कलिंग युद्ध सम्राट अशोक के जीवन एवं भारत के इतिहास की एक युगांतकारी घटना थी, स्पष्ट करें। 

अशोक विश्व के महान सम्राटों में से एक था। शासन की व्यवस्था, साम्राज्य के विस्तार, ह्रदय की उदारता, शिल्पकला के संवर्द्धन, प्रजावत्सलता और धर्म की संरक्षता इत्यादि के दृष्टिकोण से मानव जाति के इतिहास में यह सम्राट अद्वितीय था। वह अपने पिता बिन्दुसार के निधन के लगभग चार वर्ष बाद मगध की गद्दी पर बैठा था। उसका राज्यारी संघर्षो के बीच हुआ था। 

राजगद्दी पर बैठने से पहले वह उज्जैन का गवर्नर रह चुका था। उसको अपने पिता के एक विशाल साम्राज्य मिला था जो पश्चिम में हिन्दूकुश पर्वत से लेकर पूरव में बंगाल खाड़ी तक और उत्तरं में हिमालय, कश्मीर और नेपाल से लेकर सुदूर दक्षिण में मैसूर तक फैला हुआ था। वास्तव में उसका साम्राज्य विशाल था जो अशोक के दादा चन्द्रगुप्त मौर्य और चाणक्य की बुद्धि तथा योग्यता का फल था। परन्तु अशोक इतने बड़े विशाल साम्राज्य को पाकर संतुष्ट होनेवाला व्यक्ति नहीं था। फलतः वह अन्य राजाओं की भाँति हाथ-पर-हाथ रखकर बैठा नहीं रहा । गद्दी पर बैठते ही उसकी विजय-लिप्सा करवटें बदलने लगीं। वह दिग्विजय के द्वारा अपना नाम अमर करना चाहता था। सर्वप्रथम उसकी नजर महानदी और गोदावरी नदियों के मध्य में बसे हुए कलिंग के राज्य पर पड़ी जो अभी तक चन्द्रगुप्त मौर्य की दिग्विजयी सेना से बचा हुआ था, जिसके फलस्वरुप वह अपना सर ऊंचा किये हुए था। 

अशोक की कलिंग विजय : अशोक ने आठ वर्ष तक गही पर बैठने के बाद एक बहुत बड़ी सेना लेकर कलिंग राज्य पर आक्रमण किया। कलिंग राज्य भी उस समय अपनी सेना के लिए प्रसिद्ध था । मेगास्थनीज ने उसकी सेना का वर्णन इस प्रकार किया है- कलिंग राज्य के पास 60,000 पदाति, 100000 घोड़सवार और 700 हाथी थे। वास्तव में उनकी सेना विशाल थी। एक दिन दोनों की सेनाओं में भिड़न्त हो गई। इस युद्ध की भयंकरता और खूरखराबी का पता अशोक के 13वें शिलालेख से भी चलता है। कलिंग के लोग अपनी स्वतन्त्रता के पक्के पुजारी थे । इसलिए वहाँ के स्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढ़े सभी ने अपनी जान को हथेली पर लेकर अशोक की विशाल सेना का सामना किया। कई दिनों तक युद्ध चलता रहा । तलवारों की प्यास खून से बुझाई गई । युद्ध-स्थल खून से लथपथ हो गया। कहा जाता है कि इस युद्ध में इतनी खून खराबी हुई थी कि खून की नदी वह चली थी। अत: यह युद्ध अत्यन्त ही रक्तरंजित था। इस युद्ध की भयंकरता को देखकर मानवता सिसकती थी और शांति की चिता धू-धूकर जलती थी, क्योंकि इस युद्ध में 100000 ललनाओं के हाथ की चूड़ी फूटी थीं और उनके मांग का सिन्दूर धुल गया था, 50000 लोग कैदी बनाये गये थे। इससे कई गुणा अधिक संक्रामक रोगों और सामरिक परिस्थिति में मौत के घाट उतारे गये थे। अंत में विजय- श्री अशोक के गले में ही पड़ी। अब कलिंग का सारा वैभव अशोक का पैर चूम रहा था । अशोक एक राजकुमार को वहाँ का शासक बहान कर स्वयं पाटलिपुत्र लौट गया। 

