प्रश्न : प्राचीन भारत में राजनिति एवं शासन व्यवस्था की विवेचना करें |
प्राचीन भारत की राजनीति और शासन व्यवस्था बहुत विकसित और संगठित थी। यहाँ शासन केवल बल या अधिकार पर नहीं, बल्कि धर्म, न्याय और जनकल्याण के सिद्धांतों पर आधारित था। भारतीय परंपरा में राज्य का उद्देश्य केवल शासन करना नहीं, बल्कि प्रजा की सुरक्षा और सुख-सुविधा प्रदान करना भी था।
सबसे पहले यदि हम शासन की प्रारंभिक अवस्था की बात करें, तो प्राचीन काल में भारत में दो प्रकार की शासन प्रणालियाँ थीं — राजतंत्र और गणतंत्र।
राजतंत्र में राज्य का मुखिया राजा होता था, जो राज्य का सर्वोच्च शासक माना जाता था। वहीं गणतंत्र में शासन जनता के प्रतिनिधियों के माध्यम से चलता था, जैसे वैशाली, कपिलवस्तु और मिथिला के गणराज्य।
राजा को ईश्वर का प्रतिनिधि नहीं बल्कि “जनता का सेवक” माना गया है। उसे “धर्मराज” कहा गया, क्योंकि उसका सबसे बड़ा कर्तव्य धर्म और न्याय की रक्षा करना था। राजा को अपने राज्य की जनता के प्रति जवाबदेह माना गया था। यदि वह अन्याय करता या प्रजा की उपेक्षा करता, तो उसे पदच्युत भी किया जा सकता था।
राजा के सहयोग के लिए कई मंत्री और अधिकारी होते थे। इनमें प्रमुख थे — प्रधान मंत्री, सेनापति, पुरोहित, कोषाध्यक्ष, न्यायाधीश, और ग्राम अधिकारी। ये सभी राज्य के अलग-अलग कार्य संभालते थे। राजा को निर्णय लेने में “मंत्रिपरिषद” की सहायता मिलती थी। यह परिषद राज्य के महत्वपूर्ण विषयों जैसे युद्ध, नीति, कर और न्याय से जुड़े मामलों पर सलाह देती थी।
प्राचीन भारत में प्रशासन का ढाँचा चार स्तरों पर बँटा था —
- केंद्र (राजा और मंत्री)
- जनपद या प्रांत (राज्य का बड़ा हिस्सा)
- नगर (शहर प्रशासन)
- ग्राम (गाँव का प्रशासन)
ग्राम प्रशासन बहुत मजबूत था। गाँव के कामकाज “ग्रामणी” या “मुखिया” के नेतृत्व में होते थे। पंचायतें छोटे विवादों को सुलझाने और गाँव की शांति बनाए रखने का कार्य करती थीं।
न्याय प्रणाली भी अत्यंत विकसित थी। न्याय का आधार “धर्मशास्त्र” और “राजनीति शास्त्र” माने जाते थे। अपराधों की सजा उनके स्वरूप के अनुसार दी जाती थी, लेकिन उद्देश्य बदले की भावना नहीं बल्कि सुधार था।
प्राचीन भारत में शासन व्यवस्था का सबसे बड़ा उद्देश्य “सर्वजन सुखाय, सर्वजन हिताय” यानी सबके सुख और हित के लिए काम करना था। राजा को यह सिखाया जाता था कि वह अपने हित से पहले जनता के हित को रखे।
निष्कर्षतः, प्राचीन भारत की राजनीति और शासन व्यवस्था न्याय, धर्म, और लोककल्याण पर आधारित थी। यहाँ राजा को भगवान नहीं, बल्कि जनता का सेवक माना गया। इसी कारण भारतीय शासन प्रणाली ने दुनिया को यह संदेश दिया कि सच्चा शासक वही है जो सबकी भलाई के लिए कार्य करे।