अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से आप क्या समझते हैं ? विश्व के प्रमुख देशों के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का वर्णन करें। इसके लाभ-हानि का वर्णन करें। PDF Download

 सामान्य रूप से व्यापार वस्तुओं के आपसी आदान-प्रदान को कहते हैं । विश्व में व्यापार की प्रथा बहुत प्राचीन काल से चली आ रही है। प्रारम्भ में मानव आत्मनिर्भर जीवन व्यतीत करता था क्योंकि उसकी आवश्यकताएँ सीमित थीं, जिनकी आपूर्ति वह अपने वातावरण से प्राप्त वस्तुओं से कर लेता था। लेकिन जब मानव का ज्ञान बढ़ा, आवश्यकताएँ बढ़ीं जिनकी पूर्ति वह स्वयं नहीं कर सकता था, तो उसे दूसरों पर निर्भर होने के लिए विवश होना पड़ा। फलत: लोग आपस में वस्तुओं का आदान-प्रदान करने लगे। यही व्यापार का प्रारम्भिक रूप था। जैसे-जैसे पारस्परिक निर्भरता बढ़ती गयी, व्यापार का विस्तार होता गया। 

व्यापार के लिए अपेक्षित तत्त्व : समुचित व्यापार प्रक्रिया के लिए निम्नलिखित चार तत्त्व अपेक्षित हैं- 

(i) सम्पर्क : दो व्यक्तियों, समूहों या देश-प्रदेश के मध्य व्यापार संचालन के लिए सम्पर्क आवश्यक है। यह सम्पर्क चाहे समीपता के कारण हो, चाहे यातायात या संचार माध्यमों के द्वारा स्थापित हो। 

(ii) अतिरिक्त माल : व्यापार का जन्म तभी होता है जबकि दोनों पक्षों का उत्पादन अपनी आवश्यकता से अधिक हो। 

(iii) माल की भिन्नता : दोनों पक्षों के पास भिन्न-भिन्न माल रहना चाहिए जिन्हें वे एक- दूसरे से विनिमय कर सकें। यदि एक ही माल की दो विभिन्न किस्में या गुण हों तब भी विनिमय हो सकता है। लेकिन यदि दोनों पक्षों के पास एक ही प्रकार का माल है तो उनके मध्य व्यापार नहीं चल सकता। 

(iv) विनिमय की इच्छा : दोनों पक्षों को एक-दूसरे के अतिरिक्त माल की आवश्यकता हो अर्थात दोनों पक्षों में एक-दूसरे के अतिरिक्त माल प्राप्तकर अपनी आवश्यकता की पूर्ति करने की इच्छा हो, तभी उनमें व्यापार चल सकता है। 

व्यापार के प्रकार : व्यापार मुख्यतः चार प्रकार का होता है- 

(i) स्थानीय प्रकार : किसी एक ही क्षेत्र के निवासियों में जो आपस में व्यापार होता है, उसे स्थानीय व्यापार कहते हैं। 

(ii) प्रादेशिक व्यापार : एक प्रदेश का जब दूसरे प्रदेश से व्यापार होता है, तो वह प्रादेशिक व्यापार कहलाता है। 

(iii) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार : एक देश का जब दूसरे देश से व्यापार होता है, तब वह अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कहलाता है। 

(iv) विदेशी व्यापार : अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में एक देश के दृष्टिकोण से अन्य देशों का जो व्यापार होता है, वह विदेशी व्यापार कहलाता है। 

■ व्यापार को प्रभावित करनेवाले कारक :

व्यापार को प्रभावित करनेवाले कारक निम्नवत हैं- 

1. प्राकृतिक संसाधन : किसी देश में प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता उस देश के आर्थिक लाभ में सहायक सिद्ध होती है, क्योंकि वह अधिक वस्तुओं का व्यापार कर सकता है। 

2. आर्थिक संसाधन : आर्थिक संसाधनों से पूर्ण देश का व्यापार अधिक होगा। जहाँ पर आर्थिक संसाधनों की प्रचुरता होती है, उस देश का व्यापार बाजार में स्थान भी महत्त्वपूर्ण होगा। 

3. भौगोलिक कारक : जिन देशों की स्थिति सामुद्रिक है तथा जो घनी आबादी वाले देशों के मध्य स्थित हैं, वहाँ व्यापार की सम्भावना और सुगमता अधिक रहती है। 

