आर्थिक भूगोल के अध्ययन के महत्त्व का वर्णन करें।PDF Download

 पिछले कुछ समय में आर्थिक भूगोल का पर्याप्त विकास हो चुका है। आर्थिक भूगोल मृत नहीं वरन् प्रगतिशील विज्ञान है। इसके अध्ययन से निम्नलिखित लाभ होते हैं- 

(1) यह हमें उन प्राकृतिक संसाधनों की स्थिति और वितरण आदि से परिचित कराता है जिनके द्वारा वर्त्तमान समय में किसी देश की आर्थिक उन्नति हो सकती है। आज के इस युग में (जबकि सभी उन्नत राष्ट्र प्रगति की दौड़ में आगे बढ़ रहे हैं) यह जानना बहुत आवश्यक है कि उस देश की उन्नति के लिए कृषि उत्पादों और खनिज पदार्थों के उचित मात्रा में प्राप्त होने के क्षेत्र कौन-कौन से हैं। इन उत्पादों के उत्पत्ति क्षेत्रों की जानकारी आर्थिक भूगोल के अध्ययन से ही प्राप्त हो सकती है। 

(2) किसी देश में पायी जानेवाली प्राकृतिक सम्पत्ति (वन्य पदार्थ, कृषि-पदार्थ और खनिज पदार्थ) का किन साधनों द्वारा कहाँ पर और किस कार्य के लिए उपयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, किसी भी देश में वन-सम्पत्ति उन्हीं क्षेत्रों में पायी जाती है जहाँ वर्ष के अधिकांश भागों में पर्याप्त गर्मी और वर्षा होती है। वनों से प्राप्त कच्चे माल और इमारती लकड़ी का उपयोग औद्योगिक और व्यापारिक नगरों में ही हो सकता है। मछलियाँ देश के भीतर छिछले जलाशयों में अथवा उन छिछले समुद्री किनारों पर, जो बहुत कटे-फटे हो, पकड़ी जा सकती हैं। इसीप्रकार कृषि कार्य के लिए समतल, उपयुक्त जलवायुवाले मैदान ही (जैसे- कनाडा, आस्ट्रेलिया, अर्जेण्टाइना, सिन्धु-गंगा का मैदान, यांगटिसीक्यांग और ह्वांगहो प्रदेश) अधिक उपयुक्त होते हैं। कोयला और मिट्टी का तेल मिलनेवाले भागों में अन्य खनिजों का अभाव पाया जाता है और जल विद्युत शक्ति उन्हीं क्षेत्रों में विकसित की जा सकती है जहाँ का धरातल ऊँचा- नीचा हो और जहाँ पर्याप्त वर्षा होती हो और जो घनी आबादीवाले क्षेत्रों के निकट स्थित होते हैं। इन सब बातों का ज्ञान आर्थिक भूगोल के अध्ययन से ही हो सकता है। 

(3) पृथ्वी के गर्भ में कौन-से खनिज पदार्थ छिपे पड़े हैं, इसका पता लगाकर तथा वह खनिज मानव आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किस प्रकार सहायक हो सकते हैं, इसका ज्ञान कराकर आर्थिक भूगोल का अध्ययन इस बात की ओर संकेत करता है कि किन स्थानों पर कोई विशेष उद्योग स्थापित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, लोहे और इस्पात का उद्योग कोयले की खानों के निकट तथा सूती वस्त्रों के उद्योग घनी जनसंख्या के केन्द्रों के निकट ही स्थापित किये जाते हैं। अन्य उद्योग भी यथासम्भव कच्चे माल अथवा शक्ति के संसाधनों के निकट ही स्थापित किये जाते हैं। इसप्रकार उद्योगपतियों के लिए भी आर्थिक भूगोल का विषय बहुत उपयोगी है। 

