प्रश्न : गुप्तकाल में विज्ञान – प्रोधोगिकी के विकास विकास का वर्णन करे |
गुप्तकाल भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है। इस काल में राजनीति, अर्थव्यवस्था, साहित्य, कला, शिक्षा, धर्म और विज्ञान—सभी क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति हुई। विशेष रूप से विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में गुप्तकाल को भारतीय सभ्यता के उत्कर्ष का प्रतीक माना जाता है। इस काल में भारत न केवल सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध हुआ, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी विश्व में अग्रणी स्थान प्राप्त किया।
1. गणित का विकास : गुप्तकाल में गणित का असाधारण विकास हुआ। इस युग के महान गणितज्ञ आर्यभट ने ‘आर्यभटीय’ नामक ग्रंथ की रचना की, जिसमें बीजगणित, त्रिकोणमिति और ज्यामिति का वैज्ञानिक विवरण मिलता है। आर्यभट ने “शून्य” (0) और “दशमलव प्रणाली” का उपयोग किया, जो आगे चलकर विश्व भर में गणना की आधारशिला बनी। उन्होंने पृथ्वी के घूमने और ग्रहों की गति का भी गणितीय विश्लेषण प्रस्तुत किया। इसी काल के एक अन्य गणितज्ञ वराहमिहिर ने ‘पंचसिद्धांतिका’ नामक ग्रंथ में खगोलीय गणनाओं का विस्तार किया।
2. खगोल विज्ञान (Astronomy): गुप्तकाल के वैज्ञानिकों ने खगोल विज्ञान में अद्भुत प्रगति की। आर्यभट ने यह सिद्ध किया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है और सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है। उन्होंने ग्रहों की स्थिति, सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण की वैज्ञानिक व्याख्या दी। वराहमिहिर ने ग्रहों की गति, नक्षत्रों और मौसम परिवर्तन का गहन अध्ययन किया। उनके ग्रंथ बृहत्संहिता में ज्योतिष, खगोल और भूकंप जैसे प्राकृतिक घटनाओं का उल्लेख है।
3. चिकित्सा विज्ञान और आयुर्वेद: गुप्तकाल में चिकित्सा विज्ञान का भी विस्तार हुआ। इस काल में चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे ग्रंथों का अध्ययन और प्रयोग किया जाता था। चिकित्सकों ने औषधियों, जड़ी-बूटियों, आहार-विहार और शल्य चिकित्सा (सर्जरी) के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए। धातुओं और खनिजों से औषधियाँ तैयार करने की तकनीक भी इसी काल में विकसित हुई।
4. रसायन और धातु विज्ञान : गुप्तकाल में धातु विज्ञान अत्यंत उन्नत था। दिल्ली का लौह स्तंभ (Iron Pillar) इसका प्रमाण है, जो आज भी जंग रहित है। यह उस समय की धातु मिश्रण तकनीक (Metal Alloy Technology) की श्रेष्ठता को दर्शाता है। सोना, तांबा, रजत और लोहा जैसे धातुओं को परिष्कृत करने की विधियाँ विकसित थीं। रसायन शास्त्र का उपयोग औषधियों और धातुओं के निर्माण में किया जाता था।
5. वास्तुकला और अभियंत्रण : गुप्तकाल में मंदिर निर्माण और मूर्तिकला में वैज्ञानिक तकनीकें अपनाई गईं। इस काल के मंदिरों में स्थापत्य कला, सममिति (Symmetry) और संरचनात्मक संतुलन का ध्यान रखा गया। अजंता-एलोरा की गुफाएँ, देवगढ़ का विष्णु मंदिर, और भितरगाँव मंदिर इसकी श्रेष्ठ उदाहरण हैं।
6. शिक्षा और ज्ञान-विज्ञान का प्रसार: गुप्तकाल में तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय शिक्षा के प्रमुख केंद्र बने। यहाँ गणित, खगोल, चिकित्सा, दर्शन, व्याकरण और ज्योतिष जैसे विषयों की उच्च शिक्षा दी जाती थी। विद्वान केवल भारत में ही नहीं, बल्कि चीन, तिब्बत और दक्षिण-पूर्व एशिया तक ज्ञान का प्रसार कर रहे थे।
निष्कर्ष: गुप्तकाल वास्तव में भारत के वैज्ञानिक और तकनीकी विकास का स्वर्ण युग था। इस युग के विद्वानों ने गणित, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, धातु विज्ञान और वास्तुकला में जो उपलब्धियाँ हासिल कीं, उन्होंने भारत को विश्व में अग्रणी बनाया। इस काल का विज्ञान मानव कल्याण और प्राकृतिक संतुलन पर आधारित था। इसलिए कहा जा सकता है कि गुप्तकाल की वैज्ञानिक परंपरा भारतीय सभ्यता की गौरवमयी धरोहर है, जिसने आने वाली पीढ़ियों को ज्ञान, विवेक और तकनीकी प्रगति की प्रेरणा दी।
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