4. यातायात के विकसित साधन : यातायात के विकसित साधनों का व्यापार पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। यातायात के सस्ते साधनों से व्यापार में सुविधा रहती है तथा तीव्रगामी यातायात के साधनों से व्यापार की जानेवाली वस्तुएँ कम खराब होती हैं। 

5. जनसंख्या : प्राय: विश्व के अधिक जनसंख्यावाले राष्ट्रों के व्यापार में निर्यात की अपेक्षा आयात की वस्तुओं की अधिकता रहती है

6. वैज्ञानिक तथा तकनीकी प्रगति : वैज्ञानिक एवं तकनीकी दृष्टि से विकसित देशों को अपने यहाँ की बनी सस्ती, सुन्दर एवं नवीन आविष्कारिक वस्तुओं के व्यापार के लिए बाजार सरलता से मिल जाता है। 

7. प्रेम भावना : व्यापार के लिए दोनों पक्षों में प्रेम भावना होना अति आवश्यक है, क्योंकि इसके बिना व्यापार सम्भव नहीं है। भारत और पाकिस्तान के मध्य व्यापार कम होने का एकमात्र कारण प्रेम भावना की कमी ही हैं। 

8. शान्ति : अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार हेतु शान्ति का होना अत्यावश्यक है, क्योंकि युद्ध काल में व्यापारिक माल की सुरक्षा नहीं रहती है। अत:, आयात-निर्यात कम हो जाता है। 

9. व्यापारिक नीति : अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए यह जरूरी है कि व्यापार करनेवाले देशों की व्यापारिक नीति निश्चित हो । निर्यात एवं आयात पर कर का अधिक अंकुश व्यापार को प्रभावित करता है। 

10. आर्थिक विकास : आर्थिक दृष्टिकोण से अधिक विकसित राष्ट्रों में व्यापार अधिक मिलता है। संयुक्त राज्य अमेरिका का विश्व में सबसे अधिक व्यापार होने का यही कारण है। 

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार आर्थिक सम्पन्नता का बैरोमीटर होता है : आधुनिक युग में आर्थिक दृष्टिकोण से वही देश सम्पन्न माना जाता है, जिसका विश्व के अधिक-से-अधिक देशों से व्यापार हो। जिस देश के व्यापार में निर्यात मूल्य की प्रधानता होती है, वह देश आर्थिक विकास की दृष्टि से बहुत उन्नत माना जाता है। जिस देश में निर्यात की अपेक्षा आयात अधिक मूल्य का होता है, वह आर्थिक विकास में पिछड़ा हुआ देश माना जाता है तथा जिस देश में आयात तथा निर्यात दोनों का अभाव होता है वह अविकसित देशों में गिना जाता है। अतएव, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का अधिकतम होना विकास की अवस्था का चोतक है। 

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार संरचना : अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार विश्व अर्थव्यवस्था का एक गत्यात्मक तत्त्व है। इसकी मात्रा तथा प्रकार में सर्वथा परिवर्तन होता रहता है। इसकी प्रवृत्ति सर्वथा उर्ध्वमुखी रही है। द्वितीय विश्व युद्ध के पूर्व ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, जापान एवं फ्रांस विश्व के आधे से अधिक अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर अधिकार जमाये हुए थे । विश्व युद्ध के पश्चात् अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में भारी बदलाव आयो, क्योंकि जहाँ विकसित राष्ट्रों के नये व्यापारिक समझौते हुए वहीं अनेक पराधीन राष्ट्र स्वतंत्र होकर अपने व्यापार को नया रूप देने में जुट गये। फलतः विश्व का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार नया प्रतिरूप बनाने में सफल हुआ। सन् 1970 तक के व्यापारिक ढाँचे में जापान में भारी आर्थिक प्रगति, विश्व की व्यापारिक मण्डियों में जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका एवं अन्य औद्योगिक राष्ट्रों की प्रतिद्वन्द्विता, यूरोपीय साझा बाजार के व्यापारिक क्षेत्र के विस्तार, ब्रिटेन और फ्रांस के ह्रासोन्मुख प्रभाव, नवोदित राष्ट्रों के आपसी संबंधों की वृद्धि तथा विदेशी पूँजी के विभिन्न क्षेत्रों में विनियोग ने भारी परिवर्तन ला दिया है। 