(4) आर्थिक भूगोल के अध्ययन से यह ज्ञात हो सकता है कि किसी देश की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कच्चा माल, भोज्य पदार्थ अथवा यन्त्र आदि कहाँ से प्राप्त किये जा सकते तथा इन वस्तुओं को उपभोग केन्द्रों तक पहुँचाने के लिए किस प्रकार के विभिन्न परिवहन के साधनों का सहारा लेना पड़ेगा। यदि भारत को अपनी जनसंख्या के लिए खाद्यान्नों की आवश्यकता है तो निःसन्देह यह उन्हें अर्जेण्टाइना, रूस, म्यांमार (वर्मा), आस्ट्रेलिया, संयुक्त ; राज्य अमेरिका या कनाडा से मँगाकर पूरी कर सकता है। अस्तु, व्यापारियों के लिए भी इसका अध्ययन लाभदायक है।. 

(5) विश्व के विभिन्न भागों में मानव समुदाय किसप्रकार अपनी भोतिक आवश्यकताएँ पूरी करता है। उसका रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा कैसी है या उसने जीवन-स्तर ऊँचा उठाने के लिए प्राकृतिक साधनों का किस प्रकार उपयोग किया है ? – ये सब तथ्य आर्थिक भूगोल के अध्ययन से ही ज्ञात हो सकते हैं। किसी विशेष देश ने किसप्रकार इतनी आर्थिक उन्नति की अथवा कोई अन्य देश क्यों इतना पिछड़ा है ? – यह भी आर्थिक भूगोल के अध्ययन से ज्ञात हो सकता है। 

आज के युग में भिन्न-भिन्न देशों के बीच विद्वेष की जो ज्वाला भड़क रही है, उसको शान्त कर विश्व-शांति के प्रश्न को हल करने के लिए जो भगीरथ प्रयत्न वैज्ञानिकों, राजनीतिज्ञों, अर्थशास्त्रियों और भूगोलवेत्ताओं द्वारा किये जा रहे हैं, उन सबके पीछे भौगोलिक पृष्ठभूमि कार्य कर रही है । अस्तु, यदि आर्थिक भूगोल का उचित रूप से अध्ययन किया जाय तो सभी समस्याएँ सरलतापूर्वक हल की जा सकती हैं। 

अब यह निश्चित रूप से स्वीकार किया जाने लगा है कि मानव की आवश्यकताएँ इतनी अधिक जटिल होती जा रही हैं कि वह एकाकी नहीं रह सकता, उसे दूसरों के सहयोग की आवश्यकता पड़ती ही है। इसी भावना ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को जन्म दिया है और इसीलिये अब सम्पूर्ण विश्व को ‘एक विश्व’ (One World ) माना जाने लगा है। 

स्पष्टत: जीविकोर्पाजन के सभी क्षेत्रों में संलग्न व्यक्तियों (बैंकर, व्यापारी, बीमा कर्मचारी, विक्रेता, विज्ञापनकर्ता, उद्योगपति, कृषक, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री) के लिए आर्थिक एवं वाणिज्यिक भूगोल का सम्यक् ज्ञान होना परम आवश्यक है। इस संबंध में प्रो० डेबनहैम का कथन उल्लेखनीय है कि “अनेक देशों के सदस्यों की सहायता से संगठित बेनेलेक्स (Benelux), नाटो (NATO), संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) आदि अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त संगठनों का गठन हुआ है और आज भी अनेक संगठन बन रहे हैं। ये संगठन विभिन्न देशों और समुदायों के बीच एकता और स्वतंत्रता लाने का प्रयास कर रहे हैं, जिनके बिना आधुनिक सभ्यता जीवित नहीं रह सकती। यह एकता तभी संभव है जबकि भूगोल के तीन स्तम्भों का पूरा ज्ञान हो और ये तीन स्तम्भ हैं क्रमश: विश्व के निवासी, वे स्थान जहाँ निवासी निवास करते हैं और वे कार्य जो ये करते हैं।’ वस्तुत; प्रत्येक व्यक्ति के लिए न केवल अपनी ज्ञान-पिपासा शान्त करने के लिए वरन् विश्व के लोगों को समझने के लिए भी आर्थिक-वाणिज्यिक भूगोल का अध्ययन आवश्यक है। 


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