प्राचीन भारत में ग्राम स्वराज ( ग्राम प्रशासन ) का वर्णन करें |

उत्तर : प्राचीन भारत की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण आधार ग्राम था। भारत को कृषि प्रधान देश कहा गया है, और उसकी आत्मा ग्रामों में बसती थी। ग्राम न केवल जीवन का केंद्र था बल्कि प्रशासनिक दृष्टि से भी आत्मनिर्भर इकाई के रूप में स्थापित था। इस प्रणाली को “ग्राम स्वराज” कहा जाता है, जिसका अर्थ है — गाँव का अपने कार्यों में स्वतंत्र और स्वशासित होना।

प्राचीन काल में प्रत्येक ग्राम एक छोटी गणराज्य इकाई के समान होता था। गाँव के लोग अपने सामाजिक, आर्थिक और न्यायिक कार्य स्वयं तय करते थे। गाँव का प्रशासन एक प्रमुख अधिकारी ‘ग्रामणी’ या ‘मुखिया’ के नेतृत्व में चलता था। ग्रामणी भूमि, कर और न्याय के मामलों की देखरेख करता था। उसके साथ गाँव के अन्य पदाधिकारी जैसे ‘महत्तर’, ‘पटवारी’, ‘कोटक’ (रक्षक), ‘तक्षक’ (बढ़ई), ‘कुम्हार’, ‘नाई’, ‘धोबी’, आदि मिलकर ग्राम प्रशासन का संचालन करते थे।

ग्राम पंचायत का प्रावधान भी प्राचीन भारत में था। पंचायत पाँच अनुभवी और आदर्श व्यक्तियों की संस्था होती थी, जो गाँव के विवादों को निपटाने, कर निर्धारण करने और धार्मिक-सामाजिक नियमों को लागू करने का कार्य करती थी। पंचायत के निर्णय को सभी लोग मान्यता देते थे, और इसे सर्वोच्च ग्राम न्यायालय माना जाता था। इस व्यवस्था में न्याय सस्ता, त्वरित और निष्पक्ष होता था।

ग्राम प्रशासन का आर्थिक आधार कृषि था। गाँव के किसान भूमि की देखरेख करते, जल प्रबंधन करते और सामूहिक रूप से उत्पादन बढ़ाने के उपाय अपनाते थे। जल-स्रोतों, सिंचाई व्यवस्था, सड़कों और मंदिरों की देखरेख ग्राम समाज स्वयं करता था। कर प्रणाली भी सरल थी; राजा या राज्य केवल निश्चित अंश के रूप में कर प्राप्त करता था, और शेष आय गाँव के विकास में खर्च की जाती थी।

धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी ग्राम एक इकाई था। गाँव में देवताओं के मंदिर, शिक्षण संस्थान और सभा स्थल होते थे जहाँ धार्मिक अनुष्ठान और उत्सव सामूहिक रूप से आयोजित किए जाते थे। ग्रामवासियों में आपसी सहयोग, सेवा भावना और एकता का अद्भुत उदाहरण देखने को मिलता था।

इस प्रकार, प्राचीन भारत का ग्राम प्रशासन लोकतांत्रिक भावना पर आधारित था। राजा का हस्तक्षेप बहुत कम होता था, और ग्रामजन अपनी आवश्यकताओं के अनुसार निर्णय लेते थे। यह व्यवस्था गांधीजी के ग्राम स्वराज के विचारों की भी प्रेरणा रही, जिसमें उन्होंने स्वावलंबन, आत्मनिर्भरता और लोकशक्ति के सिद्धांतों को प्रमुखता दी।

निष्कर्षतः, प्राचीन भारत में ग्राम स्वराज एक संगठित, स्वायत्त और न्यायपूर्ण प्रशासनिक व्यवस्था थी जिसने भारतीय समाज की नींव को मजबूत बनाया। यह व्यवस्था न केवल शासन का आधार थी बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा का प्रतीक भी थी।


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