सुमेरियन सभ्यता : समाज
सामाजिक वर्गीकरण (Social Classification ) –
प्राचीन सुमेर का समाज तीन वर्गों में विभाजित था । ये वर्ग थे- उच्च वर्ग, मध्य वर्ग एवं निम्न वर्ग ।
- उच्च वर्ग ( Elite Class) – उच्च वर्ग या अभिजात्य वर्ग में राजा, पुरोहित, राज्य के उच्च अधिकारी, धनी व्यापारी, उच्च सैनिक अधिकार एवं बड़े जमींदार होते थे । यह वर्ग समाज में वैभवपूर्ण जीवन व्यतीत करते थे । राज्य की समस्त राजनीतिक एवं सामाजिक शक्तियाँ अथवा अधिकार इस वर्ग के पास ही होता था । समाज में राजा को देवता के समान माना जाता था । राजा के पश्चात् सामाजिक दृष्टि से पुरोहित का अधिक महत्त्व होता था ।
- मध्य वर्ग ( Middle Class) – इस वर्ग में छोटे व्यापारी, दस्तकार, छोटे कर्मचारी, साहूकार एवं छोटे जमींदार होते थे । यह सुमेरिया समाज का सबसे बड़ा वर्ग था । यदि इस वर्ग का कोई व्यक्ति सेना अथवा राज्य में उच्च स्थान प्राप्त कर लेता था तो उसकी गणना उच्च वर्ग के लोगों के साथ की जाती थी ।
- निम्न वर्ग (Lower Class ) – इस वर्ग में दास एवं खेतिहर मजदूर आते थे । खेतिहर मजदूर एवं दासों की सामाजिक स्थिति में कोई विशेष अंतर नहीं था । चूँकि दास विदेशी नागरिक होते थे इसलिए इन्हें निम्न अथवा हेय दृष्टि से देखा जाता था तथा खेतिहर मजदूरों को समाज का अभिन्न अंग माना जाता था । यदि इस वर्ग का कोई व्यक्ति सेना में सम्मिलित होकर उच्च स्थान प्राप्त कर लेता था तो वह अपना स्थान उच्च वर्ग में बना लेता था । दास भी सेना में सम्मिलित होकर जनसाधारण वर्ग में अपना स्थान प्राप्त कर सकते थे ।
परिवार (Family) –
सुमेरियन समाज पितृसत्तात्मक था । परिवार में पिता को सर्वोच्च स्थान प्राप्त था । वह अपने पुत्रों को घर से निष्कासित कर सकता था । वह अपनी पुत्री को मन्दिर में देवदासियों के रूप में देने का अधिकार रखता था । पिता का घरेलू सम्पत्ति पर एकाधिकार होता था । बच्चों का विवाह पिता के द्वारा ही किया जाता था । विवाह में पत्नी को दहेज मिलता था जिसे भविष्य में वह सम्पत्ति अपने बच्चों में बाँट देती थी ।
स्त्रियों की दशा (Condition of Women)-
प्राचीन सुमेरियन समाज में स्त्रियों की स्थिति अच्छी थी । वह अपनी स्वतन्त्रता से कोई भी कार्य कर सकती थी । पति के मृत्यु के पश्चात् वह दूसरा विवाह करने का अधिकार रखती थीं । पत्नी के सुचरित्र न होने पर पति उसे तलाक नहीं दे सकता था किन्तु दूसरा विवाह कर सकता था । उस समय रक्षिता (अविवाहित पत्नी) रखने का प्रचलन था । उससे उत्पन्न पुत्र को वैध माना जाता था । दहेज में प्राप्त सम्पत्ति पर महिला का एकाधिकार था । परिवार में यदि पति एवं पुत्र की मृत्यु हो जाती थी तो सम्पत्ति पर महिला का अधिकार होता था । मन्दिरों में सुन्दर स्त्रियाँ देवदासी होती थी । स्त्री से विवाह के पश्चात् अधिक से अधिक संतान उत्पत्ति की आशा की जाती थी । संतानोत्पत्ति न होने की स्थिति में उन्हें तलाक भी दे दिया जाता था ।
रहन – सहन एवं पहनावा (Living Standard and Dresses ) –
