प्रश्न- पूर्व वैदिक एवं उत्तर वैदिक कालीन साहित्य एवं दर्शन की विवेचना कीजिए।
वैदिक साहित्य भारत की अमूल्य निधि है। इसके द्वारा वैदिक संस्कृति के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी मिलती है। आर्यों की सभ्यता तथा संस्कृति को जानने का तो यह एकमात्र साधन है। वैदिक साहित्य में केवल वेद ही नहीं, अपितु आर्यों के सभी ग्रन्थ शामिल हैं जिसमें चारों वेद, ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक एवं उपनिषद् आते हैं।
रचना काल के आधार पर वैदिक साहित्य को दो भागों में बाँटा जा सकता है- (1) पूर्व वैदिक का साहित्य या श्रुति साहित्य ।
(2) उत्तर वैदिक काल का साहित्य या स्मृति-साहित्य ।
पूर्व वैदिक काल का साहित्य या श्रुति साहित्य
(Literature of the Early Vedic Period or Shruti Literature)
पूर्व वैदिक साहित्य के अन्तर्गत वेद, संहिता, ब्राह्मण, आयरण्यक और उपनिषद् आते हैं। ‘वेद’ शब्द संस्कृत भाषा में ‘विद’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है ‘ज्ञान होना’ । हिन्दू वेदों को ‘अपुरुषेय’ या ईश्वर द्वारा रचित मानते हैं तथा उनकी दृष्टि में ये शाश्वत हैं। यह कहा जाता है कि उनकी रचना ईश्वरीय प्रेरणा के आधार पर ऋषियों ने की। वेदों को ‘श्रुति’ भी कहा जाता है क्योंकि आरम्भ में उन्हें कं स्थ कर लिया जाता था। वैदिक साहित्य को तीन युगों में बाँटा जा सकता है। प्रथम काल संहिताओं का युग, द्वितीय काल ब्राह्मण-ग्रंथों का युंग और तृतीय काल उपनिषदों, आरण्यकों तथा सूत्रों का युग था। कौटिल्य ने लिखा है “ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद को त्रिवेद कहा गया। अथर्ववेद और इतिहासवेद को इसमें मिला दिया गया और इन सबको वेद कहा गया।” वेदों की साधारण परिभाषा के अनुसार इतिहास को वेदों के साथ नहीं लिया जाता।
1. वेदों का परिचय : ऋग्वेद, सब वेदों में पुराना माना जाता है और सबसे अधिक महत्व रखता है। यह संसार में सबसे पहले लिखा गया ग्रन्थ है। इसमें 10 मण्डल तथा 1028 मन्त्र हैं। इसी वेद में बहुत-से गायत्री मन्त्र हैं जिन्हें हिन्दू अपने घरों में पढ़ते हैं। अनेक मन्त्रों में देवताओं की स्तुति की गई है। सामवेद में ऋग्वेद से भी अधिक मन्त्र हैं, जिन्हें पुरोहितगण. यज्ञ करने के अवसर पर गाया करते थे । यजुर्वेद में बलि के बारे में लिखा गया है। इसमें यज्ञ की रीतियों को समझाया गया है। अथर्ववेद में जादू के विषय में कई मन्त्र हैं, जैसे- राक्षसों और भूतों को मन्त्रों के द्वारा किस प्रकार अपने वश में किया जा सकता है। इतिहासकारों के लिए सबसे अधिक महत्व ऋग्वेद का है, जिससे आर्यों की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक अवस्था का आभास मिलता है।
2. ब्राह्मण : कठिन पुस्तकों को सरल बनाने के लिए जिस प्रकार आधुनिक युग में टिप्पणियाँ लिखी जाती हैं, उसी प्रकार ब्राह्मण, वेदों पर एक प्रकार की टिप्पणियाँ हैं, ब्राह्मण वेदों के मंत्रों को समझने में हमारी सहायता करते हैं। ये गद्य में हैं। इनमें कहीं-कहीं परं तत्कालीन सामाजिक एवं राजनीतिक अवस्था पर भी प्रकाश डाला गया है।
3. आरण्यक : ऋषियों के द्वारा आरण्यकों की रचना अरण्य (वन) में की गयी थी, इसलिए इन्हें आरण्यक कहते हैं। ये ब्राह्मणों के ही अंग हैं। इसमें जीवन के रहस्यों और दर्शन के बारे में भी विवेचन है। आरण्यकों का अध्ययन भी शांति से वनों के शांतिपूर्ण वातावरण में किया जाता है।
4. संहिताएँ : चारों वेदों की अलग-अलग संहिताएं हैं। इनमें अधिकांश मन्त्र हैं, जिन्हें रट लिया जाता था। इनमें आर्यों की उपासना-विधि, भूतों में विश्वास और बलिदान – प्रथा के बारे में कुछ विस्तार से उल्लेख किया गया है।
