूर्णतः उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।
डॉ. राधाकुमुद मुकर्जी ने मौर्य साम्राज्य के पतन का विश्लेषण करते हुए इस बात पर आश्चर्य प्रकट किया है कि 100 वर्षों तक यह साम्राज्य उन दिनों की परिस्थितियों को देखते हुए तथा एक ही केन्द्र से शासित होते हुए भी कैसे सुचारु रूप से टिका रहा । चाणक्य जैसा मार्गदर्शक मौर्य सम्राट को नहीं मिला। विभिन्न मौर्य सम्राटों के शासन काल में एक-सी परिस्थितियाँ भी नहीं थीं। डॉ. आर. सी. मजूमदार का मत है, “मौर्य साम्राज्य का कुछ समय पूर्व या पश्चात् विनाश तो होना ही था, भले ही अशोक भी अपने दादा की भाँति रक्तपात की नीति अपनाता रहता ।