भारतवर्ष की अवधारणा पर प्रकाश डालें | अथवा  भारतवर्ष से आप क्या समझते हैं  ?

उत्तर : भारतवर्ष की अवधारणा एक बहुत ही प्राचीन और व्यापक विचार है, जो केवल एक भौगोलिक क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि एक सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक एकता को भी दर्शाती है। ‘भारतवर्ष’ शब्द का उल्लेख वेदों, पुराणों, महाभारत और अन्य प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। इसका तात्पर्य केवल जमीन के टुकड़े से नहीं, बल्कि उस भू-भाग से है जहाँ एक विशेष जीवन दृष्टि, परंपरा और सभ्यता विकसित हुई है।

1. ऐतिहासिक दृष्टि से भारतवर्ष की अवधारणा  : प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, भारतवर्ष हिमालय से लेकर हिंद महासागर तक फैला हुआ है। विष्णु पुराण में उल्लेख मिलता है कि हिमालय के दक्षिण से समुद्र के उत्तर तक फैला हुआ देश ‘भारतवर्ष’ कहलाता है। इस क्षेत्र में रहने वाले लोग भले ही अलग-अलग भाषाएँ बोलते हों या विभिन्न परंपराओं का पालन करते हों, लेकिन वे सभी एक ही सांस्कृतिक मूल भावना से जुड़े हैं।




2. सांस्कृतिक एकता का प्रतीक : भारतवर्ष की अवधारणा का सबसे बड़ा आधार यहाँ की सांस्कृतिक एकता है। यहाँ के लोग धर्म, दर्शन, कला, संगीत, नृत्य और जीवन के प्रति दृष्टिकोण में एक गहरी समानता रखते हैं। ऋषियों-मुनियों ने इस भूमि को धर्म और आध्यात्म का केंद्र बनाया। रामायण और महाभारत जैसी महाकाव्य रचनाएँ भी इसी भारतवर्ष की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा हैं। तीर्थयात्राएँ, पर्व-त्योहार और धार्मिक आयोजन भी इस एकता को सशक्त बनाते हैं।

3. भौगोलिक दृष्टि से भारतवर्ष : भौगोलिक दृष्टि से भारतवर्ष का विस्तार उत्तर में हिमालय पर्वत से लेकर दक्षिण में हिंद महासागर तक, और पूर्व-पश्चिम में ब्रह्मपुत्र नदी से सिंधु नदी तक माना गया है। अलग-अलग काल में भारतवर्ष की सीमाएँ बदलती रहीं, परंतु इसकी आत्मा वही रही – जो सबको जोड़कर रखे।

4. भारतवर्ष एक विचारधारा के रूप में : भारतवर्ष केवल भूमि का नाम नहीं, बल्कि एक विचारधारा भी है। यह विचारधारा ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ यानी “सारा संसार एक परिवार है” के सिद्धांत पर आधारित है। सहिष्णुता, अहिंसा, सत्य और करुणा जैसे मूल्य भी इसी विचारधारा का हिस्सा हैं, जो भारतवर्ष को विश्व में अलग पहचान दिलाते हैं।




5. राजनीतिक दृष्टि से भारतवर्ष : इतिहास में कई बार भारतवर्ष में अलग-अलग राज्यों और राजाओं का शासन रहा, परंतु फिर भी इस क्षेत्र को एक ही सांस्कृतिक इकाई के रूप में देखा जाता था। चंद्रगुप्त मौर्य, सम्राट अशोक और गुप्त साम्राज्य जैसे महान शासकों ने इस एकता को मजबूत किया।

6. आज के संदर्भ में : वर्तमान समय में ‘भारतवर्ष’ की अवधारणा भारत गणराज्य तक सीमित हो सकती है, लेकिन इसकी आत्मा आज भी जीवित है। आज भी देश के कोने-कोने में विभिन्न धर्म, जाति, भाषा और परंपराओं के लोग रहते हुए भी एक भारतीय पहचान को साझा करते हैं।

निष्कर्ष : भारतवर्ष की अवधारणा केवल एक भू-भाग नहीं, बल्कि एक महान संस्कृति, परंपरा और जीवन दृष्टि का नाम है। यह विचार हमें एकता, सहिष्णुता और मानवीय मूल्यों की ओर प्रेरित करता है, जो आज भी हमारे देश की सबसे बड़ी ताकत है। इसी से हमारी पहचान बनी है और यही हमें विश्व में विशिष्ट बनाता है

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