भारतीय कला की प्रमुख विशेषताओ पर प्रकाश डालें |

भारतीय कला एक प्राचीन और समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर है, जो भारतीय सभ्यता, धर्म, दर्शन, इतिहास, और जीवनशैली के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती है । भारतीय कला कई रूपों में प्रकट होती है, जिनमें चित्रकला, मूर्तिकला, वास्तुकला, शिल्पकला, संगीत, नृत्य और साहित्य शामिल हैं । इसकी विविधता और गहराई भारत की सांस्कृतिक विविधता और समृद्ध इतिहास को प्रकट करती है ।

  •  निरंतरता भारतीय कला हज़ारों सालों से चली आ रही है। सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर आज तक, कला के रूप और शैली में कई बदलाव आए हैं, लेकिन कुछ मूल तत्व, जैसे मूर्तियों का निर्माण और स्तंभों का उपयोग, लगातार बने रहे हैं।
  • धार्मिकता एवं आध्यात्मिकता – भारतीय कला का एक बड़ा हिस्सा धर्म से जुड़ा है। मंदिरों, मूर्तियों और चित्रों में हमें हिंदू, बौद्ध, और जैन धर्म की झलक मिलती है। हालाँकि, इसका मतलब यह नहीं है कि इसमें सिर्फ़ धार्मिक विषय ही हैं। कला में आम लोगों के जीवन और दैनिक गतिविधियों को भी दर्शाया गया है, जिससे धार्मिक और सांसारिक दोनों विषयों का सुंदर मिश्रण देखने को मिलता है।
  • अभिव्यक्ति की प्रधानता भारतीय कला में अभिव्यक्ति की प्रधानता स्पष्ट दिखाई पड़ती है । भारतीय कलाकारों ने अपनी कुशलता का प्रदर्शन केवल शरीर का यथार्थ चित्रण करने या सौंदर्य को उभारने में नहीं किया है । बल्कि उन्होंने आंतरिक भावों को उभारने का भी प्रयास किया है । जैसे- विशुद्ध भारतीय शैली में बनी बुद्ध की मूर्तियाँ । जहाँ एक ओर गंधार शैली की मूर्तियों में बौद्धिकता एवं शारीरिक सौन्दर्य की प्रधानता है, वहीं गुप्तकालीन मूर्तियों में अध्यात्मिकता एवं भावुकता की प्रधानता है ।
  • प्रतीकात्मकता  – भारतीय कला में प्रतीकवाद का बहुत महत्व है। जटिल दार्शनिक और धार्मिक विचारों को सरल प्रतीकों के माध्यम से समझाया जाता है। जैसे, कमल का फूल पवित्रता और आध्यात्मिक जागृति का प्रतीक है, विष्णु के हाथ में चक्र समय और ब्रह्मांड का प्रतीक है, और शिव के गले में साँप उनकी शक्ति और संहारक रूप का प्रतीक है। ये प्रतीक आम लोगों को गूढ़ विचारों को समझने में मदद करते हैं और कला को अधिक अर्थपूर्ण बनाते हैं।
  • समन्वयवादिता – भारतीय कला विभिन्न शैलियों और विचारों का एक सुंदर संगम है। यह आदर्शवाद और यथार्थवाद, अध्यात्म और सौंदर्य, और संयम और भव्यता का मिश्रण दिखाती है। उदाहरण के लिए, मुगल चित्रकला में भारतीय और फ़ारसी शैलियों का अद्भुत मिश्रण देखा जा सकता है।
  • सर्वागीणता  – भारतीय कला केवल शासकों या अमीरों के लिए नहीं थी, बल्कि इसमें समाज के हर वर्ग का चित्रण हुआ है। मौर्य काल की कला जहाँ मुख्य रूप से राजदरबारों और शासकों से संबंधित थी (जैसे अशोक के स्तंभ), वहीं शुंग काल की कला में आम लोगों के जीवन, रोज़मर्रा की गतिविधियों और उत्सवों को दर्शाया गया। यह दिखाता है कि कला समाज के हर पहलू को समझने और दर्शाने का एक साधन थी।
  • सार्वभौमिकता (Universalism) – भारतीय कला की पहुँच केवल भारत तक सीमित नहीं रही। यह विदेशों तक फैली और वहाँ की कला को भी प्रभावित किया। दक्षिण-पूर्वी एशिया (कंबोडिया, इंडोनेशिया) में स्थित मंदिर (जैसे अंगकोर वाट) और कलाकृतियाँ भारतीय कला से बहुत प्रेरित हैं। इसी तरह, मध्य एशिया और चीन में बौद्ध धर्म के प्रचार के साथ-साथ भारतीय कला की शैली भी वहाँ पहुँची, जिसने एक वैश्विक कलात्मक संवाद स्थापित किया।
  • प्राचीनता (Antiquity) – भारतीय भारतीय कला की जड़ें 10,000 साल से भी पुरानी हैं, जो इसे दुनिया की सबसे पुरानी कलाओं में से एक बनाती है। पाषाण काल की गुफाओं में बने चित्र (जैसे भीमबेटका) मानव की अभिव्यक्ति की शुरुआती कोशिशों को दर्शाते हैं। इसके बाद हड़प्पा सभ्यता में मिट्टी के बर्तन, मूर्तियाँ और आभूषण कला के विकास को और आगे ले गए। यह प्राचीनता भारतीय कला को एक गहरा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक आधार प्रदान करती है।




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