सन् 1970 के पश्चात् खनिज तेल के मूल्य में भारी वृद्धि तथा इससे जनित समस्याएँ, अन्न एवं औद्योगिक कच्चे माल के मूल्यों में लगातार वृद्धि तथा इससे उत्पन्न समस्याएँ, विश्व की बढ़ती जनसंख्या आदि ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की प्रवृत्ति बिल्कुल बदल दी है। परिणामत विश्व व्यापार के प्रारूप में अनेक परिवर्तन देखने को मिलते हैं। सबसे बड़ा परिवर्तन निर्मित वस्तुओं के आयात में गिरावट है। अब विकासशील देश भी अपनी आवश्यकता की वस्तुओं का निर्माण करने लगे हैं। इनके स्थान पर खनिज पदार्थों का व्यापार तेजी से बढ़ा है। इसी प्रकार स्वयं का व्यापार बढ़ा है। वर्तमान समय में विश्व व्यापार की प्रमुख विशेषता में विकसित राष्ट्रों द्वारा निर्मित वस्तुओं का निर्यात तथा कच्चा माल एवं खाद्य सामग्री का आयात है, जबकि विकासशील देशों में कच्ची सामग्री का निर्यात तथा निर्मित वस्तु का आयात है। विश्व व्यापार में प्रतिस्पर्द्धा की निरन्तर वृद्धि हो रही है जो विकसित देशों के लिए चिन्ता का विषय बनती जा रही है। 

विश्व के प्रमुख देशों का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार :

विश्व के सभी देश कुछ-न-कुछ व्यापार अवश्य करते हैं, लेकिन कुछ देशों का व्यापार इतना बड़ा है कि वे विश्व के महत्त्वपूर्ण व्यापारिक आधार माने जाते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, पूर्व सोवियत संघ, ग्रेट ब्रिटेन तथा जापान आदि इसीप्रकार के देश हैं। विश्व के कुछ प्रमुख देशों का व्यापारिक अध्ययन इस प्रकार है- 

1. संयुक्त राज्य अमेरिका : यह विश्व का प्रमुख व्यापारी देश है। इसका व्यापार यूरोपीय तथा दूसरे अमेरिकी देशों से अधिक होता है। यहाँ आयात की अपेक्षा निर्यात अधिक मूल्य की वस्तुओं का है। मुख्य निर्यात व आयात की जानेवाली वस्तुएँ निम्नांकित हैं- 

(i) निर्यात वस्तुएँ : मशीनें, कृषि यन्त्र, हथियार, रासायनिक उर्वरक व अन्य रसायन, विद्युत उपकरण, परिवहन एवं संचार वाहन के सामान, लौह इस्पात, कपास, गेहूँ, मक्का, तम्बाकू, मांस, दुग्ध पदार्थ तथा पेट्रोलियम पदार्थ आदि । 

(ii) आयात वस्तुएँ : खनिज धातु, चाय, कहवा, चीनी, कागज, रबर, ऊन, चमड़ा, लुग्दी, तिलहन तथा खनिज तेल आदि । 

2. ग्रेट ब्रिटेन : आयात-निर्यात की दृष्टि से यह एक प्रमुख व्यापारी देश है। इसका व्यापार पूर्वी यूरोपीय देशों, एशियाई एवं अफ्रीकी देशों से अधिक है। संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा से भी इसका अधिक व्यापार होता है ! यहाँ से निर्यात व आयात होनेवाले पदार्थ इस प्रकार हैं- 

(i) निर्यात वस्तुएँ : मशीनें, जलयान, वायुयान, मोटरगाड़ियाँ, रासायनिक पदार्थ, विद्युत उपकरण, लौह-इस्पात, इन्जीनियरिंग यन्त्र तथा कृषि यन्त्र आदि  

(ii) आयात वस्तुएँ : चाय, कहवा, तम्बाकू, शराब, खाद्य सामग्री, लौह-अयस्क, सैंगनीज, खनिज तेल, कपास, रेशम, चमड़ा तथा जूट के सामान आदि । 

3. रूस : यह विश्व का एक ऐसा विकसित राष्ट्र है जो अपनी जरूरत की सभी वस्तुओं का निर्माण व उत्पादन कर लेता है, फिर भी अनेक पदार्थों का आयात व निर्यात करता है। इसका अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार यूरोप तथा एशिया के साम्यवादी देशों से अधिक है। इस देश के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में गत 30 वर्षों से अर्धिक वृद्धि हुई है। यहाँ से निर्यात व आयात की जानेवाली वस्तुएँ इसप्रकार हैं- 

