प्रश्न- बैजू बावरा पर टिप्पणी लिखें |
उत्तर- भारतीय संगीत और लोक–कथाओं की परंपरा में बैजू बावरा का नाम अत्यंत सम्मान और श्रद्धा के साथ लिया जाता है। उन्हें ध्रुपद शैली का महान गायक माना जाता है। बैजू बावरा का वास्तविक नाम बैजनाथ बताया जाता है। वे अत्यंत सुरीले, साधक-स्वरूप, संगीत–समर्पित और चमत्कारिक प्रतिभा वाले गायक माने जाते हैं। उनसे जुड़ी अनेक जनकथाएँ और किंवदंतियाँ संगीत–प्रेमियों में आज भी लोकप्रिय हैं। इन कथाओं में उनके संगीत–ज्ञान, स्वर–साधना और संगीत–चमत्कारों का वर्णन मिलता है।
बैजू बावरा का जन्म लगभग पंद्रहवीं–सोलहवीं शताब्दी के आसपास माना जाता है। बचपन से ही वे संगीत के प्रति अत्यधिक आकर्षित थे। कहा जाता है कि उन्होंने स्वामी हरिदास जैसे श्रेष्ठ गुरु से संगीत की शिक्षा प्राप्त की। स्वामी हरिदास ही तानसेन के गुरु भी थे। इसी कारण बैजू और तानसेन के बीच प्रतिद्वंद्विता की कथाएँ बहुत प्रसिद्ध हैं। बैजू को “बावरा” इसलिए कहा गया क्योंकि वे संगीत में पूर्ण रूप से डूबे रहते थे और संसारिक बातों से अनजान व अलग-थलग से रहते थे। उनके लिए संगीत ही पूजा, भक्ति और जीवन का लक्ष्य था।
बैजू बावरा के बारे में ऐसी अनेक कथाएँ प्रचलित हैं जिनमें उनके संगीत की अद्भुत शक्ति का वर्णन मिलता है। कहा जाता है कि वे अपने स्वरों से दीपक जला देते थे, फूल झड़ा देते थे या पत्थर तक पिघला देते थे। आज ये बातें काल्पनिक या अतिशयोक्तिपूर्ण लग सकती हैं, परन्तु इन कथाओं का उद्देश्य बैजू की संगीत–निष्ठा, उनकी अद्वितीय साधना और उनके अलौकिक रूप से सुरीले स्वरों को दर्शाना है।
लोककथाओं में यह भी बताया गया है कि बैजू ने महाराजा मान सिंह, तानसेन और कई राजदरबारों में अपनी गायकी का लोहा मनवाया। वे ध्रुपद, धमार और प्राचीन रागों में विशेष दक्ष थे। उनकी साधना इतनी गहन थी कि कहा जाता है—“बैजू ने संगीत को साधा नहीं, संगीत ने बैजू को साध लिया।”
तानसेन से मुकाबला :
बैजू बावरा और तानसेन की प्रतिद्वंद्विता संगीत–इतिहास की रोचक कथा है। कई जनश्रुतियों में कहा जाता है कि बैजू ने तानसेन को संगीत–जंगल में चुनौती दी थी और तानसेन बैजू की स्वर–शक्ति से प्रभावित हुए थे। भले ही ऐतिहासिक प्रमाण कम हों, पर यह कथा भारतीय संगीत परंपरा को और भी गौरवशाली बनाती है।
बैजू बावरा संगीत समर्पण, तपस्या और भक्ति–भाव का प्रतीक माने जाते हैं। उनकी कथाएँ यह सिखाती हैं कि यदि मनुष्य किसी कला में पूर्ण समर्पण, अभ्यास और श्रद्धा से लग जाए तो वह असाधारण उपलब्धि प्राप्त कर सकता है।
बैजू बावरा ऐतिहासिक हों या लोककथाओं के नायक—यह निश्चित है कि वे भारतीय संगीत संस्कृति के अमर प्रतीक हैं। उनका जीवन संगीत–साधना, भक्ति और समर्पण का प्रेरक उदाहरण है। उनकी कथा आज भी संगीत–प्रेमियों को प्रेरित करती है और भारतीय संगीत की समृद्ध परंपरा को उजागर करती है।