सुमेरियन नगरों के उत्खनन से प्राप्त अवशेषों से ज्ञात होता है कि उनका जीवन स्तर अत्यधिक उच्च था । उच्च वर्ग के लोग बड़े महलों में रहते थे तथा वैभवशाली जीवन व्यतीत करते थे । उनके भोजन तथा खाद्य पदार्थों में भी विलासिता देखने को मिलती थी । इसका प्रमाण हमें राजाओं के महलों पर बने भित्तिचित्र एवं प्रस्तर लेख से मिलता है । इसके अतिरिक्त उत्खनन से प्राप्त फर्नीचर भी उपरोक्त तथ्यों की पुष्टि करते हैं। उच्च वर्ग के व्यक्तियों के वस्त्र बहुत कीमती होते थे । इस वर्ग के स्त्री-पुरुष दोनों ही भड़कीले वस्त्र पहनते थे । पुरुष लुंगी अथवा तहमत का प्रयोग करते थे तथा घर से बाहर जाने पर गर्दन व शरीर को ढक लेते थे जबकि स्त्रियाँ वाघरे की तरह का वस्त्र धारण करती थीं । जनसाधारण सादा जीवन जीते थे । उन्हें अपने पूरे शरीर को ढकने के लिए वस्त्र नहीं मिल पाता था । वह केवल नीचे का वस्त्र धारण करते थे तथा शेष ऊपर का शरीर बिना वस्त्र का होता था । उस समय सूती एवं भेड़ की खाल से वस्त्र बनाए जाते थे । सुमेर समाज में लोगों द्वारा सिर पर टोपी तथा पैरों में चप्पल आदि भी पहने जाते थे ।
आभूषण एवं श्रृंगार (Ornaments and Make-up)- सुमेरियन नगरों में उत्खननों से प्राप्त अवशेषों में बड़ी संख्या में श्रृंगार की सामग्री तथा आभूषण प्राप्त हुए हैं जिसके आधार पर यह अनुमान लगाया जाता है कि वहाँ के निवासी बिलासिता पूर्ण जीवन जीते थे । सुमेरियन समाज में स्त्री एवं पुरुष दोनों सजने-संवरने तथा गहने पहनने का शौक रखते थे । उत्खनन से अनेक प्रकार के अधिक संख्या में आभूषण जैसे- कंगन, कर्णफूल, पाजेब, कंठहार, अंगूठियाँ मिले हैं । यह आभूषण सोना, चाँदी एवं तांबे इत्यादि के बने होते थे ।
आमोद-प्रमोद के साधन (Means of Amusement) –
सुमेर के लोग विभिन्न प्रकार के साधनों का प्रयोग अपने मनोरंजन के लिए करते थे। जैसे— संगीत, नृत्य, खेल-कूद एवं त्योहार । मन्दिरों में देवदासियाँ नृत्य करके लोगों का मनोरंजन करती थीं। बच्चे, मिट्टी, धातु एवं लकड़ी के बने खिलौनों से खेलते थे। उनके खिलौनों में मुख्य रूप से बैलगाड़ी, मनुष्य एवं जानवरों की आकृतियाँ होती थी।
दास प्रथा (Slavery) –
सुमेरियन समाज में दास प्रथा का भी प्रचलन था जो व्यक्ति युद्ध में पकड़ लिए जाते थे वह दास होते थे कुछ व्यक्ति जो कर्ज में डूबे होते थे, दासता का जीवन व्यतीत करने को मजबूर होते थे । दासों को समाज में सम्मान नहीं मिलता था । दास अपने स्वामी को छोड़कर भाग नहीं सकते थे यदि वह ऐसा करते भी थे तो उन्हें क्रूर शारीरिक यातनाएँ मिलती थी । दासों को पहचानने के लिए उनके शरीर को चिन्हित किया जाता था । सुमेरियन समाज में जहाँ एक ओर दासों के साथ पशुवत व्यवहार किया जाता था तो वहीं दूसरी ओर ‘दासता मुक्ति’ का भी प्रावधान था । दास अपने स्वामी को प्रसन्न करके एवं धन देकर दासता से मुक्ति पा सकता था । स्त्री दास से यदि स्वामी को संतान प्राप्त हो जाती थी तो वह पिता की सम्पत्ति में उत्तराधिकारी हो जाता था । यदि कोई दास व्यक्ति किसी स्वतन्त्र स्त्री से विवाह कर लेता था और उससे कोई संतान होती थी तो उसे स्वतन्त्र माना जाता था । सुमेरियन समाज में दासों का क्रय-विक्रय किया जाता था ।