कलिंग युद्ध का परिणाम : इस युद्ध की भयंकरता की अशोक के ह्रदय पर गहरी अमिट छाप पड़ी। सोते-बैठते और उठते-जागते सदा ही युद्ध के भयंकर दृश्य उसकी आँखों में नाचते रहते थे। उसके ह्रदय में युद्ध का हाहाकार और चीत्कार मचा रहता था। फलत: उसका हृदय द्रवीभूत हो उठा था । उसकी दशा पागलों जैसी हो गई थी। उसकी नीति में महान परिवर्तन आ गया था। उसने अपनी साम्राज्य विस्तार की नीति को सदा के लिए छोड़ दिया। उसने प्रतिज्ञा की कि वह भविष्य में कभी युद्ध नहीं करेगा। उसने अन्य राजाओं के साथ मैत्री का संबंध स्थापित करना शुरु किया। उसने कलिंग युद्ध के बाद खुलेआम यह घोषणा की कि इस युद्ध में जितने व्यक्ति मारे गये थे या बंदी बना लिये गये थे उनके शतांश का भी यदि वैसा ही भाग्य रहा तो सम्राट के लिए इससे बढ़कर और दूसरी बात ग्लानि की नहीं होगी । इसके अलावे यदि कोई हानि भी पहुँचायेगा तो जहाँ तक सम्भव हो सकता है सम्राट उसे भी सहेगा। इस युद्ध ने सम्राट की आँखें खोल दी। अब सम्राट की वास्तविक विजय धर्म – विजय ही थी । अतएव रणघोष के स्थान पर धर्मघोष की गूंज सुनाई पड़ने लगी और दिग्विजय के स्थान पर धर्म-विजय की कोशिश होने लगी। जिसके फलस्वरुप सम्राट ने अपने पुत्र और पोतों को भी इस नीति का अनुसरण करने का कहा। इस युद्ध के पहले अशोक के भोजन के लिए असंख्य पशु-पक्षियों का वध किया जाता था, परन्तु इस युद्ध के बाद हिंसा को वर्जित कर दिया गया। परन्तु अशोक की इस नीति का प्रभाव साम्राज्य के लिए अच्छा नहीं निकला. क्योंकि अशोक की इस नीति के कारण मगध साम्राज्य का पतन होना शुरू हो गया। साम्राज्य की एकता समाप्त होने लगी। लेकिन अन्य क्षेत्रों में इसका प्रभाव बहुत अच्छा पड़ा। उसकी इस नीति के फलस्वरुप धार्मिक और सामाजिक क्षेत्र में काफी उन्नति हुई। अब वह बौद्ध हो गया इसके बाद वह बौद्ध धर्म का प्रचार दूर-दूर के देशों में करने लगा। इस युद्ध के परिणामस्वरूप भारत में नवीन युग का आविर्भाव हुआ। डॉ० रायचौधारी ने कलिंग विजय के बारे में बतलाते हुए लिखा है कि, “मगध के इतिहास में कलिंग विजय वास्तव में एक महान घटना है। इसके साथ ही प्रादेशिक विजय और बलपूर्वक राज्य विस्तार का युग जो बिम्बिसार द्वारा अंग पर अधिकार करने के साथ शुरु हुआ था, अन्त हो जाता है। उसकी जगह पर एक ऐसे युग का पदार्पण होता है, जिसमें शांति, सामाजिक उन्नति और धर्म प्रचार का व्यापक रुप से प्रचार होता है, किन्तु इसके साथ ही राजनैतिक अचेतना और सैनिक दुर्बलता भी आ जाती है जिसका परिणाम यह होता है कि मगध साम्राज्य की सैनिक वृति प्रयोग के अभाव में धीरे-धीरे नष्ट हो जाती है। इस प्रकार सैनिक विजय अथवा दिग्विजय का युग समाप्त होता है और हम आध्यात्मिक – विजय के युग में प्रवेश करते हैं ।


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