प्रश्न- एक साम्राज्य के रूप में मगध राज्य के उत्थान की विवेचना करें।
छठी शताब्दी ई० पूर्व के महाजनपदों में अंततः मगध एक साम्राज्यवादी ताकत के रूप में उभरा। बिम्बिसार, अजातशत्रु और महापद्यनंद जैसे पराक्रमी राजाओं ने मगध के उत्कर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 321 ई० पूर्व तक इसने एक विशाल साम्राज्य का रूप धारण कर लिया।
मगध के उत्कर्ष के कारण
लोहे का भंडार : मगध की आरम्भिक राजधानी राजगृह के नजदीक लोहे का भंडार था। लोहे के औजारों से मगध के लोगों ने जंगलों को साफ किया और इसका अनुकूल असर कृषि के क्षेत्र में विकास से मगध की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हुई और उसके राजनीतिक उत्कर्ष में इसने सहायक की भूमिका निभायी। लोहे के शास्त्रास्त्रों का भी निर्माण हुआ। इससे भी वहाँ के लोगों को अन्य जनपदों को जीतने में आसानी हुई। कहने का तात्पर्य यह है कि लोहे के भंडार की उपलब्धि उनके लिए दोहरे लाभ की बात सिद्ध हुई । इसने न केवल उन्हें सुदृढ़ आर्थिक आधार प्रदान किया बल्कि उनके राजनीतिक उत्कर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण स्थलों पर राजधानी : मगध की दोनों राजधानियाँ सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण स्थानों पर थीं। राजगृह पाँच पहाड़ियों से घिरा हुआ था और पाटलिपुत्र गंगा, गंडक तथा सोन के संगम पर स्थित था। इसके अलावा यह चारों ओर से नदियों से घिरा था। नदियों के किनारे बसे होने से संचार की काफी सुविधा थी। राजगृह एक अभेद्य दुर्ग था तथा पाटलिपुत्र एक जलदुर्ग की तरह था। पाटलिपुत्र के उत्तर और पश्चिम में गंगा तथा सोन नदी बहती थी और दक्षिण से पुनपुन नदी घेरे हुई थी। मगध का सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण स्थान पर होना भी उसके राजनीतिक उत्कर्ष का एक कारण था ।
हाथी के उपयोग की खास सुविधा : मगध को देश के पूर्वी भाग से हाथी मिलते थे। उन्होंने अपनी सेना में हाथियों से युक्त सेना को भी स्थान दिया तथा अपने पड़ासियों के विरूद्ध इसका प्रयोग किया। हाथियों के सहारे वे दुर्गों को भेदने और यातायात की सुविधा से रहित स्थानों पर पहुँचने का काम करते थे। हाथियों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया।
व्यापारिक मार्ग से जुड़ा होना : मगध व्यापारिक मार्ग पर स्थित था। जल मार्ग द्वारा देश के विभिन्न भागों से जुड़ा हुआ था। अत: व्यापार और वा नगरों का उदय हुआ था। व्यापार और वाणिज्य से कर के रूप में प्राप्त होने वाली से मगध के राजा आर्थिक दृष्टि से काफी ठोस हो गये थे और उनकी इस आर्थिक मुदद ने राजनीतिक महत्व प्रदान कराने में काफी मदद की।
प्रतापी राजाओं का योगदान : मगध के उत्कर्ष का एक कारण वहाँ के प्राई राजा भी थे। बिंबिसार, अजातशत्रु और महापानंद जैसे कई साहसी और महत्वाकांक्षी मगध में हुए । इन्होंने सभी उपलब्ध साधनों ईमानदारी तथा बेईमानी से अपने राज्यों विस्तार किया और उन्हें मजबूत बनाया। कहने का तात्पर्य यह कि अगर उपरोक्त वर्णि राजाओं की तरह मगध में राजा नहीं हुए होते तो मगध का उत्कर्ष संभव नहीं होता।
मगध के उत्कर्ष के विभिन्न चरण : बौद्ध और जैन साहित्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि मगध के ऊपर हर्यक वंश, शिशुनाग वंश और नंद वंश का शासन रहा। लेकिन इसके पूर्व के इतिहास की जानकारी हमें स्पष्ट रूप से नहीं मिलती है। महाभारत और पुराणों के विवरण के अनुसार मगध का सबसे प्राचीन राजवंश वृहद्रथ वंश था। इस राजवंश की स्थापना वृहद्रथ ने की थी। जरासंध नामक राजा, जिसका उल्लेख महाभारत में मिलता है, इसी वंश का एक प्रतापी राजा था। इस राजवंश के काल में मगध की राजधानी राजगृह में थी। जरासंध के बाद इतिहास पुनः अस्पष्ट है। मगध के वास्तविक इतिहास की शुरुआत हर्यक वंश के शासन काल से होती है। इस वंश के राजाओं में बिंबिसार, अजातशत्रु और उदायिन प्रमुख थे।
