प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने के साहित्यिक स्त्रोतों का वर्णन कीजिए।
साहित्यिक स्त्रोत
प्राचीन भारतीय इतिहास के साहित्यिक स्त्रोतों को दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है – 1. धार्मिक साहित्य तथा 2. ऐतिहासिक एवं समसामयिक साहित्य |
1. धार्मिक साहित्य : प्राचीन भारतीय धार्मिक साहित्य से हमें तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक जीवन के बारे में जानकारी मिलती है। धार्मिक साहित्य के अन्तर्गत ब्राह्मण साहित्य, बौद्ध साहित्य तथा जैन साहित्य को सम्मिलित किया जा सकता है।
(क) ब्राह्मण साहित्य
(1) वेद : ब्राह्मण साहित्य के प्राचीनतम ग्रन्थ वेद हैं। भारतीय परम्परा के अनुसार वेद सम्पूर्ण भारतीय जीवन, धर्म, साहित्य, कला, विज्ञान आदि का मूल स्त्रोत हैं। वेद चार हैं— ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद। वेदों से प्राचीन आर्यों की सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा राजनीतिक स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है। ऋग्वेद से हमें आर्यों के प्रसार, उनके आन्तरिक संघर्षों, उनके राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक जीवन की जानकारी मिलती है। अथर्ववेद में आर्यों की सांस्कृतिक प्रगति का चित्र मिलता है।
(2) ब्राह्मण : ब्राह्मण ग्रन्थों में वैदिक मन्त्रों तथा संहिताओं की गद्य में व्याख्या की गई है। प्रत्येक वेद के अपने-अपने ब्राह्मण ग्रन्थ हैं। ब्राह्मण ग्रन्थों से तत्कालीन राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन की जानकारी मिलती है। ऐतिहासिक जानकारी के लिए ‘शतपथ ब्राह्मण’ सबसे उपयोगी है।
(3) आरण्यक : आरण्यक ग्रन्थों की रचना वनों में रहने वाले संन्यासियों के प्रयोग तथा मार्गदर्शन के लिए की गई थी। इनमें यज्ञों के रहस्यों तथा दार्शनिक तत्त्वों का विवेचन किया गया है।
(4) उपनिषद : उपनिषदों में ब्रह्म-ज्ञान अथवा आत्म-ज्ञान की विवेचना की गई है। इनमें जीव, जगत्, ब्रह्म, मोक्ष प्राप्ति आदि का विवेचन किया गया है। उपनिषद आर्यों के दर्शन के मूलाधार हैं। इनमें यज्ञों के स्थान पर ज्ञान मार्ग का तथा बहुदेववाद के स्थान पर एक परम सत्ता का प्रतिपादन किया गया है। इनमें ईशावास्य, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, वृहदारण्यक, श्वेताश्वतर और कौषीतकि नामक उपनिषद उल्लेखनीय हैं। इनमें आर्यों के धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक जीवन की जानकारी मिलती हैं।
(5) सूत्र साहित्य : इसके निम्नलिखित तीन भाग हैं-
(i) श्रौत सूत्र : इनमें यज्ञों से सम्बन्धित अनुष्ठान एवं कर्मकाण्डों का विवेचन मिलता है।
(ii) गृह्य सूत्र : इनमें गृहस्थ जीवन से सम्बन्धित संस्कारों, अनुष्ठानों तथा मौलिक कर्त्तव्यों का वर्णन है।
(iii) धर्म सूत्र : इनमें वर्णाश्रम, पारिवारिक जीवन, राजनीतिक जीवन, दण्ड-व्यवस्था आदि का विवेचन किया गया है।
( 6 ) वेदांग : वेदों को समझाने के लिए वेदांगों की रचना की गई। वेदांग 6 हैं (i) शिक्षा, (ii) कल्प, (iii) निरुक्त, (iv) व्याकरण, (v) छन्द तथा (vi) ज्योतिष ।
(7) स्मृतियाँ : स्मृतियों में मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन के विविध कार्यों के नियमों निषेधों का वर्णन मिलता है। स्मृतियों से प्राचीन भारत के सामाजिक एवं धार्मिक इतिहास की पर्याप्त जानकारी मिलती है । मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, नारद स्मृति, बृहस्पति स्मृति, स्मृति, पाराशर स्मृति आदि प्रमुख स्मृतियाँ हैं ।