5. उपनिषद् : अध्ययन की दृष्टि से वेदों को चार भागों में विभाजित किया गया है— (i) संहिता ( तन्त्र, मन्त्र, प्रार्थना आदि का संग्रह) (ii) ब्राह्मण (कर्मकाण्डों का विवेचन (iii) आरण्यक (यज्ञों के रहस्यों और दार्शनिक तत्वों का विवेचन) और (iv) उपनिषद् (मानव जीवन और विश्व के गूढ़तम प्रश्नों का विवेचन)। उपनिषद् भी वेदों के ही अंग है।
वेदों के तीन भाग : विषय सामग्री की दृष्टि से वेद के तीन भाग हैं-कर्मकाण्ड, उपासना – काण्ड और ज्ञान – काण्ड | ज्ञान – काण्ड में जगत् के मूल तत्व का ही विचार किया. गया है और इस ज्ञान – काण्ड का ही विकास उपनिषदों में मिलता है। उपनिषदों की रचना संहिताओं, ब्राह्मणों और आरण्यकों के बाद हुई है। अत: इन्हें ‘वेदांत’ भी कहा जाता है।- उपनिषदों की रचना विभिन्न कालों में हुई है और इनकी संख्याभी 200 बताई जाती है। इनमें ग्यारह उपनिषद् विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं – ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुंडक, मांडूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छांदोग्य, वृहदारण्यक और श्वेताश्वतर । वास्तव में आरण्यकों में मनन संबंधी- विषयों का, जैसे- आत्मा, जीव, जगत, ब्रह्म, जन्म, मृत्यु, प्रकृति आदि का उल्लेख किया गया है और उपनिषदों में उन पर विस्तार से विचार किया गया है। इस प्रकार उपनिषद् वैदिक साहित्य में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। ये ब्रह्म-विद्या के आदि स्रोत माने जाते हैं।
महत्व : उपनिषदों को भारतीय साहित्य में ही नहीं, विश्व साहित्य में भी एक अत्यन्त महत्वपूर्ण और उच्चतम स्थान प्राप्त है । विदेशियों ने भी उपनिषदों में प्रतिपादित विचारों और सिद्धांतों की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की है। उपनिषदों में जिन आध्यात्मिक और तत्व-संबंधी विचारों का स्पष्टीकरण किया गया है, वे प्राय: सर्वमान्य हैं। कोई भी दर्शन या धर्म उन्हें मानने से इनकार नहीं करता है। उपनिषद मानव मस्तिष्क की अनोखी उपज हैं और ये भारतीयों की स्थायी राष्ट्रीय सम्पत्ति हैं।
प्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक शोपेनहावर के शब्दों में, “सम्पूर्ण विश्व में उपनिषदों के समान जीवन को ऊँचा उठाने वाला कोई दूसरा अध्ययन का ग्रन्थ नहीं है। उनसे मेरे जीवन को शांति मिली है। उन्हीं से मुझे मृत्यु में भी शान्ति मिलेगी।”
6. पुराण : पुराण शब्द का अर्थ है, ‘पुराना’। पुराणों में हिन्दुओं का प्राचीन इतिहास है। ये संस्कृत भाषा में हैं। इनमें संसार की उत्पत्ति आदि का विशद वर्णन है । पुराण संख्या में अठारह हैं और प्रत्येक के पाँच भाग हैं। पहले भाग में संसार की उत्पत्ति का वर्णन है। दूसरे भाग में संसार की पुनरोत्पत्ति के विषय में वर्णन है। तीसरे भाग में देवताओं के वंशक्रमों का वर्णन है। चौथे भाग में महापुरुषों का वर्णन है और पाँचवें भाग में राजवंशों का इतिहास है।
पुराण अलग-अलग समय में लिखे गये हैं। उनकी भाषा तथा विषय में बड़ा अन्तर है। कुछ पुराण तो बहुत प्राचीन काल में लिखे गये हैं और कई बाद में लिखे गये हैं। कुछ पुराणों का समय 600-700 ई. पू. से 500-600 ई. तक माना जाता है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भारत की धार्मिक पुस्तकों में पुराण ही सबसे अधिक उपयोगी हैं। पुराणों से अनेक राजवंशों, राजाओं के नामों और उनका राज्य करने के विषय में ज्ञान प्राप्त होता है। इतना ही नहीं, कई राजाओं के राज्य काल की प्रसिद्ध घटनाओं का भी इन पुराणों में वर्णन है जिनकी सभ्यता का ज्ञान शिलालेखों, सिक्कों तथा अन्य ऐतिहासिक स्रोतों से हो चुका है। मौर्यकाल में राजाओं के पहले शिशुनाग वंश के और नन्दवंश के राजा मगध पर राज्य करते थे तथा मौर्य वंश के बाद तीनों वंशों कण्व, शुंग और आन्ध्र वंशों ने मगध देश पर शासन किया। इसका इतिहास जानने में पुराणों से ही पर्याप्त सहायता मिली है। पुराणों में यद्यपि कई त्रुटियाँ हैं, घटनाओं का ठीक-ठीक और सही-सही पता लगाना कठिन हो जाता तथापि वीर काल से गौतम बुद्ध की उत्पत्ति तक के समय को जानने के लिए तो पुराण ही वे स्रोत है, जो हमारी सहायता करते हैं।
