गांधार और मथुरा कला शैली की प्रमुख विशेताओ का वर्णन करें | BA Notes Pdf

भारतीय मूर्तिकला के इतिहास में गांधार और मथुरा कला शैलियाँ अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। ये दोनों शैलियाँ भारत में बौद्ध, जैन और हिन्दू कला के विकास की उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इनका विकास विशेषतः कुषाण काल (प्रथम से तीसरी शताब्दी ई.) में हुआ। यद्यपि इन दोनों शैलियों का उद्देश्य धार्मिक भावनाओं की अभिव्यक्ति था, फिर भी इनकी शैलीगत विशेषताएँ, स्वरूप, आकृति निर्माण और कलात्मक दृष्टिकोण एक-दूसरे से भिन्न हैं।

गांधार कला शैली का उद्भव उत्तर-पश्चिम भारत के गांधार प्रदेश (वर्तमान पाकिस्तान और अफगानिस्तान क्षेत्र) में हुआ। यह क्षेत्र यूनानी, रोमन और भारतीय संस्कृतियों के संगम का केन्द्र था, जिसके कारण इस शैली में ग्रीक-रोमन प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

  1. ग्रीक प्रभाव: गांधार कला को ग्रीको-बौद्ध कला भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें यूनानी मूर्तिकला की यथार्थवादी शैली और भारतीय आध्यात्मिक भावना का सुंदर संयोजन मिलता है।
  2. मूर्तियों की यथार्थता: गांधार मूर्तियों में शरीर की पेशियाँ, वस्त्रों की सिलवटें और चेहरे की अभिव्यक्ति अत्यंत यथार्थवादी और जीवंत प्रतीत होती हैं।
  3. बुद्ध प्रतिमाएँ: इस शैली में गौतम बुद्ध को मानव रूप में पहली बार प्रदर्शित किया गया। बुद्ध की मूर्तियों में गंभीरता, करुणा और ध्यान की मुद्रा दिखाई देती है।
  4. वस्त्र और अलंकरण: मूर्तियाँ यूनानी शैली के अंगरख़े (चोगे) में लिपटी होती हैं। वस्त्र पत्थर में बारीकी से उकेरे गए हैं जिनमें सिलवटें स्पष्ट दिखाई देती हैं।
  5. उपयोग की सामग्री: प्रायः ग्रे शिस्ट  पत्थर का प्रयोग किया गया, जिससे मूर्तियों को एक ठोस और चिकना रूप मिलता है।
  6. प्रसिद्ध मूर्तियाँ: बुद्ध का ध्यानमग्न रूप, अभय मुद्रा में बुद्ध, बोधि वृक्ष के नीचे बुद्ध, बुद्ध का जन्म दृश्य आदि इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

मथुरा कला शैली का विकास उत्तर भारत के मथुरा नगर और उसके आसपास हुआ। यह शैली भारतीय परंपरा, धर्म और संस्कृति की मूल भावना से जुड़ी हुई थी। मथुरा उस समय एक प्रमुख धार्मिक केन्द्र था, जहाँ बौद्ध, जैन और ब्राह्मण धर्म तीनों का प्रभाव था।

  1. भारतीयता का प्रतीक: मथुरा शैली पूर्णतः भारतीय परंपरा पर आधारित थी। इसमें किसी विदेशी प्रभाव की झलक नहीं मिलती।
  2. स्थानीय सामग्री: इसमें लाल बलुआ पत्थर  का उपयोग किया गया, जो मथुरा क्षेत्र में आसानी से उपलब्ध था।
  3. देव मूर्तियों का निर्माण: मथुरा में बुद्ध, जैन तीर्थंकरों, और हिन्दू देवताओं की अनेक मूर्तियाँ बनाई गईं। विशेष रूप से चतुर्भुज विष्णु, शिवलिंग, और देवी की मूर्तियाँ प्रसिद्ध हैं।
  4. मूर्तियों की बनावट: मथुरा की मूर्तियाँ मोटी, मांसल और दृढ़ शरीर वाली होती हैं। उनमें जीवन्तता, प्रसन्नता और आत्मविश्वास की भावना झलकती है।
  5. भावाभिव्यक्ति: यहाँ की मूर्तियों में आंतरिक आत्मिक शांति के साथ-साथ बाहरी ऊर्जा और उल्लास का संतुलन मिलता है।
  6. बुद्ध मूर्तियाँ: मथुरा की बुद्ध प्रतिमाएँ अधिक आध्यात्मिक हैं। उनके चेहरे पर गंभीरता और दिव्यता दिखाई देती है, जबकि गांधार की मूर्तियाँ यथार्थवादी होती हैं।

निष्कर्ष : गांधार और मथुरा कला शैलियाँ भारतीय मूर्तिकला की दो प्रमुख धाराएँ हैं। जहाँ गांधार कला में विदेशी यथार्थवाद और तकनीकी सौंदर्य दिखाई देता है, वहीं मथुरा कला में भारतीय आध्यात्मिकता और धार्मिक भावना का गहरा प्रभाव है। दोनों शैलियों के सम्मिलन से आगे चलकर गुप्तकालीन कला का विकास हुआ, जिसे भारतीय मूर्तिकला का स्वर्ण युग कहा जाता है।


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