पंडित विष्णु दिगंबर पल्लुस्कर की संगीत के प्रति देन का उल्लेख करें ? BA Notes Pdf

उत्तर- पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर भारतीय शास्त्रीय संगीत के उन महान सुधारकों में गिने जाते हैं जिन्होंने न सिर्फ संगीत को जन–जन तक पहुँचाया, बल्कि उसे सम्मान, प्रतिष्ठा और सामाजिक मान्यता भी दिलाई। वे एक विशिष्ट गायक, संगीत–शिक्षक और समाज–सुधारक थे। उनका जन्म 1872 में महाराष्ट्र में हुआ। बचपन से ही वे संगीत के प्रति अत्यधिक लगाव रखते थे, और बाद में भारतीय संगीत के उत्थान के लिए उन्होंने जीवनभर सेवा की।

पलुस्कर जी की सबसे महत्वपूर्ण देन यह मानी जाती है कि उन्होंने संगीत को केवल राजदरबारों, घरानों और विशिष्ट ग वर्गों तक सीमित न रहने देकर आम जनता के लिए उपलब्ध करवाया। उस समय संगीत को अक्सर कम सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था, परंतु पलुस्कर जी ने अपने प्रयासों से संगीत को एक सम्मानजनक और पवित्र कला के रूप में स्थापित किया। उन्होंने संगीत को आध्यात्मिकता, साधना और नैतिकता से जोड़ा।

उन्होंने 1901 में लाहौर में “गंधर्व महाविद्यालय” की स्थापना की। यह संगीत शिक्षा का भारत में पहला ऐसा संस्थान था जिसने संगीत को औपचारिक, संगठित और व्यवस्थित शिक्षा–प्रणाली के रूप में प्रस्तुत किया। इसके माध्यम से संगीत की शिक्षा पाठ्यक्रम, कक्षाओं और परीक्षाओं के रूप में दी जाने लगी। इस संस्था ने संगीत के क्षेत्र में एक नई क्रांति ला दी और भारतीय संगीत को आधुनिक शिक्षा–प्रणाली से जोड़ने का मार्ग खोला। बाद में विभिन्न शहरों में भी गंधर्व महाविद्यालय स्थापित किए गए जो आज भी संगीत शिक्षण का प्रमुख आधार हैं।

पलुस्कर जी ने संगीत–लेखन को भी नए रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने सरल, स्पष्ट और भारतीय शैली की नोटेशन प्रणाली विकसित की, जिससे संगीत को लिखित रूप में संरक्षित करना आसान हुआ। उनकी लिखी हुई कई पुस्तकें आज भी विद्यार्थी और शिक्षक उपयोग करते हैं। उन्होंने रागों, भजनों और देशभक्ति गीतों को सुंदर और अनुशासित रूप में प्रस्तुत किया।

उनका एक और बड़ा योगदान यह है कि उन्होंने संगीत को धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व दिया। उन्होंने कई भजन, आरतियाँ और भक्तिगीत स्वरबद्ध किए। “रघुपति राघव राजा राम” और “वैष्णव जन तो” जैसे कई गीतों को उन्होंने सौम्य, मधुर और प्रभावशाली रूप दिया। इनके माध्यम से संगीत को भक्ति और आदर्शों से जोड़ने में उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

पलुस्कर जी ने संगीत को समाज में सम्मान दिलाने के लिए आंदोलन भी चलाए। वे मानते थे कि संगीत कोई निचला या मनोरंजन मात्र का पेशा नहीं, बल्कि जीवन को पवित्र बनाने वाली साधना है। उन्होंने संगीत को पेशेवरता की बजाय सेवा, समर्पण और अनुशासन से जोड़कर प्रस्तुत किया।

अंत में कहा जाए तो पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर की देन भारतीय संगीत के इतिहास में अमूल्य है। उन्होंने संगीत को समाज में प्रतिष्ठा दिलाई, शिक्षण–प्रणाली विकसित की, संस्थाएँ स्थापित कीं और संगीत को राष्ट्रभक्ति व भक्ति से जोड़कर उसे नई पहचान दी। उनका योगदान आज भी भारतीय संगीत की नींव के रूप में याद किया जाता है।


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