(i) निर्यात वस्तुएँ : मशीनें, कृषि यन्त्र, विद्युत उपकरण, वायुयान, रेलवे का सामान, इन्जीनियरिंग का सामान, गेहूँ, दुग्ध उत्पाद, कपास, कोयला, पेट्रोलियम तथा रसायन आदि । 

(ii) आयात वस्तुएँ : खनिज धातुएँ, ऊन, रेशम, जूट, चाय आदि । 

4. जर्मनी : यह विश्व का एक प्रमुख व्यापारी देश है । इस देश का व्यापार यूरोपीय एवं एशियाई देशों से अधिक है। यहाँ आयात कच्चे पदार्थों तथा निर्यात तैयार माल का किया जाता है। आयात की अपेक्षा निर्यात अधिक मूल्य का है। यहाँ का व्यापार निम्नवत् है– 

(i) निर्यात वस्तुएँ : भारी एवं बड़ी मशीनें, रासायनिक पदार्थ, लौह-इस्पात, मोटर गाड़ियाँ, वायुयान, विद्युत उपकरण, कृषि यन्त्र, छपाई की मशीनें तथा कागज आदि । 

(ii) आयात वस्तुएँ : ऊन, रबर, खाद्य पदार्थ, चाय, कहवा, कपास, कोयला, खनिज तेल, लौह-अयस्क तथा लकड़ी आदि । 

5. फ्रांस : फ्रांस का अधिकांश व्यापार एशियाई, अफ्रीकी एवं यूरोपीय देशों से है। इस देश में आयात कच्चे माल का तथा निर्यात औद्योगिक वस्तुओं का है। यहाँ से निर्यात व आयात की जानेवाली वस्तुएँ निम्नांकित हैं- 

(i) निर्यात वस्तुएँ : छोटी एवं बड़ी मशीनें, इस्पात चादरें, मोटर गाड़ियाँ, चमड़े का सामान, रासायनिक पदार्थ, लौह अयस्क, बॉक्साइट, सूती वस्त्र तथा शराब आदि । 

(ii) आयात वस्तुएँ : चाय, कहवा, कपास, ऊन, चमड़ा, दुग्ध पदार्थ, तिलहन, जूट, रेशमी वस्त्र तथा रबर आदि । 

6. जापान : यह एक ऐसा देश है जिसकी अर्थव्यवस्था का आधार ही अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार है। इसका अधिकांश व्यापार एशियाई एवं अफ्रीकी देशों से होता है। जापान का व्यापार निम्नवत है- 

(i) निर्यात वस्तुएँ : लौह-इस्पात, मशीनरी, विद्युत उपकरण, सूती, ऊनी व रेशमी वस्त्र, उर्वरक, मोटरगाड़ियाँ, जलयान, खेल का सामान, इंजीनियरिंग एवं इलेक्ट्रॉनिक्स सामान तथा रासायनिक पदार्थ आदि । 

(ii) आयात वस्तुएँ : खनिज पदार्थ, खनिज तेल, कपास, जूट, ऊन, चमड़ा, दुग्ध पदार्थ तथा खाद्य सामग्री आदि । 

7. कनाडा : कनाडा का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार संयुक्त राज्य अमेरिका तथा यूरोपीय देशों से अधिक है। यहाँ का व्यापार इसप्रकार है— 

(i) निर्यात वस्तुएँ : मशीनें, जलयोन, मोटरगाड़ी, मछली, लकड़ी-लुग्दी, कागज, फर, दुग्ध पदार्थ तथा गेहूँ आदि । 

(ii) आयात वस्तुएँ : शराब, चाय, कहवा, कपास, जूट, तम्बाकू, रबर तथा चीनी आदि । 

8. इटली : इटली का अधिकांश व्यापार संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, इंगलैण्ड व अन्य यूरोपीय देशों से होता है। इटली का व्यापार इस प्रकार हैं— 

(i) निर्यात वस्तुएँ : रसदार फल, शराब, शब्जियाँ, गेहूँ, जौ, सूती धागा व सूती वस्त्र, मोटर गाड़ियाँ, लौह-इस्पात, रासायनिक पदार्थ, छपाई की मशीनें तथा कृत्रिम पदार्थ आदि । 