(8) महाकाव्य : रामायण तथा महाभारत प्राचीन भारत के महाकाव्य हैं। रामायण के रचयिता वाल्मीकि तथा महाभारत के रचयिता वेदव्यास थे। इन महाकाव्यों से भारत के सांस्कृतिक इतिहास पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। इन महाकाव्यों से तत्कालीन भारत की सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिति के बारे में पर्याप्त जानकारी मिलती है।
(9) पुराण : पुराणों की संख्या 18 है । इन ग्रन्थों में महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्री है। पुराणों में पाँच विषयों का वर्णन है – (1) सृष्टि की उत्पत्ति किस प्रकार हुई, (2) सृष्टि का प्रलय किस प्रकार होता है, (3) देवताओं तथा ऋषियों की वंश तालिका का वर्णन, (4) काल के विविध मन्वन्तरों (महायुगों ) का वर्णन तथा (5) प्राचीन राजवंशों का क्रमिक इतिहास । ‘विष्णु पुराण’ में मौर्यवंश, ‘मत्स्य पुराण’ में आन्ध्र वंश तथा ‘वायु पुराण’ में गुप्त वंश के विषय में पर्याप्त विवरण मिलता है। यद्यपि पुराणों में कुछ त्रुटियाँ हैं, किन्तु फिर भी ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण से पुराणों का काफी महत्त्व है। प्राचीन भारत का सांस्कृतिक इतिहास लिखने के लिए पुराणा बहुत उपयोगी है।
(ख) बौद्ध साहित्य
(1) त्रिपिटक : त्रिपिटक तीन हैं— (1) विनयपिटक, (2) सुत्तपिटक तथा (3) अभिधम्मपिटक ।
(i) विनयपिटक : इसमें बौद्ध भिक्षु भिक्षुणियों के संघीय एवं दैनिक जीवन से सम्बन्धित आचार-विचार, विधि – निषेध आदि का वर्णन है।
(ii) सुत्तपिटक : इसमें महात्मा बुद्ध के उपदेशों, सिद्धान्तों, कथानकों आदि का संग्रह है।
(iii) अभिधम्मपिटक : इसमें बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों एवं दर्शन की उच्च स्तर पर विवेचना की गई है।
इन तीनों ग्रन्थों से तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक तथा राजनीतिक जीवन पर भी अच्छा प्रकाश पड़ता है।
(2) जातक : जातकों में भगवाद बुद्ध के पूर्व जन्म की कथाएँ दी गई हैं। इनकी कुल संख्या 550 है। इनके अध्ययन से तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा राजनीतिक अवस्था के विषय में जानकारी मिलती है।
(3) मिलिन्दपन्हो : इस ग्रन्थ में हिन्द-यूनानी राजा मिनाण्डर तथा बौद्ध भिक्षु नागसेन के बीच हुए दार्शनिक वार्तालाप का विवरण है। बौद्ध साहित्य एवं दर्शन के इतिहास को जानने की दृष्टि से यह एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। इससे तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक अवस्थाओं के बारे में भी पर्याप्त जानकारी मिलती है।
(4) दीपवंश तथा महावंश : ये दोनों लंका के पालि-महाकाव्य हैं। इनमें लंका के इतिहास के साथ-साथ भारतीय इतिहास पर भी अच्छा प्रकाश पड़ता है। मौर्यकाल के इतिहास के अध्ययन के लिए ये दोनों ग्रन्थ बड़े उपयोगी हैं।
(5) महावस्तु : इसमें महात्मा बुद्ध का जीवन-वृत्त मिलता है। इसमें बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों का भी उल्लेख है।
(6) ललित विस्तार : इसमें महात्मा बुद्ध का जीवन प्रस्तुत किया गया है। इसमें महात्मा बुद्ध को दैवी शक्ति के रूप में स्वीकार किया गया है।
(7) दिव्यावदान : इससे अशोक के उत्तराधिकारियों के बारे में जानकारी मिलती है।
(8) बुद्धचरित एवं सौन्दरानन्द : अश्वघोष द्वारा रचित ‘बुद्धचरित’ एवं ‘सौन्दरानन्द’ में महात्मा बुद्ध के जीवन-वृत्त तथा बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों का विवरण मिलता है।
(9) आर्य मंजूश्री मूलकल्प : इस ग्रन्थ में मौर्यो के पूर्व से लेकर हर्षवर्धन के समय की राजनीतिक घटनाओं का वर्णन मिलता है।
(ग) जैन साहित्य