बिंबिसार के शासनकाल में मगध : बिंबिसार एक सामान्य सामंत भट्टिय का पुत्र था। उसका शासनकाल 544 ई0 से लेकर 492 ई० पूर्व के बीच माना जाता है। उसकी राजधानी गिरिव्रज या राजगृह में थी । उसने मगध के प्रभुत्व के विस्तार के लिए न केवल लड़ाइयाँ लड़ी, बल्कि वैवाहिक और मैत्री संबंधों की नीति का भी अवलंबन किया। आरंभ में उसने मगध के प्रभाव को वैवाहिक संबंधो की नीति से बढ़ाया। उसने कोशल राज की पुत्री और प्रसेनजित की बहन के साथ शादी की। कोशल देवी के साथ शादी करने से दहेज में काशी का राज्य मिला। इस विवाह से राज्य का विस्तार तो हुआ ही साथ ही साथ कोशल की ओर से निश्चित होने के कारण अन्य राजाओं के साथ निपटने की उसे छूट मिली। उसने दूसरी शादी लिच्छवि राजकुमारी चेल्लना से की तथा तीसरी शादी मद्रकुल के मुखिया की बेटी से की। इन वैवाहिक संबंधों के कारण मगध की राजनीतिक प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई।
वैवाहिक संबंधों में मगध की प्रतिष्ठा में जब वृद्धि हुई और बिंबिसार की स्थिति मजबूत हो गयी तो उसने विजय की नीति का अवलम्बन किया। उसने अंग पर अधिकार कर लिया। उसके अंग विजय की पुष्टि दीर्घनिकाय और महावग्ग से होती है। अंग विजय के बाद उसने अपने प्रबल शत्रु अवन्ती की ओर ध्यान दिया। कहा जाता है कि अवन्ती के राजा चन्ड प्रद्योत महासेन के साथ बिम्बसार की लड़ाई हुई थी। लेकिन बाद में दोनों की दोस्ती हो गई। ऐसा कहा जाता है कि जब प्रद्योत पीलिया नामक बीमारी से पीड़ित हुआ तो बिंबिसार ने राजवैद्य जीवक को उसके इलाज के लिए भेजा था। इस तरह अवन्ती के साथ मगध के मैत्रीपूर्ण संबंध हो गये ।
बिंबिसार के काल में मगध के राजनीतिक प्रभुत्व में काफी विस्तार हुआ। इस बात की पुष्टि इससे भी होती है कि गांधार के राजा पुक्कुसाती ने उसके दरबार में अपना राजदूत भेजा था। यह वही राजा था जिसके खिलाफ अवन्ती के राजा प्रद्योत को भी सफलता नहीं मिली थी। बिंबिसार के राज्य में लगभग अस्सी हजार गाँव थे।
अजातशत्रु के काल में मगध : ऐसा कहा जाता है कि शासन के अंतिम दिनों में बिंबिसार की हत्या उसके पुत्र कूणिक ने कर दी और राजसत्ता पर कब्जा कर लिया कुणिक ही अजातशत्रु के नाम से जाना जाता है। सत्ता की बागडोर संभालने के साथ ही अजातशत्रु ने साम्राज्यवादी नीति का अवलंबन शुरू किया।
इस क्रम में सबसे पहले उसकी लड़ाई कोशल के राजा के साथ हुई। अपनी बहन की मृत्यु के पश्चात् कोशल राज प्रसेनजित ने काशी से मगध को मिलने वाले कर को बंद कर दिया। इसके फलस्वरूप उसे अजातशत्रु से युद्ध करना पड़ा। इस युद्ध में प्रसेनजित की पराजय हुई और अपनी लड़की की शादी अजातशत्रु से करनी पड़ी तथा काशी का राज्य भी देना पड़ा।
कोशल के साथ निपटने के बाद उसने लिच्छवि के ऊपर आक्रमण किया। हालाँकि उसकी माँ लिच्छवि राजकुमारी थी फिर भी उसने वैशाली के ऊपर आक्रमण किया था। कहा जाता है कि अजातशत्रु के भाई एक हीरे का बहुमूल्य हार लेकर वैशाली चले गये थे। अजातशत्रु की पत्नी पद्यमावती वह हार वापस चाहती थी । वास्तविकता यह थी की अजातशत्रु की विस्तारवादी प्रवृत्ति ने उसे वैशाली के ऊपर आक्रमण के लिए प्रेरित किया । वैशाली के साथ लगभग सोलह वर्षों तक मगध का युद्ध चला। यह जैन ग्रंथों से पता चलता है। अंत में कूटनीति और नये युद्धास्त्रों के प्रयोग ने उसे वैशाली पर विजय दिलायी।