(ii) आयात वस्तुएँ : खनिज तेल, कोयला, लौह अयस्क, मैंगनीज, रबर, चाय, कहवा, चीनी तथा कपास आदि । 

9. डेनर्माक : डेनमार्क का अधिकांश व्यापार यूरोपीय देशों से होता है। यहाँ का मुख्य व्यापार निम्नवत है— 

(i) निर्यात वस्तुएँ : दुग्ध पदार्थ, मांस, मछली, वनस्पति तेल तथा सीमेन्ट आदि । 

(ii) आयात वस्तुएँ : फल, शराब, लुग्दी, कागज, लौह-अयस्क, मैंगनीज, बॉक्साइट तथा खनिज तेल आदि । 

10. भारत : अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में भारत भी एक प्रमुख राष्ट्र है। इसका व्यापार संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जापान तथा अरब देशों से अधिक है। भारत में निर्यात की अपेक्षा आयात वस्तुओं की कीमत अधिक होती है। यहाँ का व्यापार इसप्रकार है- 

(i) निर्यात वस्तुएँ : चाय, चमड़ा, तम्बाकू, मूँगफली, तिलहन, सूती वस्त्र, हल्की मशीनें, सीमेन्ट, अभ्रक, मैंगनीज, मोनोजाइट तथा लौह-अयस्क आदि । 

(ii) आयात वस्तुएँ : भारी मशीनें, इंजीनियरिंग व इलेक्ट्रॉनिक्स के सामान, वायुयान, खनिज तेल, कपास, रबर, टिन तथा रासायनिक पदार्थ आदि। 

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से लाभ :

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से अनेक लाभ हैं, जिनमें कुछ प्रमुख निम्नवत हैं- 

1. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से प्राकृतिक आपदा में सहायता प्राप्त होती है। उदाहरणार्थ-यदि किसी भी देश में अकाल पड़ जाये तो विदेशों से खाद्यान्नों का आयात कर करोड़ों लोगों की जान बचायी जा सकती है। 

2. उपभोक्ताओं को अपनी मनचाही वस्तुएँ जो उसके देश में उत्पन्न नहीं होती हैं, आसानी से मिल जाती हैं। 

3. जिन देशों में आवश्यक कच्चे माल का अभाव होता है, उन्हें आयात द्वारा प्राप्त किया जा सकता है तथा औद्योगिक विकास किया जा सकता है। 

4. जिन देशों के पास अन्य संसाधनों का अभाव होता है तथा कच्चे माल की अधिकता होती है, वे अपने कच्चे माल का निर्यात करके अन्य आवश्यक वस्तुएँ प्राप्त कर सकते हैं। 

5. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के परिणामस्वरूप विभिन्न देशों के व्यापारियों में प्रतिस्पर्द्धा बनी रहती है। फलतः उत्तम प्रकार की वस्तुओं का निर्माण होता है तथा कम कीमत पर उपभोक्ताओं को ये वस्तुएँ प्राप्त हो जाती हैं। 

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से हानियाँ :

व्यापार का मूल उद्देश्य लाभ है लेकिन कुछ परिस्थितियों में कुछ हानियाँ भी होती हैं- 

(i) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण देश गुटों में बँट जाते हैं। 

(ii) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण प्राकृतिक संसाधनों का उचित उपयोग नहीं हो पाता, जैसे भारत अपने लौह अयस्क एवं कपास का उसी रूप में निर्यात कर देता है। 

(iii) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के फलस्वरूप किसी देश की अर्थव्यवस्था को बहुत हद तक विदेशों पर अवलम्बित रहना पड़ता है जो कि कभी-कभी अति हानिकारक सिद्ध होता है, क्योंकि यदि युद्ध या अन्य किसी कारणवश व्यापार बन्द हो जाता है, तो समस्त आर्थिक ढाँचा ही लड़खड़ा जाता है। 

(iv) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार किसी भी देश में आर्थिक अथवा औद्योगिक अव्यवस्था या असंतुलन उत्पन्न कर देता है। इस अवस्था का प्रभाव उन देशों पर भी पड़ता है जिससे उसका संबंध होता है। यही कारण है कि आर्थिक मन्दी या तेजी किसी एक देश तक ही सीमित नहीं रहती । 

(v) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार राजनीतिक कुचक्र को जन्म देता है तथा अनेक देशों के विकास को भी शिथिल कर देता है। 



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