रागों के समय चक्र के सिद्धांत को समझाए | BA Notes Pdf

उत्तर- भारतीय शास्त्रीय संगीत में राग–समय का सिद्धांत अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। यह सिद्धांत बताता है कि किसी राग को किस समय गाया या बजाया जाना चाहिए ताकि उसकी भाव–अभिव्यक्ति सर्वश्रेष्ठ रूप में उभरकर आए। भारतीय संगीत केवल ध्वनि का संयोजन नहीं, बल्कि भाव, प्रकृति और मनःस्थिति का सामंजस्य है। इसलिए रागों के लिए विशेष समय निर्धारित किए गए हैं, जिन्हें समय–चक्र कहा जाता है।

राग–समय का आधार

राग–समय का सिद्धांत प्रकृति, मानव शरीर और मानसिक अवस्था के तालमेल पर आधारित है। दिन भर वातावरण, प्रकाश, तापमान और मनोभाव बदलते रहते हैं। इन परिवर्तनों के अनुसार कुछ राग विशेष भाव उत्पन्न करते हैं और श्रोता पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं।
उदाहरण—भोर में शांत और गंभीर राग अच्छे लगते हैं, जबकि संध्या में मधुर और रोमांचक राग मन को अधिक आकर्षित करते हैं।

समय–चक्र का विभाजन

भारतीय संगीत में दिन–रात को आठ प्रहरी (प्रहर) या चार मुख्य भागों में बाँटा गया है, और प्रत्येक भाग के लिए राग निर्धारित किए गए हैं।

1.   प्रातः कालीन राग (4 AM – 8 AM)

ये राग शांत, स्थिर और गम्भीर प्रभाव डालते हैं।
उदाहरण: भीमपलासी, ठाट–भैरव के राग, रामकली, टोड़ी।

2. पूर्वाह्न–दोपहर राग (8 AM – 12 PM / 12 PM – 4 PM)

इन रागों में मधुरता और प्रसन्नता होती है।
उदाहरण: काफी, सारंग, गौड़–सरंग, देसी।

3. संध्याकालीन राग (4 PM – 8 PM)

ये राग रोमांच, उमंग और शांति का मिश्रण प्रस्तुत करते हैं।
उदाहरण: यमन, पूरिया, मारवा, पीलू।

4. रात्रिकालीन राग (8 PM – 12 AM / 12 AM – 4 AM)

ये राग गम्भीर, रहस्यमयी और गहन भाव उत्पन्न करते हैं।
उदाहरण: बागेश्री, दरबारी, मालकौंस, चैती, सोहनी।

राग–समय निर्धारण के कारण

  1.  स्वरों का प्रभाव: प्रत्येक राग में विशेष स्वर–समूह होता है। कोमल स्वरों वाले राग सुबह या रात में अधिक प्रभावी होते हैं, जबकि तीव्र और शुद्ध स्वरों वाले राग दिन या संध्या में।
  2.  मनोवैज्ञानिक कारण: मानव मन अलग–अलग समय पर अलग मूड में होता है, और राग उसी अनुसार भाव उत्पन्न करते हैं।
  3. प्राकृतिक वातावरण: प्रकाश, हवा, तापमान और वातावरण ध्वनि के प्रभाव को बदलते हैं।

आधुनिक दृष्टिकोण

हालाँकि आजकल मंचीय कार्यक्रमों, रिकॉर्डिंग और फ़िल्म संगीत में राग–समय का कठोर पालन नहीं किया जाता, फिर भी परंपरागत गायन में यह सिद्धांत महत्वपूर्ण माना जाता है।

निष्कर्ष:- रागों का समय–चक्र भारतीय संगीत की विशिष्टता है। यह केवल नियम नहीं, बल्कि राग–भाव, प्रकृति और मानसिक अवस्था के बीच सामंजस्य का विज्ञान है। सही समय पर राग का गायन उसकी प्रभावशीलता बढ़ाता है और श्रोता को गहराई से प्रभावित करता है।


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