कोशल और वैशाली के विरूद्ध उसकी सफलता ने अवंती के शासक को ईर्ष्यालु बना दिया। अवंती के राजा ने मगध के विरूद्ध आक्रमण की तैयारी शुरू कर दी। यही कारण था कि अजातशत्रु को अपनी राजधानी की सुरक्षा के लिए दीवारों की व्यवस्था करनी पड़ी। अजातशत्रु ने राजगृह की किलेबंदी की थी। उसकी दीवारों के अवशेष आज भी देखने को मिलते हैं। लेकिन तैयारी के बावजूद अजातशत्रु के काल में मगध का अवंती से संघर्ष नहीं हो सका ।
उदायिन के काल में मगध : अजातशत्रु के बाद उदायिन मगध की गद्दी पर बैठा। उसने पटना में गंगा और सोन के संगम पर एक किले का निर्माण किया। उसने अवंती के शासक को युद्ध में हराया। अवंती का साम्राज्य में शामिल किया जाना इस काल की महत्वपूर्ण घटना थी।
इस तरह हम देखते हैं कि पूर्वी समुद्र से पश्चिमी समुद्र तक मगध का एक छत्र राज्य हो गया। बिंबिसार द्वारा अंग देश जीता जा चुका था, अजातशत्रु ने कोशल को पराजित किया और अवंती से मुकाबले की तैयारी की तथा वैशाली की स्वतंत्रता का अपहरण किया। उदायिन के काल में अवंती भी मगध साम्राज्य का एक अंग बन गया। हर्यंक कुल के राजाओं ने मगध के राजनीतिक प्रभुत्व की स्थापना में काफी योगदान किया।
शिशुनाग वंश के काल में मगध : उदायिन के बाद शिशुनाग नामक एक महत्वपूर्ण राजा का उल्लेख आता है। यही शिशुनाग वंश का संस्थापक राजा था। इसने अपनी राजधानी वैशाली को बनाया था। वह एक महान् शासक था। उसने अवन्ती, वत्स और कोशल को पराजित कर मगध में मिला लिया था । शिशुनाग के बाद उसका पुत्र कालाशोक या कावर्ण मगध का राजा बना। इसी के काल में वैशाली में बौद्धों की दूसरी संगीति हुई थी। इसने 28 वर्षों तक शासन किया। इसने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र में बनायी। इसके बाद इसके दस पुत्रों ने मिलकर शासन किया। इसके बाद नंदवंश का शासन शुरू हुआ।
नंद वंश के काल में मगध : चौथी शताब्दी ई० पूर्व के मध्य में एक अज्ञात कुल के व्यक्ति महापद्य ने शिशुनाग वंश का अंत कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि वह एक नाई और वेश्या का पुत्र था। यूनानी लेखकों के अनुसार वह एक नाई और शिशुनाग वंश के अन्तिम राजा की पत्नी का पुत्र था । उसका कुल जो भी रहा हो लेकिन उसके काल में मगध के राजनीतिक प्रभुत्व में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। पुराणों के अनुसार महापद्य ने सभी क्षत्रिय कुलों के राज्यों को नष्ट कर दिया। इक्ष्वाकु, पांचाल, हैहय, कलिंग, अस्मक, कुरू, शूरसेन, मिथिला आदि सभी राज्यों को मगध में मिला लिया। इस प्रकार पंजाब से पूर्व का संपूर्ण भारत, मालवा, मध्य प्रदेश, कलिंग तथा दिक्षिण में गोदावरी नदी तक का क्षेत्र नंद राज्य में शामिल हो गया। कुछ अभिलेखों के आधार पर यह अनुमान किया जाता है कि महाराष्ट्र और मैसूर के भी कुछ भाग नंदों के राज्य में शामिल थे।
बौद्ध और जैन ग्रंथों के अनुसार महापद्यनंद के बाद नौ नन्द राजाओं ने मग पर शासन किया। पुराणों के अनुसार यह संख्या आठ ही थी। इस वंश का अंतिम राजा धननन्द् था। यह सिकन्दर का समकालीन था । वह एक कठोर और लालची शासक था तथा जनता के बीच लोकप्रिय नहीं था । इसी को हटाकर चन्द्रगुप्त मौर्य ने मगध का राज्य हासिल किया था।
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि मगध को एक साम्राज्य का रूप हासिल करने में लगभग 230 वर्ष का समय लगा । इसमें बिंबिसार, अजातशत्रु, उदायिन, शिशुनाग और महापद्यनंद जैसे शासकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । 321 ई० पूर्व में जब चन्द्रगुप्त मौर्य के हाथों में मगध की सत्ता पहुँची उस समय मगध हर तरह से संपन्न था।