7. स्मृतियाँ : स्मृतियाँ वे धर्म ग्रन्थ हैं जिनमें आचरण संबंधी नियमों तथा उपनियमों का उल्लेख किया गया है। वे उस युग की आचार संहिताएँ हैं, जिनमें जाति और व्यक्ति दोनों के कर्तव्यों का वर्णन है तथा कर्तव्यों की अवहेलना करने पर दण्ड का विधान भी है ! स्मृतियाँ कई हैं, जैसे – मनु स्मृति, पाराशर स्मृति आदि। इन स्मृतियों में मनु स्मृति का स्थान सर्वोपरि है। यह एक कानून का ग्रन्थ है जिसकी सहायता दण्ड-व्यवस्था में बराबर ली जा रही है। हिन्दू कानून में मनुशास्त्र का विशेष स्थान है।
उत्तर वैदिक काल का साहित्य
(Later Vedic Literature)
उत्तर वैदिक काल के साहित्य के अन्तर्गत वेदांग, सूत्र, उपवेद, षट्दर्शन आदि हैं।
I. वेदांग (Vedang) : वेदांग वेदों के अंग माने गये हैं। वेदों के अर्थ को समझने तथा सूक्तियों का सही उच्चारण करने के लिए वेदांगों की रचना की गयी। ये संख्या में छः हैं- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, छन्द और ज्योतिष |
(1) शिक्षा : स्वरों का शुद्ध उच्चारण करने के लिए शिक्षा वेदांग की रचना की गयी।
(2) कल्प : इसमें नियम का सम्पादन किया गया।
(3) व्याकरण : इसमें व्याकरण के नामों, धातुओं, उपसर्ग, समासों और सन्धियों आदि का उल्लेख किया गया।
(4) निरूक्त : मास्क द्वारा रचित इस ग्रन्थ में वैदिक शब्दों के अर्थ और व्याख्या दी गयी।
(5) छन्द : कई छन्दों की रचना की गयी परन्तु केवल पिंगल रचित छन्द शास्त्र उपलब्ध हैं।
(6) ज्योतिष : ज्योतिषी ज्ञान का प्रतिपादन किया गया।
II. सूत्र (Sutras) : इस साहित्य का ई० पू० छठी शताब्दी के बाद से ई० संवत् के आस-पास तक है। इस साहित्य में कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक बात को कहने का प्रयास हुआ है। उपनिषदों के पश्चात् ब्राह्मण साहित्य का काफी बड़ा भाग सूत्र रूप में लिखा गया। इसके रचयिता ने धार्मिक और सामाजिक कानूनों को छोटे-छोटे सूत्रों में संगठित कर रखा है। सम्भवतः वेदों को याद करने के लिए ऐसा किया गया।
हिन्दू समाज को एकता के सूत्र में बाँधने में साहित्य का बहुत अधिक योगदान है। वर्णाश्रम धर्म, कर्मकांड आदि को स्थापित करने का प्रयास किया गया। बौद्ध धर्म विरोधों का सूत्र साहित्य ने जमकर उत्तर दिया।
III. उपवेद (Upveda) : प्रत्येक वेद का एक उपवेद है। इस प्रकार उपवेद चार हैं :
(i) आयुर्वेद : यह ऋग्वेद का उपवेद है। इसमें औषधि विज्ञान का वर्णन है।
(ii) धत्तुर्वेद : यह यजुर्वेद का उपवेद है। इसमें युद्ध कला का वर्णन है।
(iii) गन्धर्ववेद : यह सामवेद का उपवेद है। इससे नृत्य और संगीत की जानकारी मिलती है।
(iv) शिल्पवेद : यह अथर्ववेद का उपवेद है। इसमें भवन निर्माण कला का वर्णन है।
IV. षटदर्शन ( Shatdarshan) : उपनिषदों के दर्शन को भारतीय ऋषियों ने 6 भागों में विभाजित किया है। उन्हें ही षट्दर्शन कहते हैं। इनमें आत्मा, परमात्मा, जीवन और मृत्यु आदि से सम्बन्धित दार्शनिकता का वर्णन है । षट्दर्शन निम्नलिखित है :
(i) कपिल का संख्यशास्त्र, (ii) पतंजलि का योगशास्त्र, (iii) गौतम का न्यायशास्त्र, (iv) कणाह का वैशेषिक शास्त्र, (v) जैमिनी का पूर्व मीमांसा, (vi) व्यास का उत्तर मीमांसा ।