प्राचीन भारत के इतिहास की जानकारी के लिए जैन साहित्य भी बड़ा उपयोगी है। प्राचीन भारत के इतिहास के निर्माण में निम्नलिखित जैन ग्रन्थ सहायक सिद्ध हुए हैं-
(1) परिशिष्ट पर्वन : इस ग्रन्थ की रचना हेमचन्द्र ने की थी। इस ग्रन्थ से महावीर स्वामी के समय के राजाओं तथा अन्य जैन-सम्राटों के सम्बन्ध में जानकारी मिलती है। इसमें नन्द वंश, चन्द्रगुप्त मौर्य तथा चाणक्य के बारे में प्रचलित कथाएँ सम्मिलित हैं।
( 2 ) भद्रबाहु चरित : इस ग्रन्थ में प्रसिद्ध जैन विद्वान भद्रबाहु तथा चन्द्रगुप्त मौर्य से सम्बन्धित घटनाओं का उल्लेख है।
(3) जैन आगम : जैन साहित्य में जैन आगम ग्रन्थों का अत्यधिक महत्त्व है। इनमें 12 अंग, 12 उपांग, 10 प्रकीर्ण, 6 छेद सूत्र, 4 मूल सूत्र, 1 नन्दि सूत्र तथा 1 अनुयोग द्वार सम्मिलित हैं। ‘आचारांगसुत्त’ में जैन भिक्षुओं के आचार सम्बन्धी नियमों का उल्लेख है। ‘भगवतीसुत्त’ महावीर स्वामी की जीवनी पर प्रकाश डालता है।
(4) अन्य ग्रन्थ : कथा – कोष, वृहत्कल्पसूत्र भाष्य, वसुदेव हिण्डी, पुण्याश्रव कथाकोष, कुवलयमाला कथा, त्रिलोक प्रज्ञप्ति, महापुराण, आवश्यक सूत्र, लोक-विभाग आदि अनेक जैन ग्रन्थ प्राचीन भारतीय इतिहास के निर्माण में सहायक है।
2. ऐतिहासिक और समसामयिक साहित्य :
(1) पाणिनी की अष्टाध्यायी : इस ग्रन्थ से मौर्य काल से पूर्व के सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक इतिहास पर प्रकाश पड़ता है।
(2) कौटिल्य का अर्थशास्त्र : इसकी रचना चौथी शताब्दी ई. पूर्व में चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रधानमन्त्री चाणक्य ने की थी। इस ग्रन्थ से मौर्यकालीन भारत की शासन व्यवस्था, सामाजिक तथा आर्थिक अवस्था के बारे में जानकारी मिलती है।
(3) पतंजलि का महाभाष्य : इस ग्रन्थ में पुष्यमित्र शुंग के शासकाल में हुए यवन आक्रमण का उल्लेख मिलता है।
(4) गार्गी संहिता : इस ग्रन्थ में भी यवन आक्रमण का उल्लेख है।
(5) मालविकाग्निमित्र : इस ग्रन्थ की रचना कालिदास ने की थी। इस ग्रन्थ में पुष्यमित्र शुंग के अश्वमेध यज्ञ एवं पुष्यमित्र शुंग के पुत्र द्वारा यवनों को पराजित करने का वर्णन मिलता है।
(6) मुद्राराक्षस : इस ग्रन्थ की रचना विशाखदत्त ने की थी। इस ग्रन्थ से चन्द्रगुप्त मौर्य तथा चाणक्य द्वारा नन्द वंश के विनाश पर प्रकाश पड़ता है।
(7) हर्षचरित : इस ग्रन्थ की रचना बाणभट्ट ने की थी। इससे वर्धनवंश के इतिहास, हर्षवर्धन के जीवन चरित्र, उसकी विजयों तथा हर्षकालीन सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है।
(8) कामन्दकीय नीति सार : इससे गुप्तकालीन शासन तन्त्र, राजस्व – सिद्धान्तों आदि के बारे में जानकारी मिलती है।
(9) राजतरंगिणी : इसकी रचना कल्हण ने की थी। इसमें प्राचीन काल से लेकर बारहवीं शताब्दी तक का कश्मीर का इतिहास दिया हुआ
हैं।
(10) गौड़वहो : इसकी रचना वाक्यपतिराज ने की थी। इसमें कन्नौज के राजा यशोवर्मन की दिग्विजय का विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है।
(11) विक्रमांकदेवचरित : इसके रचयिता विल्हण थे। इस ग्रन्थ में कल्याणी के चालुक्य नरेश विक्रमादित्य की उपलब्धियों का वर्णन है।
(12) नवसाहसांक चरित : इसकी रचना पद्मगुप्त परिमल ने की थी । इसके परमार वंश के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है।
(13) कुमारपाल चरित : इसके रचयिता हेमचन्द्र थे । इसमें गुजरात के चालुक्य- नरेश कुमारपाल की उपलब्धियों का विवरण है।
(14) संगम साहित्य : संगम साहित्य में हमें दक्षिण भारत के प्राचीन राजवंशों चेर, चोल, पाण्ड्य तथा तत्कालीन सामाजिक एवं आर्थिक जीवन के बारे में जानकारी मिलती है।
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